पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आज़ादी के बाद सर सबसे मजबूत गठबंधन जाट और मुस्लिम का माना जाता था,दोनों एक दूसरे के हम निवाला और हम प्याला हुआ करते थे,मियाँ और चौधरी के इस भाईचारे ने कई सरकार बनवाई तो कई को गिरवा भी दिया था,लेकिन ठीक 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले सितम्बर 2013 में मुज़फ़्फ़रनगर में दँगे भड़क उठे जो मुस्लिम और जाटों के बीच ही हुए थे जिसके कारण ये सदियों पुराना भाईचारा टूट गया और दोनों समुदाय में तनाव और नफरत की गहरी खाई होगई थी।
मुस्लिम और जाट के बीच लगने लगा था कि इनके बीच हुई खाई अब कभी नहीं पटेगी, लेकिन पांच साल बाद कैराना उपचुनाव ने पूरी सूरत ही बदल दी और एक बार फिर दोनों समुदाय के बीच बेहतर तालमेल दिखा है।
बता दें कि कैराना लोकसभा उपचुनाव में हुए मतदान ने ऐसी मिसाल पेश की है, जो देश के कई हिस्सों में बार-बार बनते सांप्रदायिक तनाव को दूर करने के लिए नजीर बन सकता है.
रमजान का महीना और भीषण गर्मी के बीच कैराना लोकसभा सीट पर सोमवार को मतदान हो रहा था. पोलिंग बूथ पर मतदाताओं की लंबी-लंबी कतारें लगी थी. इस बीच जब मुस्लिम मतदाता रोजा रखकर वोट डालने के लिए पोलिंग बूथ पर पहुंचे तो जाट समुदाय ने उनके लिए पोलिंग बूथ खाली कर दिया.
शामली जिले के ऊनगांव और गढ़ीपोख्ता कस्बा जाट बहुल इलाका माना जाता है. इन दोनों बूथ पर नजारा ऐसा देखने को मिला कि लोग आश्चर्यचकित रह गए. बूथ पर मतदान के लिए जाट समुदाय की महिलाएं पहले से लगी हुई थीं. इस बीच मुस्लिम महिलाएं भी वोट डालने के लिए पहुंचीं, तो जाट महिलाओं ने उन्हें आगे कर अनोखी मिसाल पेश कर दी.
बूथ पर पहले से खड़ीं जाट महिलाओं ने मुस्लिम महिलाओं से कहा ‘बहन आप पहले वोट डाल लीजिए क्योंकि आप रोजे से हैं. मैं तो बाद में भी वोट डाल लूंगी.’
गढ़ीपोख्ता कस्बे के बूथ पर चौधरी राजेंद्र सिंह अपने परिवार के साथ वोट डालने के लिए कतार में लगे हुए थे. ऐसे में 55 वर्षीय बसीर वोट डालने के लिए पहुंचे, तो राजेंद्र सिंह ने उन्हें आगे कर दिया और खुद पीछे लाइन में लग गए. पीछे लाइन में लगते हुए कहा कि आप रोजे से हैं, इसलिए पहले आप वोट डाल लें, हम तो बाद में भी वोट डाल लेंगे.
कैराना उपचुनाव में आरएलडी ने तबस्सुम हसन को उम्मीदवार बनाया था. जबकि बीजेपी ने हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को प्रत्याशी बनाया है.
आरएलडी मुखिया और उनके बेटे जयंत चौधरी पिछले 6 महीने से अपने आधार को मजबूत करने के लिए लगे हुए हैं. करीब 100 से ज़्यादा रैलियों को संबोधित किया और दोनों समुदाय के लोगों को एकजुट होने का संदेश देकर पार्टी के लिए वोट मांगा रहे थे. इसी का नतीजा है कि एक बार फिर जाट और मुस्लिम समुदाय एक दूसरे के लिए नजदीक आते दिखे.