सेहत

मैं धनिया से नफ़रत करता/करती हूं, धनिये से भी नफरत क्यों करते हैं ”भक्त” : रिपोर्ट

भारत में मसालों के किसी भी डिब्बे के भीतर झांकिए, तो आमतौर पर आपको तीन मसाले ज़रूर मिलेंगे- हल्दी, लाल मिर्च पाउडर और पिसा हुआ धनिया (जिसे अक्सर पिसे हुए ज़ीरे में मिलाकर रखा जाता है). भारत में दाल बनानी हो, रसदार/शोरबे वाली सब्ज़ी, या फिर सब्ज़ियों वाली कोई और डिश. ये तीन मसाले मिलकर ही उसके शोरबे को गाढ़ा करने और मसालेदार बनाने का काम करते हैं.

वैसे तो धनिये में न तो वो हल्दी वाला तुर्श पीलापन दिखता है, और न ही इसका ताल्लुक़ दुनिया भर में भारत की पहचान बन चुके तीख़े-चटख़ स्वाद (जैसे मिर्च पाउडर) से है. फिर भी इन सब मसालों में शायद धनिया ही है, जो सदाबहार है. धनिया के दरदरे पीसे गए बीज, बहुत से पकवानों में गर्माहट और चटख़ स्वाद वाली ख़ुशबू पैदा करते हैं.

वहीं, धनिया को महीन पीसकर, सब्ज़ियों का शोरबा/रस/ग्रेवी गाढ़ा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. और हरे धनिये के डंठल और पत्तियों को अक्सर तैयार पकवानों को सजाने, उनमें ताज़ा ख़ुशबू और खट्टापन लाने के लिए डाला जाता है.

भारत में खाना पकाने में धनिये का चलन इस क़दर आम है कि ठेले पर सब्ज़ियां बेचने वाले अक्सर, बाक़ी सब्ज़ियों के साथ थोड़ा सा हरा धनिया और मुट्ठी भर हरी मिर्चें भी ग्राहकों के झोले में डाल देते हैं.

धनिये की सहज और आम उपलब्धता इसे एक नायिका बना देती है- हालांकि धनिया ऐसी नायिका है, जिसका भारत के खान-पान को ख़ास बनाने के लिए गुणगान नहीं होता है.

वैसे, भारतीय उप-महाद्वीप और दक्षिणी-पूर्वी एशिया के कुछ देशों को छोड़ दें, तो दुनिया में बाक़ी जगहों पर लोग हरा धनिया सख़्त नापसंद करते हैं. सोशल मीडिया पर बहुत से समुदाय तो हरे धनिये को ख़ारिज करने के लिए पूरी मज़बूती से अभियान चलाते हैं.

बहुत से लोग तो ऐसे भी हैं जो धनिया से अपनी नापसंद का इज़हार, हर साल 24 फ़रवरी को मैं धनिया से नफ़रत करता/करती हूं के नाम से अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाकर करते हैं. वहीं, जो लोग हरा धनिया पसंद करते हैं, वो इसकी ताज़ा ख़ुशबू और खट्टे स्वाद की तारीफ़ों के पुल बांधते हैं.

वहीं, जो धनिया को नापसंद करते हैं, वो दावा करते हैं कि इसका स्वाद साबुन, धूल या कीड़ों जैसा होता है. धनिये से नफ़रत करने वाले अक्सर ये बताना नहीं भूलते कि इसका अंग्रेज़ी नाम Coriander, यूनानी शब्द कोरिस से आया है, जिसका मतलब ‘खटमल’ होता है, जो इसकी कड़वी बू के चलते दिया गया था.

रिसर्च से पता चलता है कि धनिये के प्रति नफ़रत का ये भाव असल में इसकी एक आनुवांशिक नस्ल के चलते पैदा हुआ है. दुनिया के कई इलाक़ों में धनिए को नापसंद करने की बड़ी वजह इसका ये भाई-बंधु ही है.

हालांकि कुछ अध्ययन ये भी बताते हैं कि धनिये के प्रति ये नफ़रत दक्षिण एशियाई लोगों में कम ही देखने को मिलती है. क्योंकि, यहां तो बचपन से ही लोग धनिए के ज़बरदस्त स्वाद के आदी हो जाते हैं.

दक्षिण एशियाई लोगों के लिए धनिया सिर्फ़ सजावट की हरी पत्तियों से कहीं ज़्यादा और भी बहुत कुछ है. भारतीय खान-पान की पहचान बन चुके व्यंजनों जैसे कि टिक्का मसाला के बारे में पश्चिमी देशों के ज़हन में जो तस्वीर है, वो यही है कि तैयार डिश में ऊपर से ख़ूब सारा हरा धनिया पत्ता छिड़क दिया जाए. लेकिन, दक्षिण एशियाई लोग धनिये के पौधे के तमाम हिस्सों को खाना पकाने की लगभग हर प्रक्रिया में अलग अलग तरह से बरतते हैं.

नाम में क्या रखा है?

ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों में धनिया का मतलब हरा धनिया और मसाले के तौर पर इस्तेमाल होने वाले इसके बीज दोनों ही होते हैं. हालांकि, अमेरिका में सिलैंट्रो का मतलब ताज़ा हरा धनिया है, जबकि कोरिएंडर का मतलब मसाला है. भारत में धनिये को अक्सर बाक़ी मसालों के साथ जोड़कर बोला जाता है. जैसे कि धनिया ज़ीरे का मसाला, धनिया पुदीने की चटनी और सब्ज़ी ख़रीदने जाएं तो ‘थोड़ा सा धनिया मिर्ची भी डाल देना’.

सब्ज़ी का शोरबा तैयार करने के लिए आमतौर पर हल्दी और ज़ीरे के साथ पिसा धनिया या धनिया पाउडर इस्तेमाल किया जाता है, जो सब्ज़ी के रस को गाढ़ा बनाने के साथ साथ उसमें खट्टा स्वाद भी जगाता है. धनिए के बीजों को तड़का देने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.

गर्म तेल में धनिया और ज़ीरा जैसे मसालों को डालकर उनसे किसी पकवान में छौंक लगाया जाता है, ताकि मसालों की सोंधी ख़ुशबू और स्वाद उसमें पैबस्त हो जाए. वहीं, हरे धनिए के पत्तों को अक्सर मिर्च, अदरक और लहसुन के साथ पीसकर चटनी बनाई जाती है, या फिर दही से बने रायते में भी थोड़ा हरा धनिया डाला जाता है. ताज़ा हरे धनिए को बारीक काटकर किसी तैयार डिश को सजाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.

भले ही भारत के खान-पान में धनिया की पैठ बहुत गहरी हो, फिर भी, रसोई में धनिये को बहुत भाव नहीं दिया जाता. इसकी बड़ी वजह ये है कि धनिया अक्सर बहुत कम दाम पर कहीं भी आसानी से मिल जाता है. यही वजह है कि धनिये को अक्सर बहुत हल्के में लिया जाता है.

हालांकि, भारत के एक शेफ रणबीर बरार धनिए के प्रति तिरस्कार वाला ये नज़रिया बदलना चाहते हैं. शेफ, लेखक और रेस्टोरेंट के मालिक रणबीर बरार मास्टरशेफ इंडिया में जज भी रह चुके हैं. वो कहते हैं कि, ‘एक पंजाबी परिवार में पले-बढ़े होने के चलते मैंने हमेशा देखा कि एक खेतिहर परिवार के तौर पर हम जो भी कुछ खाते-पीते थे, धनिया उसका अभिन्न अंग होता था. हम पानी की नाली के पास धनिए के बीज फेंक दिया करते थे और वो ख़ुद ब ख़ुद उग आते थे. फिर हम हरा धनिया उखाड़कर घर लाते थे और अपने खाने में इस्तेमाल करते थे.’

जब रणबीर बरार ने भारत में खाना पकाने की प्रक्रिया की गहराई में जाकर देखा, और वो पूरे भारत में घूमे फिरे, तब जाकर उन्हें भारत के तमाम इलाक़ों के पकवानों में धनिए के अलग अलग तरह से इस्तेमाल का पता चला और वो उसके मुरीद हो गए.

रणबीर बरार कहते हैं कि, ‘उत्तर से दक्षिण भारत तक, बहुत से राज्य और इलाक़े धनिया इस्तेमाल करते हैं. कोई चटनी बनाने के लिए हरा धनिया इस्तेमाल करता है, तो कोई नारियल के साथ या फिर उत्तर पूर्वी भारत में पाया जाने वाला लंबे डंठल वाला धनिया, जो ज़्यादा रसीला होता है. धनिया भारत के हर कोने में खाना पकाने का साझीदार है.’

रणबीर कहते हैं कि, ‘मैं इसे नाक की ख़ुशबू सूंघने की क्षमता को सक्रिय करने के तौर पर देखता हूं. जैसे ही नाक सक्रिय होती है, तो पकवान का स्वाद एक ऊंचे मकाम पर पहुंच जाता है.’

फिर भी धनिया की बहुत तारीफ़ नहीं होती, न इसे कोई औपचारिक मान्यता मिली हुई है. इस बात से रनबीर बरार थोड़ा परेशान हुए. इसीलिए, इसी साल मार्च में सोशल मीडिया की अपनी एक पोस्ट पर आई प्रतिक्रियाओं से उत्साहित होकर, रनबीर बरार ने चेंज.ओआरजी (Change.org) पर मामूली धनिया को ‘उसका वाजिब सम्मान’ दिलाने का एक अभियान शुरू किया. उन्होंने मांग की कि धनिया को भारत की ‘राष्ट्रीय जड़ी-बूटी’ घोषित किया जाए.


अब तक रनबीर बरार की इस मांग को लगभग 32,000 लोग समर्थन दे चुके हैं. 35 हज़ार लोगों का समर्थन मिलने के बाद ये Change.org के मंच पर सबसे ज़्यादा समर्थन पाने वाली याचिका बन जाएगी.

Change.org के मार्केटिंग अभियान की मैनेजर माधुरी जानकी ज़ुत्शी कहती हैं कि याचिका को समर्थन देने वाले 87 प्रतिशत लोग भारत के हैं. जबकि बाक़ी के समर्थकों में विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोग शामिल हैं. इनमें से बहुत से लोग रणबीर बरार की तरह धनिया के मुरीद हैं.

याचिका के कमेंट बॉक्स में लिखी गई बातें इसकी मिसाल हैं. एक ने लिखा कि, ‘धनिये के बिना खाना ठीक वैसा ही है, जैसे बिना ताज की महारानी… मुझे धनिया बहुत पसंद है.’ एक और ने लिखा कि, ‘वास्तव में धनिया हमारी राष्ट्रीय जड़ी बूटी है, इसके बग़ैर तो हमारा कोई भी पकवान पूरा ही नहीं हो सकता.’

Change.org ने इस याचिका को भारत के खाद्य और प्रसंस्करण उद्योग के मंत्री पशुपति कुमार पारस के सामने पेश किया है. धनिया को राष्ट्रीय बूटी का दर्जा देने में उनकी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका होने वाली है. माधुरी ज़ुत्शी कहती हैं कि इस याचिका की कामयाबी आख़िर में रणबीर बरार ही तय करेंगे. वो भी ये देखेंगे कि इसके क्या ठोस नतीजे निकलते हैं. इसके बाद वो लाल रंग का जीत का झंडा दिखाएंगे, जो वेबसाइट की याचिका वाले पेज पर याचिका का समर्थन करने वालों की आख़िरी संख्या के ठीक ऊपर दिखाई देगा.

इसके बावजूद, रणबीर बरार की याचिका की सबसे बड़ी कामयाबी शायद मंज़िल से ज़्यादा सफ़र में होगी. ज़ुत्शी कहती हैं कि, ‘हम ये मानते हैं कि याचिकाएं ऐसे मसले पर चर्चा छेड़ती हैं, जो अपने आप में अलग तरह से कामयाब होते हैं.’ वहीं रणबीर बरार के लिए धनिया को उसका वाजिब दर्जा दिलाना कोई अभियान चलाना नहीं है.

रणबीर कहते हैं कि, ‘इसका मक़सद एक विचार पैदा करना और उस पर राष्ट्रीय चर्चा की शुरुआत करना था. अगर इटली के पास बेज़िल और फ्रांस के पास माजुरम है, तो आख़िर भारत की अपनी हर्ब क्यों नहीं हो सकती? धनिया जो हमारे देश में बहुत सी चीज़ों का प्रतीक है, उसे हम अपने दिल दिमाग़ में वैसी ही जगह क्यों नहीं दे सकते?’

सच तो ये है कि दक्षिण एशिया में खाना-पकाने के अलावा ज़िंदगी के दूसरे कई पहलुओं में भी धनिये की खास जगह है. पाकिस्तान की औषधि विशेषज्ञ डॉक्टर बिल्क़िस शेख़ कहती हैं कि, ‘धनिया तो लंबे समय से हमारी रसोई का हकीम है.’

धनिये का इस्तेमाल तो भारत में हज़ारों बरस से होता आ रहा है और ये पूरी दुनिया में खाया जाता है. भारत में धनिए का ज़िक्र वेदों और संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों (जिन्हें ईसा से 1500 से 6 हज़ार साल पहले लिखा गया था) में मिलता है. भारत में धनिये को सदियों से दवा और सेहत ठीक करने वाली जड़ी के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है. भारत में धनिया घरेलू इलाज की परंपरा में बेहद कारगर जड़ी-बूटी मानी जाती है.

बिल्क़िस शेख़ हंसते हुए कहती हैं कि ‘धनिया तो ग़रीबों की पासली है. उनका इशारा पश्चिमी देशों से आयात किए जाने वाले उस चर्चित हरे जूस से है, जिसे पेट दुरुस्त करने और वज़न घटाने के रामबाण के तौर पर पेश किया जाता है, और जो आजकल ख़ूब चलन में है. बिल्क़िस शेख़ कहती हैं कि, ‘फैशनेबल लोगों के पास पासली के सप्लीमेंट हैं. हमारे पास धनिया और घरेलू इलाज है.’

अपच की शिकायत दूर करने के लिए बिल्क़िस सौंफ के साथ धनिया मिलाकर खाने का सुझाव देती हैं. पीठ दर्द और माहवारी की तकलीफ़ से फ़ौरन राहत पाने के लिए बिल्क़िस धनिए की 20-25 पत्तियों को दूध के साथ उबालकर पीने की सलाह देती हैं. वो कहती हैं कि ये उनके आज़माए हुए सटीक नुस्खे हैं.

वो कई तरह के काढ़े बनाने में भी धनिये का इस्तेमाल करती हैं- मुंह के छालों का इलाज हो या फिर सिर में फुंसियां निकली हों. धनिया इन सभी मर्ज़ों को ठीक करने में काम आता है. वो कहती हैं कि नींद न आने की भयंकर बीमारी भी धनिये के इस्तेमाल से ठीक हो सकती है- क्योंकि धनिये की तासीर ठंडी होती है. शरीर पर इसका असर दवाओं जैसा होता है और भारतीय उप-महाद्वीप के गर्म मौसम के लिए तो धनिया बेहद मुफ़ीद है.

भारत के खान-पान का एक प्रमुख व्यंजन जैसे कि हरे धनिए, पुदीने, टमाटर की चटनी का स्वाद भी हल्का, खट्टा और ताज़गी से भरा होता है, जो इस ज़मीन के मिज़ाज से ठीक उसी तरह मेल खाता है, जैसे किसी सर्द मौसम वाले इलाक़े में गाढ़ा मलाईदार सूप.

सच तो ये है कि शुरुआत में तो शायद धनिये का इस्तेमाल अलग अलग इलाक़ों में इलाज के घरेलू नुस्खों के तौर पर शुरू हुआ था. फिर धीरे धीरे इसने रसोई में, खाना पकाने में भी अपनी जगह बना ली.

मिसाल के तौर पर रणबीर बताते हैं कि भोपाल शहर में शुरुआत में आबाद होने वाले लोग यहां की झील के खारे पानी से तालमेल नहीं बिठा पाए थे. उन्हें अपच की शिकायत हो गई, जिसे दूर करने के लिए उन्होंने धनिया खाना शुरू कर दिया. रनबीर कहते हैं कि भोपाल की मशहूर डिश भोपाली रेज़ाला की पैदाइश के पीछे शायद यही वजह रही होगी. भोपाली रेज़ाला असल में मट्ठे और दही से तैयार एक रसीली सब्ज़ी होती है, जिसमें धनिया काफ़ी तादाद में पड़ता है.

इसमें कोई शक नहीं कि इलाज का घरेलू नुस्खा हो या फिर कोई पकवान बनाने का तरीक़ा, धनिया सब में इस्तेमाल होने वाली चीज़ है. लेकिन, इसकी सबसे बड़ी ख़ूबी शायद ये है कि इसके पौधे का हर हिस्सा इस्तेमाल किया जा सकता है.

रणबीर बरार कहते हैं कि, ‘आज हम बर्बादी रोकने के लिए किसी भी पौधे को जड़ से फल तक खाने की बात को बड़ा फैशनेबल मानते हैं. लेकिन धनिये का इस्तेमाल तो हमेशा से ही इसी तरह होता आया है. कोई पकवान बनाने में जितना ज़्यादा समय लगने की उम्मीद हो, धनिए के पौधे का उतना ही निचला हिस्सा इस्तेमाल होगा. पत्ती से लेकर डंठल, जड़ और फिर बीजों तक.’

मिसाल के तौर पर धीमी आंच पर पकाई जाने वाली लखनऊ की मशहूर निहारी में धनिये के पौधे की जड़ों का एक गहरा स्वाद मिलता है. इसी तरह पुलाव पकाने के लिए, अक्सर मलमल के कपड़े में धनिये के बीजों को लौंग, दालचीनी के डंठलों, ज़ीरे और काली मिर्च को गांठ लगाकर बांध दिया जाता है. फिर इसे देग में पक रहे पुलाव में डाल दिया जाता है, जिससे मसालों की ख़ुशबू, पुलाव में गहरे पैबस्त हो जाए. फिर जब पकवान तैयार हो जाए, तो उसे सजाने में धनिये की ताज़ा हरी पत्तियां ऊपर से डाली जा सकती हैं.

रणबीर कहते हैं कि, ‘परफ्यूम की तरह धनिये के भी टॉप, मिड और डीप नोट्स होते हैं. हरी पत्तियां कोलोन की तरह होती हैं, जिन्हें आप ऊपर से छिड़क सकते हैं. इसकी ख़ुशबू कुछ देर तक ठहरती है, फिर ख़त्म हो जाती है. लेकिन धनिया की जड़ों का स्वाद लंबे समय तक टिका रहता है.’

व्यंजन बनाने की किताबों की लेखिका सायरा हैमिल्टन को तो धनिए के पौधे के निचले हिस्सों के साथ खाना पकाना ख़ास तौर से पसंद है. वो कहती हैं कि, ‘जड़ें और डंठल शायद धनिए के पौधे के बेहतरीन हिस्से हैं. पश्चिमी देशों के शेफ इन्हें हिकारत भरी नज़र से देखते हैं. मगर धनिए के डंठल अगर कच्चे ही खाए जाएं, तो उनसे एक रसीला स्वाद मिलता है, जो मुझे बेहद पसंद है. अगर इन डंठलों को हरी मिर्च और नमक के साथ पीस लिया जाए, तो फिर ये किसी भी मसाले में स्वाद का धमाका कर देंगे.’

मिशलिन स्टार जीतने वाली भारत की पहली महिला और थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में गा और हेयर नाम के रेस्टोरेंट की मालकिन और शेफ गरिमा अरोड़ा भी धनिये की मुरीद हैं. वो कहती हैं कि धनिये का इस्तेमाल बहुत सोच समझकर किया जाता है. क्योंकि शेफ को पता होना चाहिए कि वो अपने पकवान में किस तरह का ‘हरापन’ लाना चाहते हैं.

गरिमा अरोड़ा की अनार, प्याज़ और धनिये के साथ बनाई जाने वाली पोर्क बेली, हरे धनिए को दो तरह से इस्तेमाल करके तैयार होती है. धनिए के हरे डंठलों को धनिए की पत्ती से निकाले गए तेल में डाला जाता है. इससे न केवल पकवान का अलग ही रूप निखरकर आता है, बल्कि उसमें एक ख़ास ‘हरा’ स्वाद भी आ जाता है.

गरिमा ने हमें समझाया कि, ‘अनार से आपकी डिश में मीठापन आता है. प्याज़ और नींबू से खट्टा स्वाद आता है और हरे रंग से पकवान में एक अलग ही हरा कलर और ताज़गी का रसीला झोंका आ जाता है.’

गरिमा अरोड़ा का मानना है कि धनिये को हम भारतीय खान-पान की पहचान कह सकते हैं. वो इसके साथ ये भी जोड़ती हैं कि ‘अपनी ज़िंदगी में अब तक मैं ऐसे किसी भारतीय से नहीं मिली हूं, जो धनिए के स्वाद को साबुन जैसा बताकर उससे नफ़रत करे.’ गरिमा कहती हैं कि धनिया को भारत की ‘आधिकारिक जड़ी-बूटी’ कहना बहुत से इलाक़ों में पाए जाने वाले इसके तमाम स्वादों को कम करके आंकना होगा.

भारत जैसे खान-पान की इतनी विविधता वाले देश में शायद ‘राष्ट्रीय जड़ी-बूटी’ का दर्जा पाने के कई दावेदार हों. रणबीर बरार को इससे कोई दिक़्क़त नहीं है. उनके मन में ये सवाल कभी नहीं उठा कि ‘धनिया ही क्यों… फ़लां क्यों नहीं?’ बल्कि वो तो हमेशा यही सोचते हैं कि, ‘आख़िर धनिया क्यों नहीं?’

रणबीर कहते हैं कि धनिया ‘अंजाम तक पहुंचने की ख़ुशी’ का प्रतीक है, जो ये जताती है कि कोई पकवान अच्छा बना है.’ बरार कहते हैं कि, ‘धनिया असल में ग़िज़ाइयत और नफ़ासत के बीच का फ़ासला है. ये पेट भरने वाले और भूख जगाने वाले खाने के बीच का फ़र्क़ है.’

कुल मिलाकर, रनबीर बरार का अभियान धनिया को राष्ट्रीय व्यंजन का दर्जा दिलाने से ज़्यादा उसे भारतीय खान-पान की आत्मा के तौर पर मान्यता दिलाने का है. जब हमने उनसे पूछा कि क्या वो बिना धनिये के कोई भारतीय रेस्टोरेंट खोलने के बारे में सोच सकते हैं, तो उनका खरा जवाब था: ‘आप सोच ही नहीं सकते.’

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आयशा इम्तियाज़
बीबीसी ट्रेवल के लिए