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उसे बस बोलना आता था, वह कुछ भी बोल सकता था : नंदू पूरे गांव में अपने धड़े का इकलौता वक्ता था!
चित्र गुप्त ============ वामपंथी ******* नंदू पूरे गांव में अपने धड़े का इकलौता वक्ता था। उसके बोलने पर लोग मरने मारने पर उतारू हो जाते थे। उसने कई सारी घटनाओं के इतिहास और भूगोल को व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से पढ़कर तोते की तरह कंठस्थ कर रखा था। उसे जब भी मौका मिलता बेलगाम शुरू हो जाता […]
“प्यार कहीं भी, कभी भी हो सकता है”
मेरी शादी हो चुकी थी और मैं अपने पति के घर में कदम रख चुकी थी। मैं उनके कमरे में बैठी हुई थी, जैसे किसी का इंतजार कर रही हूँ। कमरे की हर चीज़ को ध्यान से देख रही थी। दीवारों का रंग, पेंटिंग्स, फूलों की सजावट, यहाँ तक कि मेरी तस्वीरें भी, जो मैंने […]
मैं तुझे ढ़ूंडता फिरता हूँ ज़माने भर में…. शक़ील सिकंद्राबादी की दो ग़ज़लें
Shakeel Sikandrabadi =============== ग़ज़ल मेरी गुफ्तार सदाक़त का बयाँ ठहरी है मेरी हर बात यूँ ज़ालिम को गिराँ ठहरी है हाए ये कैसा रहे इश्क़ में आया है मक़ाम बात करने लगीं आँखें तो ज़बाँ ठहरी है मैं तुझे ढ़ूंडता फिरता हूँ ज़माने भर में ऐ ख़ुशी ये तो बता दे तू कहाँ ठहरी है […]