धर्म

उनका दोस्त अल्लाह है कि उनको अँधेरों से निकाल कर रोशनी में ले जाता है और जो काफ़िर हैं…

Razi Chishti
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चाँद का रुख़ जब तक सूरज की तरफ़ रहता है वो रोशन रहता है और जब उसका रुख़ सूरज की तरफ़ से हट जाता है तो वो बेनूर हो जाता है. कुछ ऐसा ही हमारे साथ हुआ है. हमने भी अपना रुख़ अल्लाह swt की तरफ़ से फेर लिया है और जो नसीहतें कुरान में है उनको बेकार समझ कर छोड़ दिया है(25:30). अल्लाह swt फ़रमा रहा है; “जो लोग ईमान लाये हैं उनका दोस्त अल्लाह है कि उनको अँधेरों से निकाल कर रोशनी में लेजाता है और जो काफ़िर हैं उनके दोस्त शैतान हैं कि उनको रोशनी से निकाल कर अंधेरे में लेजाता है, यही लोग अहले दोज़ख़ हैं कि उसमें हमेशा रहें गे.” (2:257)

मैंने बहुत पहले एक मज़मून post किया था जिसमें तफ़सील से ब्यान किया था कि काफ़िर कौन हैं? बस इतना जान लें कि काफ़िर का तअल्लुक़ किसी ख़ास मज़हब के मानने वालों से या क़ौम से नहीं है. हर वो शख़्स जिसने हक़ीक़त से मुँह मोड़ लिया वो काफ़िर है चाहे वो किसी भी क़ौम या मज़हब से तअल्लुक़ रखता हो.

जब हाथी रोशनी मे हो तो सारे लोग एक राये होकर कहते हैं कि हाथी किसको कहते है और जब हाथी अन्धो के हाथ लग जाये तब हाथी उसको कहते हैं जो जिस अंधे के हाथ में हाथी के जिस्म का जो हिस्सा आजाये: जिस के हाथ मे पूंछ आयी उसके लिए हाथी रस्सी है, जिसके हाथ में कान आया उसके लिए हाथी पत्ता है, जिसका हाथ पेट पर पड़ा उसके लिए हाथी नाँद है और जिस का हाथ पैर पर पड़ा उसके लिए हाथी खंभा है. अब लड़ाई शुरू हो गयी, अपने अपने विचारों कि तबलीग़ शुरू हो गयी और गिरोह पर गिरोह बनने लगे.

आयत मजकूर में है कि जिनहोने शैतान को अपना रहनुमा बनाया वो उसको रोशनी से निकाल कर अँधेरों मे लेजाता है और फिर फ़ितने पैदा होने शुरू होजाते हैं. फिर कुछ लोग कहते हैं कि इंतज़ार करो अल्लाह swt हमारी मदद ज़रूर करेगा. अल्लाह swt का वादा है कि वो मदद फ़रमाएगा मगर किस की? अल्लाह swt ने फ़रमाया; “हम पर मोमिनों की मदद करना लाज़िम है.”(30:47). लेकिन जिन्का दोस्त शैतान है उनके लिए फ़रमाया कि यही लोग अहले दोज़ख़ हैं. हमारा ईमान यह है कि शैतान हमको कैसे गुमराह करेगा हम तो सेराते मुस्तक़ीम पर है शैतान थोड़े ही सेराते मुस्तक़ीम पर असकता है लेकिन हम यह भूल गए शैतान ने ऐलान किया है कि;

“मैं क़सम खाता हूँ कि इनको गुमराह करने के लिए मैं भी सेराते मुस्तक़ीम पर बैठूँगा.” (7:16)और नबी करीम saw ने भी फ़रमाया है कि शैतान हमारे ही लिबास में मिलेगा और हमारी ही ज़ुबान में बात करेगा. ज़ाहिर सी बात है कि अगर कोई माथे पर तिलक लगाए हुए हाथ मे त्रिशूल लेकर गुमराह करने आएगा तो गुमराह नहीं कर पाएगा. वही गुमराह कर सकता है जिसके पेशानी पर सजदों के निशान हों, उसकी दाढ़ी हों, हाथ मे तसबीह लिए अल्लाह अल्लाह का विर्द कर रहा हों. हम यह क्यों भूल जाते हैं कि मुनफ़िक़ हमारे दरमियान शुरू से ही मौजूद हैं जिनकी ज़ाहिरी सूरत मोमिनों जैसी है मगर दिल में ईमान नहीं है. शैतान और मुनाफ़िक़ दोनों ही इस्लाम के पाँच अरकान पर मज़बूती से जमे रहते हैं ताकि उनका राज़ न खुल जाए।

Razi Chishti