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भूटान नरेश ने भारत को चीन के दबाव के बारे में चेतावनी दे दी थी, पूर्व रॉ चीफ़ ए.एस. दुलत का दावा!

भूटान के तत्कालीन नरेश जिग्मे सिंगये वांगचुक ने भारत को 1999 में ही चीन के दबाव के बारे में चेतावनी दे दी थी. पूर्व रॉ चीफ़ ए.एस. दुलत ने अपनी नई किताब ‘ए लाइफ़ इन द शैडोज़’ में इसका दावा किया है.

‘द हिंदू’ की रिपोर्ट के मुताबिक़ दुलत ने अपनी इस किताब में कहा है कि 2017 में डोकलाम में भारत-चीन के बीच तनाव और इसके बाद चीन की ओर से वहां इंफ़्रास्ट्रक्चर मज़बूत करने के बारे में की गई पूर्व भूटान नरेश की भविष्यवाणी भी सच साबित हुई.

अख़बार लिखता है कि दुलत ने कश्मीर समेत कई मुद्दों पर भारत की ‘कड़ी’ नीति और पड़ोसियों के प्रति कठोर विदेश नीति का ज़िक्र किया है, जो बाद में ”नाकाम” साबित हुईं.

इस किताब में 1999 में दुलत की भूटान यात्रा का भी ज़िक्र है. उस वक्त उन्होंने तीन दिन राजा के साथ बिताए थे जिन्हें ‘K4’ कहा जाता था.

अख़बार के मुताबिक़ दुलत ने अपनी किताब में पूर्व भूटान नरेश से अपनी बातचीत का विस्तार से ज़िक्र किया है. इस बातचीत में वो कहते हैं कि ‘भूटान में लोकतंत्र आने ही वाला है. लेकिन भारत सरकार हमारे लिए चीज़ें मुश्किल बना रही है. चीन हमारे सिर पर बैठा हुआ है.’

दुलत लिखते हैं कि पूर्व भूटान नरेश इस बात को लेकर निश्चित थे कि अगर भारत ने भूटान पर बहुत ज़्यादा ‘दबाव’ बनाने की कोशिश की तो चीन के साथ उसकी दिक़्क़तें और ज़्यादा बढ़ेंगी.

दुलत ने ‘द हिंदू’ से कहा कि उन्हें लगता है कि तत्कालीन भूटान नरेश अपने देश के सीमा समझौते के दौरान चीन के दबाव का ज़िक्र कर रहे थे. वो इस बात को लेकर भी आश्वस्त थे कि भूटान धीरे-धीरे ज़्यादा लोकतांत्रिक देश बनता जा रहा था. उन्हें उम्मीद थी कि चीन के साथ सीमा मामले पर और बातचीत होगी.

‘द हिंदू’ के मुताबिक़ 1984 के बाद चीन और भूटान के बीच डोकलाम और भारत-चीन-भूटान तिराहे के नज़दीक 269 वर्ग किलोमीटर के इलाके की ”अदला-बदली” के लिए चीन और भूटान में 24 दौर की बातचीत हो चुकी है.

भूटान के उत्तर में तिब्बत के नज़दीक जाकरलुंग और पसामलुंग इलाके को लेकर भी बातचीत हुई है. ये इलाके 495 वर्ग किलोमीटर में फैले हैं. लेकिन भारत की ओर से इस पर आपत्ति जताने के बाद साल 2000 से लेकर अब तक इस पर कोई प्रगति नहीं हुई है.

2021 में चीन और भूटान ने सीमा विवाद सुलझाने के लिए तीन चरणों के रोड मैप का एलान किया था.

दुलत ने ये भी लिखा है कि डोकलाम में 2017 में भारत चीन तनाव ख़त्म होने बाद चीन ने डोकलाम के पूर्वी इलाके में अपना इंफ़्रास्ट्रक्चर मज़बूत कर लिया है. यहां इसने सड़क और आदर्श गांव बना लिए हैं.

वह लिखते हैं कि भूटान के पूर्व नरेश काफ़ी तेज़-तर्रार शख़्स थे और उन्होंने 1999 में इन हालातों को भांप लिया था.

वाजपेयी सरकार के समय कश्मीर पर हुर्रियत नेताओं से उनकी बातचीत का भी दुलत की इस किताब में ज़िक्र है. इस पर मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पर पूरा एक अध्याय है जिसमें भारतीय विमान के अपहरण में अपहरणकर्ताओं से उनकी बातचीत और सौदेबाजी का ज़िक्र किया गया है.

राष्ट्रीय अभिलेखागार के पास 1962, 1965 और 1971 की लड़ाइयों का कोई रिकॉर्ड नहीं

भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार (नेशनल आर्काइव ऑफ़ इंडिया) के पास 1962, 1965 और 1971 में देश की ओर से लड़ी गई लड़ाई और हरित क्रांति का कोई रिकॉर्ड नहीं है.

‘इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है नेशनल आर्काइव ऑफ़ इंडिया के डायरेक्टर जनरल चंदन सिन्हा ने ये जानकारी दी है. उन्होंने कहा है कि कई मंत्रालयों ने नेशनल आर्काइव ऑफ़ इंडिया से कोई जानकारी साझा नहीं की है.

सिन्हा ने दिल्ली में शुक्रवार को आयोजित एक वर्कशॉप में ये जानकारी दी. उन्होंने कहा कि सरकार में 151 मंत्रालय और विभाग हैं. लेकिन एनएआई के पास सिर्फ़ 64 एजेंसियों के रिकॉर्ड हैं. इनमें सिर्फ़ 36 मंत्रालय और विभाग हैं.

अख़बार के मुताबिक़, उन्होंने कहा कि पब्लिक रिकॉर्ड्स एक्ट 1993 के अनुसार, केंद्रीय मंत्रालय और विभागों को उन रिकॉर्ड्स को नेशनल आर्काइव को भेजना होता है जो 25 साल से पुराने हैं. अगर सरकार उन्हें वर्गीकृत सूचना मानती है यानी जिन्हें ज़ाहिर नहीं किया जा सकता तो इसे भेजने की ज़रूरत नहीं है. लेकिन 25 साल पुराने रिकॉर्ड साझा करने होते हैं.

सिन्हा ने कहा, ”हमारे पास 1962, 1965 और 1971 के युद्ध में हमारी शानदार जीत का कोई रिकॉर्ड नहीं है. हमारे पास हरित क्रांति का भी कोई रिकॉर्ड नहीं है, जिसकी हर समय तारीफ़ की जाती है.”

उन्होंने कहा, ” इस संबंध में और भी कई मुद्दे हैं. लेकिन मुझे बहुत दुख है कि इन मामलों पर कोई रिकॉर्ड नहीं है. हम इतिहास में विश्वास नहीं रख रहे हैं. हम आजादी के बाद से अपने इतिहास का एक बड़ा हिस्सा खोते जा रहे हैं.”

अख़बार के मुताबिक़ रक्षा मंत्रालय ने आज़ादी के बाद से लेकर 2022 की शुरुआत तक 476 फ़ाइलें भेजी हैं.

अरुणाचल के सीमावर्ती इलाकों में और चौकियां बनाएगा भारत
भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) अरुणाचल प्रदेश में अतिरिक्त चौकियां बना सकती है. ये चौकियां चीनी घुसपैठ वाले इलाकों में बनाई जाएंगी. तवांग में भारत और चीनी सेना के बीच 9 दिसंबर को हुई झड़प के बाद ये फ़ैसला किया गया है.

‘द टेलीग्राफ’ ने सीमावर्ती इलाकों आईटीबीपी की ओर से ज़्यादा चौकियां बनाने की योजना की ख़बर देते हुए कहा है कि चीन, तवांग और इससे लगे सीमाई इलाकों की संवेदनशील चौकियों पर सेना तैनात कर रहा है. इसके साथ ही वह इन इलाकों में इंफ़्रास्ट्रक्चर तैयार कर रहा है. इनमें मिलिट्री कैंप भी शामिल हैं.

अख़बार के मुताबिक़, आईटीबीपी के एक अधिकारी ने उसके संवाददाता को बताया कि एलएसी पर तवांग सबसे संवेदनशील इलाकों में से एक है. पिछले सप्ताह यहां आईटीबीपी के आला अफ़सरों की बैठक हुई थी जिसमें यहां अतिरिक्त आउटपोस्ट बनाने की योजना पर बातचीत हुई.

तवांग में जिन इलाकों में सेना चौकियां बनाने की योजना बना रही है उनमें यांग्त्से में भी शामिल है. यह समुद्र तल से 17 हजार फ़ीट की ऊंचाई पर है. यहां 9 दिसंबर को चीनी सेना ने घुसपैठ की कोशिश की थी और इस दौरान उनकी भारतीय सैनिकों के साथ झड़प हुई थी. अधिकारियों के मुताबिक़, इसमें 15-20 भारतीय सैनिक घायल हो गए थे.

अख़बार के मुताबिक़, आईटीबीपी के एक और आला अफ़सर ने सीमाई इलाकों में अतिरिक्त चौकियां बनाने की योजना की पुष्टि की है. ये चौकियां उन इलाकों में बनाई जाएंगी जहां पिछले कुछ समय में भारत और चीन के सैनिकों की झड़प हुई है.