केंद्र सरकार द्वारा गत वर्ष 220 साल पुराने 41 आयुध कारखानों को 7 निगमों में तब्दील कर दिया गया था। इन्हीं आयुध कारखानों के कर्मचारियों के मान्यता प्राप्त संगठन, एआईडीईएफ, बीपीएमएस और सीडीआरए ने निगमों के कामकाज को लेकर एक विशेष रिपोर्ट तैयार की है। एआईडीईएफ महासचिव सी. श्रीकुमार ने बताया कि बॉर्डर पर तैयार इंडियन आर्मी को टैंक, वर्दी एवं छोटे हथियारों की सप्लाई में देरी हो सकती है। आयुध कारखानों के निगमीकरण पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो भारतीय सेना को हथियार व दूसरे उपकरण मुहैया कराने के लिए जिम्मेदार ये निगम, राष्ट्र की सुरक्षा की राह में बाधा बन सकते हैं। इसके खतरनाक परिणाम सामने आ रहे हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा के जोखिम के अलावा ये निगम, सरकारी खजाने पर भारी पड़ रहे हैं। रक्षा क्षेत्र के तीनों मान्यता प्राप्त कर्मचारी संगठनों ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखकर, आयुध कारखानों के निगमीकरण के फैसले पर दोबारा से विचार कर उसे वापस लेने की मांग की है।
एआईडीईएफ महासचिव सी. श्रीकुमार ने कहा- भारत सरकार ने
आक्रामक पड़ोसियों से राष्ट्र की सुरक्षा के चलते अपने सशस्त्र बलों को हथियारों, गोला-बारूद और ट्रूप कम्फर्ट आइटम सहित अन्य उपकरणों से लैस करने के लिए 41 आयुध कारखानों का निर्माण किया था। इनके आधुनिकीकरण पर भारी धनराशि खर्च हुई है। इन कारखानों में तकनीकी रूप से सक्षम और समर्पित जनशक्ति, जिन्होंने वर्षों से जटिल हथियार व अन्य उपकरण तैयार करने में महारत हासिल की है, वह भी राष्ट्रीय संपत्ति का हिस्सा है। अब एक सोची समझी के साजिश के तहत इन कारखानों का अस्तित्व खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है। रक्षा मंत्रालय और सशस्त्र सेना मुख्यालय में बैठे लोग, जानबूझकर आयुध कारखानों को पर्याप्त वर्क लोड नहीं दे रहे हैं। केंद्र सरकार ने कहा था कि आयुध कारखानों के निगमीकरण से इनकी दक्षता, स्वायत्तता और जवाबदेही में सुधार होगा। कॉरपोरेटाइजेशन के बाद यहां कोई सुधार नहीं दिख रहा है। स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। कर्मियों के तीनों संगठन, इस संबंध में तथ्यों और आंकड़ों के साथ, केंद्र सरकार से चर्चा करने को तैयार हैं।
कैसे पूरा होगा 5 वर्ष में 35,000 करोड़ रुपये का टारगेट
41 आयुध निर्माणियों को सात निगमों में विभाजित करने के दौरान, सभी निर्माणियां 17,000 करोड़ रुपये तक का उत्पादन लक्ष्य हासिल कर रही थीं। तब रक्षा मंत्रालय का दावा था कि निगमीकरण के बाद ये कारखाने अगले 5 वर्ष में 35,000 करोड़ रुपये का उत्पादन मूल्य प्राप्त करेंगे। विडंबना यह है कि सरकार ने इन निगमों को यह लक्ष्य हासिल करने के लिए काम का बोझ देने की बजाए इन्हें बर्बाद करने की कोशिश शुरु कर दी। एआईडीईएफ महासचिव के मुताबिक, 2023-24 में 50 प्रतिशत कारखानों में काम ही नहीं हैं। सरकार, आउटसोर्सिंग पॉलिसी पर चल रही है। टैंक, धनुष गन, छोटे हथियार, गोला बारूद एवं ड्रेस की सप्लाई और इनकी गुणवत्ता पर निगमीकरण का असर दिखने लगा है। बतौर श्रीकुमार, वाइस आर्मी चीफ ने इस बाबत रक्षा मंत्री को पत्र लिखा था। उसमें निगमों का प्रदर्शन ठीक नहीं बताया गया है। सेना को समय पर माल की सप्लाई, एक चुनौती बनती जा रही है। सीएमडी, ट्रेड यूनियनों से बात नहीं कर रहा है। इन सब बातों के चलते बॉर्डर पर सेना की तैयारी प्रभावित हो सकती है।
जिन अफसरों ने निगमीकरण का खाका तैयार किया, वे चले गए
पहले टैंक एवं दूसरे हथियारों का उत्पादन, तैयारी एवं सप्लाई के मामले में आयुध कारखाने एक दूसरे की मदद करते थे। इसके चलते आर्मी को उसकी जरुरत की सामग्री समय पर मिल जाती थी। अब सात निगम बना दिए गए हैं। ये एक दूसरे को मदद नहीं देते। निगमीकरण का खाका तैयार करने वाले ज्यादातर अफसर अब, रक्षा उत्पादन से हट गए हैं। वे अपने कैडर में वापस चले गए हैं। कुछ अधिकारी प्राइवेट क्षेत्र में आ गए तो कोई विदेश चला गया। इनमें संजय जाजू, पुनीत अग्रवाल, राजकुमार और संदीप जैन आदि शामिल हैं। इन सभी लोगों की आयुध कारखानों को निगम में तबदील कराने में अहम भूमिका थी। अब ये लोग, डिफेंस प्रोडेक्शन से दूर चले गए हैं। ऐसे में अगर कुछ गलत होता है कि किसकी जिम्मेदारी होगी। सीएमडी इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं जैसे कि वे डीपीएसयू के सर्वोच्च अधिकारी हों। टीसीएल के तहत 4 आयुध निर्माणियों को खत्म करने की तैयारी हो चुकी है। आर्मी उपकरणों की सप्लाई का टेंडर, निजी संस्थानों को देने का निर्णय लिया जा रहा है। टीसीएल ग्रुप ऑफ फैक्ट्रीज को टेंडर प्रक्रिया में जानबूझकर भाग लेने से रोका गया है। केंद्र सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।
अस्तित्व को लेकर अनिश्चितता का माहौल है
2023-2024 में टीसीएल के तहत लगभग सभी आयुध निर्माणियों के पास कोई वर्कलोड नहीं है। बाकी के 6 निगमों (MIL, AVNL, AWEIL, IOL, GIL और YIL) के तहत संचालित हो रही निर्माणियों के संबंध में आने वाले वर्षों में कार्यभार के बारे में अनिश्चितता है। इनके अस्तित्व को लेकर रक्षा मंत्रालय का कोई सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं है। जीसीएफ, जबलपुर जैसे आयुध निर्माणी में इस समय पर्याप्त कार्यभार के बावजूद अधिकांश नौकरियां आउटसोर्स की जा रही हैं। इस वजह से लक्ष्य को पूरा करने में देरी होती है। बाहर से खरीदे गए कई पुर्जों पर आयुध निर्माणियों के कर्मचारियों को दोबारा से काम करना पड़ता है। इससे जनशक्ति और सार्वजनिक धन की बर्बादी होती है। जब निर्माणियों में संयंत्र और जनशक्ति आसानी से उपलब्ध होती है, तो इसके बावजूद निगम, बड़े पैमाने पर आउटसोर्सिंग का सहारा क्यों ले रहे हैं। नतीजा, स्थापित क्षमता का कम उपयोग होने के कारण उत्पादन की लागत बढ़ा जाती है। फाइलों में एवीएनएल व एडब्ल्यूईआईएल आदि के पास कार्यभार उपलब्ध है, लेकिन भौतिक रूप से सामग्री और घटक आदि प्रदान करने में अड़चन आ रही है। बड़े पैमाने पर सेवानिवृत्ति के कारण जनशक्ति की भारी कमी हो गई है। इससे उत्पादन, उत्पादकता और लक्ष्य प्रभावित होता है।