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राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों को रिहा करने के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का हर तरफ़ कड़ा विरोध हो रहा है : रिपोर्ट

राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों को रिहा करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कड़ा विरोध हो रहा है.एक तरफ इसे भारतीय न्याय व्यवस्था में क्षमा की भूमिका का उदाहरण बताया जा रहा है तो दूसरी ओर माफी पर सवाल उठाए जा रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के दोषी पाए गए छह लोगों को बरी करने के आदेश दिए थे. न्यायमूर्ति बीआर गवई और बीवी नागरत्न की पीठ ने कहा कि मई में सुप्रीम कोर्ट के ही जिस फैसले के तहत इसी मामले में सजा काट रहे एक और अभियुक्त एजी पेरारिवलन को बरी किया गया था, वो फैसला इस मामले पर भी लागू होता है.

मई में अदालत ने कहा था कि वो “पूर्ण न्याय” करने के लिए अपनी “असाधारण शक्तियों” के तहत पेरारिवलन की रिहाई के आदेश दे रही है. सातों अभियुक्त आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे और जेल में 30 सालों से भी ज्यादा का वक्त बिता चुके थे. अदालत के मुताबिक कारावास के दौरान सभी का बर्ताव “संतोषजनक” था.

इनमें सिर्फ नलिनी हरिहरन ही गांधी की हत्या के समय उस स्थल पर मौजूद थीं. शुरू में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें मौत की सजा का फैसला सुनाया था लेकिन बाद में राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी की अपील पर उनकी सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था.

हर तरफ विरोध
लेकिन अब सभी सातों को बरी कर दिए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के प्रति मिली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. एक तरफ तो न्याय व्यवस्था में माफी की भूमिका पर बहस छिड़ गई है तो दूसरी तरफ इस माफी पर सवाल भी उठ रहे हैं.

यहां तक कि गांधी परिवार द्वारा अभियुक्तों को माफ कर दिए जाने के बावजूद कांग्रेस पार्टी ने अभियुक्तों की रिहाई के फैसले की आलोचना की है. पार्टी ने कहा है कि इन लोगों ने एक पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या की थी और उन्हें बरी कर देने से दुनिया को यह संदेश जाता है कि हम उनके जुर्म को भुला चुके हैं.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने वालों में सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी अनुसूया डेजी अर्नेस्ट भी हैं. राजीव गांधी पर हुए उस जानलेवा हमले में उनके साथ साथ 16 लोग मारे गए थे और 40 से ज्यादा जख्मी हुए थे. अर्नेस्ट भी उसी हमले में घायल हुई थीं. उनकी तीन उंगलियां कट गईं और शरीर में कई जगह छर्रे गड़ गए थे.

आज भी अपने घावों का इलाज करवा रहीं अर्नेस्ट सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से नाराज हैं. उन्होंने पत्रकारों से कहा है इस फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने संदेश दिया है कि देश में आतंकवाद को भी सहन कर लिया जाता है.

अन्य मामलों का क्या
कई पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की है. वेबसाइट “द प्रिंट” के संस्थापक शेखर गुप्ता ने ट्विटर पर लिखा कि यह फैसला पूरे देश के लिए “शर्म की बात है” और इससे “नर्म राष्ट्र होने का सबसे खराब किस्म का उदाहरण स्थापित हुआ है.”

Shekhar Gupta
@ShekharGupta

Rajiv Gandhi’s assassination was a national tragedy & also the first time a foreign power (if non-state) dared to take it battles to India by killing its former PM. His assassins’ release is a national disgrace. It sets the worst kind of soft-state precedent

“द हिंदू” अखबार की डिप्लोमेटिक एडिटर सुहासिनी हैदर ने एक ट्वीट में लिखा कि सरकार एक पूर्व प्रधानमंत्री को मारने वालों के “यशगान” के प्रति अपनी आंखें मूंद नहीं सकती.

वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त ने इस फैसले की आलोचना करते हुए लिखा कि “अगर हम एक पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या को ‘जान के बदले जान’ के सिद्धांत के लिए काफी नहीं मानते तो हम हत्या और बलात्कार के दूसरे मामलों में दोषियों को बरी किए जाने की शिकायत नहीं कर सकते.”

barkha dutt
@BDUTT

The release of Rajiv Gandhi killers is egregious. We cannot possibly complain about the release in other rape and murder cases if the assassination of an Indian prime minister is not sufficient reason to mean Life for Life.

कुछ ही दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक और फैसले में 19 साल की एक महिला के बलात्कार और हत्या के लिए हाई कोर्ट द्वारा दोषी पाए तीन लोगों को बरी कर दिया था.

लेकिन दोनों मामलों में फर्क यह था कि राजीव गांधी की हत्या के दोषियों को क्षमा के आधार पर बरी किया गया, जबकि दूसरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने इतनी खराब जांच थी की कि मुल्जिमों के खिलाफ पुख्ता सबूत था ही नहीं.