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कभी तक़दीर का मातम कभी दुनियाँ से गिला
मधुसूदन उपाध्याय =============== कभी तकदीर का मातम कभी दुनियाँ से गिला _____________________________________ इस शीर्षक से शकील बंदायूनी की एक गजल के एक मकते को आधार बना कर यह लिख रहा हूँ। शुद्ध मन से तथा ईश्वर को साक्षी रखकर । जो लोग भाग्य नहीं मानते उनके लिए यह सब कुछ एक बार सोचने का विषय […]
मत करो घमंड इतना कि मैं किसी को खिला रहा हूँ…क्या पता हम खुद किसके भाग्य से खा रहे हैँ!
Apna mohalla-अपना मोहल्ला ======== एक रेस्टोरेंट में कई बार देखा गया कि, एक व्यक्ति (भिखारी) आता है और भीड़ का लाभ उठाकर नाश्ता कर चुपके से बिना पैसे, दिए निकल जाता है। एक दिन जब वह खा रहा था तो एक आदमी ने चुपके से दुकान के मालिक को बताया कि यह भाई भीड़ का […]
”फिर उधार के पैसे से अम्मा की विदाई…न न ये नहीं हो सकता”
दो लफ्ज ============== “पापा… पापा… जल्दी चलो मम्मी आपको बुला रही हैं. सात वर्षीय रोहन ने आकर राकेश से कहा. “क्या हुआ, क्यों बुला रही हैं?” राकेश ने बेटे से पूछा. “वो दादी कुछ बोलती नही.” रोहन बोला. “क्या!” राकेश परेशान हो अम्मा के कमरे की ओर भागा. “क्या हुआ अम्मा को?” उसने अपनी पत्नी […]