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अजमेर में अजोगन्ध महादेव नामक प्राचीन मंदिर का इतिहास जानिए….By-B B Singh

B B Singh
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हिन्दू नगरी राजस्थान के अजमेर में अजोगन्ध महादेव नामक प्राचीन मंदिर का इतिहास जानिए
भारत की प्राचीनतम स्थली अजमेर को आधुनिक युग में मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के प्रतीक के रूप में देखा जाता रहा है। अजमेर का नाम आते ही भारतीयों के मन में मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह प्रतीकात्मक रूप से बस चुकी है। राजनीतिक और सामाजिक रूप से इस दरगाह को हिंदू-मुस्लिम सामाजिक सौहार्द के रूप में परिभाषित कर दिया गया।

वे हिंदुत्ववादी नेता जो हिंदू जनमानस पर अपनी छाप छोड़ते हैं वह भी आए दिन इस दरगाह पर चादर लिए माथा टेकते दिखाई पड़ते हैं।आए दिन किसी भी सेलिब्रिटी, नेता की खबर अजमेर में आपको इस दरगाह पर चढ़ाते हुए मिल जाएगी।

अजमेर दरगाह को हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के रूप में ही स्थापित किया गया। इसलिए आपको तथाकथित हिंदुवादी प्रधानमंत्री,गृहमंत्री की तस्वीरें और खबरें भी इस दरगाह पर जाने की मिल जाएंगी।

इसके विपरीत इसी अजमेर से लगभग 10 किलोमीटर दूर अरावली पर्वतमाला की सुरम्य घाटी में अजयसर गांव के पास “अजोगंध महादेव मंदिर” नामक प्राचीन मंदिर स्थित है| यह ऐतिहासिक अजयमेरु नगर (अजमेर) के संस्थापक चौहान क्षत्रिय राजा अजयपाल का स्मृति रूपी यह प्राचीन मंदिर जो अजोगंध महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है, को कहीं इतिहास के कोने में विस्मृत कर दिया गया है, हिंदूवादियों की नजर आज तक इस मंदिर में नहीं पड़ी, ना ही इसे हिंदू जनमानस में कभी समाहित किया गया।

प्राचीन काल से ही क्षत्रिय सन्यास लेने के बाद भी हथियार व सवारी (घोड़ा आदि) का त्याग नहीं करते थे| साथ ही उनके आप-पास रहने वाले साधू, चरवाह आदि अपनी सुरक्षा व अन्य समस्याओं के लिए भी उन्हीं पर निर्भर रहते थे| पुष्कर के आस-पास रहने वाले साधुओं को मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा तंग करने व पशु पालकों का पशुधन लूटने वालों को राजा अजयपाल सन्यासी होने के बावजूद वहां दण्ड देते रहे | डा. मोहनलाल गुप्ता ने अपनी इतिहास पुस्तक में यहाँ राजा अजयपाल द्वारा शिव की तपस्या करने का उल्लेख किया है|

बाबा अजयपाल चौहान ने ना केवल अजमेर की स्थापना की और बल्कि नागौर के गजनवी गवर्नर बहलिम को हराया,गजनवी सुल्तान बेहराम शाह को हराकर इस शहर को कला और साहित्य का केंद्र बनाया। उनके कई चांदी और तांबे के सिक्के पाए गए।

बाबा अजयपाल शैव थे लेकिन जैन धर्म और वैष्णवो को भी संरक्षण दिया।उनके दरबार में अनेक श्वेतांबर और दिगंबर संत निवास करते थे। वह शिव के लकुलीश रूप की पूजा करता थे, वे नाथ सम्प्रदाय का अनुयायी थे।
वे पुष्कर में साधुओं को बचाने के लिए भोमिया बन गए थे।

इतने स्वर्णिम इतिहास के बावजूद अजमेर के संस्थापक और पूज्यनीय बाबा अजयपाल पर किसी राजनीतिक बुद्धिजीवी
जय माँ भवानी जय जय राजपूताना