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बिलकिस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट-इस तरह के नृशंस अपराधों में जब राहत देने पर विचार किया जाता है तो इससे पूरा समाज प्रभावित होता है!

केंद्र सरकार और गुजरात सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वे बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई पर कोर्ट के पहले के निर्देश का पालन करेंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने पहले के आदेश में गुजरात और केंद्र सरकार को कहा था कि वे रिहाई का आदेश देने से संबंधित ऑरिजिनल रिकॉर्ड साझा करें.

जस्टिस के एम जोसेफ़ और जस्टिस बीवी नागरत्न की बेंच ने उन दोषियों से भी इस मामले में दो सप्ताह के भीतर एफ़िडेविट दाख़िल करने को कहा है, जिन्होंने अब तक ऐसा नहीं किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान कहा था कि गुजरात सरकार को अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखना चाहिए था.

बेंच ने कहा कि इस तरह के नृशंस अपराधों में जब राहत देने पर विचार किया जाता है तो इससे पूरा समाज प्रभावित होता है और इस तरह के मामलों में शक्तियों का इस्तेमाल करते समय जनहित का ध्यान रखना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से यह भी पूछा था कि ये फ़ैसला लेने के पीछे की क्या वजहें थीं.

गुजरात सरकार ने 11 सज़ायाफ़्ता मुजरिमों को रिहा करने के अपने फ़ैसले का बचाव किया था. सरकार ने पहले बताया था कि सभी दोषियों ने 14 साल या इससे अधिक समय जेल में बिताया और उनके अच्छे व्यवहार को देखते हुए रिहाई दी गई है. साथ ही ये फ़ैसला केंद्र सरकार की सहमति के बाद लिया गया था.

पिछली सुनवाई में सरकार ने रिहा करने से संबंधित फ़ाइल मुहैया कराने को लेकर विशेषाधिकार का दावा किया था और कहा था कि वो 27 मार्च के आदेश पर समीक्षा की अपील कर सकते हैं.

अदालत ने तब रिहाई से संबंधित दस्तावेज़ मांगे थे.

2002 के गुजरात दंगों के दौरान अहमदाबाद के पास रणधी कपूर गांव में एक भीड़ ने बिलक़ीस बानो के परिवार पर हमला किया था.

इस दौरान पांच महीने की गर्भवती बिलक़ीस बानो के साथ गैंगरेप किया गया. उनकी तीन साल की बेटी सालेहा की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई.