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अमरीका तुर्क राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोगान की हार का सपना क्यों देख रहा है : रिपोर्ट!

तुर्क राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोगान ने विपक्षी पार्टी पीपल्स रिपब्लिक के नेता कमाल क़लीचदार ओग़लू के साथ अंकारा में अमरीकी राजदूत की मुलाक़ात की आलोचना की है।

अर्दोगान ने जेफ़ फ़्लीक की ओग़लू के साथ मुलाक़ात को शर्मनाक बताते हुए कहाः अमरीकी राजदूत को अपनी हद से बाहर नहीं निकलना चाहिए और अपने राजनयिक कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

यह कोई पहली बार नहीं है कि जब अमरीका ने किसी देश के आंतरिक मामलों और ख़ास तौर पर चुनावों में हस्तक्षेप का प्रयास किया हो। अमरीका तुर्किए में होने वाले चुनावों में भी हस्तक्षेप करता रहा है। दर असल, वाशिंगटन अपने हितों को साधने के लिए तुर्किए के मामलों में दख़ल देता रहा है। अमरीका का यह भी मानना है कि इस देश के आंतरिक मामलों से सीधे तौर पर उसके हित जुड़े हुए हैं। इसी वजह से वाशिंगटन का प्रयास रहता है कि अंकारा में पश्चिम की ओर झुकाव रखने वाला ही नेता सत्ता संभाले।

वास्तव में तुर्किए के आंतरिक मामलों में अमरीकी अधिकारियों के हस्तक्षेप का एक लंबा इतिहास रहा है। उदाहरण के तौर पर, 2018 में तुर्किए के आंतरिक मामलों को लेकर अमरीकी विदेश विभाग के तत्कालीन प्रवक्ता सहित पश्चिमी अधिकारियों द्वारा की गई टिप्पणियों का उल्लेख किया जा सकता है। 2018 के चुनावों के दौरान, अमरीकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने तुर्किए में समय से पहले चुनाव कराने की घोषणा के बारे में कहा था: अमरीकी सरकार तुर्किए में स्वतंत्र, पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव कराने को लेकर चिंतित है।

तुर्किए के विदेश मंत्रालय ने अमरीकी अधिकारियों के बयानों के जवाब में वाशिंगटन पर आरोप लगाया था कि वह उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का प्रयास कर रहा है। इस समय जब तुर्किए के राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव में दो महीने से भी कम समय बचा है, अमरीकी राजनयिक विपक्षी नेताओं के साथ मुलाक़ात कर रहे हैं।

हमें इस तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए कि अर्दोगान सरकार ने पारदर्शी स्वतंत्र नीतियां अपनाकर तुर्किए में अमरीकी उपस्थिति को अधिक ख़र्चीला बना दिया है। इसी वजह से व्हाइट हाउस चुनाव में अर्दोगान की हार की आशा रखता है। तुर्किए के मामलों के एक विश्लेषक रहमान क़हरमानपुर का इस संदर्भ में कहना हैः 2023 तुर्किए के लिए एक निर्णायक साल है, इसलिए कि पश्चिम को इस साल होने वाले चुनावों में बड़ी उम्मीद है कि इस चुनाव में अर्दोगान हार जाएंगे।

दो दशक पहले तक तुर्किए को बड़ी हद तक यूरोप और पश्चिम पर आश्रित देश के तौर पर देखा जाता था। इसके अलावा नाटो में तुर्किए के पास दूसरी सबसे बड़ी सेना है। इसी दृष्टिकोण से, पश्चिम के साथ तुर्किए के संबंधों को परिभाषित किया गया था। लेकिन जब से अर्दोगान ने सत्ता संभाली है, उन्होंने तुर्किए की स्वतंत्रता पर अधिक ध्यान दिया है।