विशेष

संस्कारी स्त्री की रूह को भी सुहागन कीजिए♥️

Laxmi Kant Upadhyay
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दृष्टि-बोध
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लाल लाल आंखें उभरी हैं
पगडंडी पगडंडी,
क्यों न हम तुम
अपने अपने मन में छुप कर
समय बिताएं,
पालें पोसें अपनी अपनी
अभिलाषाएं।
कभी कभी शामों का सुरमा
गहराने पर,
अपनी छत पर तुम आ जाना
मैं भी जब अपनी पर हूंगा।
आंखों की भाषा से तुमको
अपना शुभ-मन दिया करूंगा,
तुम हल्दी से नेह टीक कर
मेरे नयनों को दे देना।
मैं रोली से तिथियां लिखकर
अपने मन में तह कर लूंगा।
लक्ष्मीकांत उपाध्याय
वाराणसी

Dr.vijayasingh
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समस्त मानवता को समर्पित मेरे प्रेम की परिभाषा से ओत-प्रोत यह कविता जो लोगों को अपनी रूह से प्यार करती है….❤️
लिखूँगी रोज़ एक पाती
हमारे तुम्हारे प्यार की
एक कदम मैं आ जाऊँगी
एक कदम तुम भी आ जाना
घटाये घिर के आयेगी
प्यार की बरसात की
कभी मैं भीग जाऊँगी
कभी तुम भीगकर जाना
समुन्द्र की लहरों पर लिखूँगी
तेरा मेरा नाम
कभी मैं पढ़ जाऊँगी
कभी तुम भी पढ़कर जाना
लिखेंगे मोहब्बत की इबारत नई
चाँद की चाँदनी में हम
कभी मैं दिल हार जाऊँगी
कभी तुम भी हार कर जाना
लिखूँगी रोज़ एक पाती हमारे तुम्हारे प्यार की…❤️
सादर राधे राधे डॉ.विजया सिंह

Sanjay Khare
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मुस्ताक अहमद युसुफ़ी,पाकिस्तान के ग़ज़ब के सटायरिस्ट रहे हैं.उन्होंने जो लिखा उसमें व्यंग्य और विनोद की अद्भुत छटा है.एक बानगी देखें-
1. मर्द की आंख और औरत की जबान का दम सब से आखिर में निकलता है.
2. दुश्मनी के लिहाज से दुश्मनों के तीन दर्जे होते हैं- दुश्मन, जानी दुश्मन और रिश्तेदार.
3. आदमी एक बार प्रोफ़ेसर हो जाये तो जिन्दगी भर प्रोफ़ेसर ही रहता है , चाहे बाद में वह समझदारी की बातें ही क्यों न करने लगे.
4. उस शहर की गलियां इतनी तंग थीं कि अगर मुख्तलिफ़ जिंस (विपरीत लिंगी) आमने-सामने से आ जायें तो निकाह के अलावा कोई गुंजाइश नहीं रहती.
5. वो जहर देकर मारती तो दुनिया की नजर में आ जाती, अन्दाज-ए-कातिल तो देखो -हमसे शादी कर ली.
6. दुनिया में गालिब वह अकेला शायर है कि जो समझ में आ जाये तो दंगा मचा देता है.
7. कुछ लोग इतने मजहबी होते हैं कि जूता पसन्द करने के लिये भी मस्जिद का रुख करते हैं.
8. मेरा ताल्लुक इस भोली-भाली नसल से है जो यह समझती है कि बच्चे बुजुर्गों की दुआओं से पैदा होते हैं.
8. हमारे जमाने में तरबूज इस तरह खरीदा जाता था जैसे आजकल शादी होती है- सिर्फ़ सूरत देखकर.
9. सिर्फ़ 99 प्रतिशत पुलिस वालों की वजह से बाकी एक प्रतिशत भी बदनाम हैं.
10. हुकूमतों के अलावा कोई भी अपनी मौजूदा तरक्की से खुश नहीं होता.
11. फ़ूल जो कुछ जमीन से लेते हैं उससे कहीं ज्यादा लौटा देते हैं.
12. हमारे मुल्क की अफ़वाहों की सबसे बड़ी खराबी यह है कि वे सच निकलती हैं.
Sanjay Khare

स्वामी देव कामुक

संस्कारी स्त्री की रूह को भी सुहागन कीजिए♥️
फकत मांग में सिंदूर भरने से कुछ नही होता.!!
जब तक उसकी गहराई में एक मर्द अपने मूसल से उसकी योनि की मांग को सुहागन नहीं करता…
तुम्हारा स्वामी देव