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रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच यूरोप में शुरू होने वाली है तुर्की और ग्रीस की जंग : विशेष रिपोर्ट

तुर्की और ग्रीस NETO के सदस्य हैं मगर इन दोनों देशों के बीच जिस तरह से तनाव बढ़ रहा है वो यूरोप के अंदर एक और युद्ध को शुरू कर सकता है, तनाव की अहम् वजह ग्रीस के अंदर बढ़ी अमेरिकी गतविधियां हैं, जानकारी के मुताबिक अमेरिका ने ग्रीस के कई द्वीपों पर अपने सैनिकों व् लड़ाकू विमानों को तैनात किया है जिसे तुर्किये अपने देश के लिए खतरा मानता है, तुर्किये का कहना है कि अमेरिका के ये हथियार सायप्रस पहुंचाए जा रहे हैं, बता दें कि सायप्रस के बड़े हिस्से पर तुर्की सार्थित सरकार है और बाकी बचे हिस्से पर ग्रीस सार्थित सरकार है

तुर्की और ग्रीस के बीच वैसे तो दुरी 1200 किलोमीटर के करीब है लेकिन समुद्र में मौजूद दूवीपों पर ग्रीस का कब्ज़ा है जिनमे से कुछ दूवीप तुर्की से केवल 2 किलोमीटर की दूरी पर हैं, तुर्की इसे अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है और दावा करता है कि समुद्र में मौजूद दूवीप इसके हैं,

इन सब के बीच आग में घी डालने का काम जैसा कि वो हमेशा करता रहा है अमेरिका कर रहा है, अमेरिका ग्रीस को लेटेस्ट लड़ाकू विमानों सहित अन्य जंगी उपकरण दे रहा है जिसके बाद से तय्यप अर्द्गान का पारा चढ़ा हुआ है और वो ग्रीस को कई बार सचेत कर चुके हैं

अब तय्यप अर्द्गान ने अपनी ख़ुफ़िया एजेंसी को ग्रीस के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने का आदेश दे दिया है, बता दें कि तुर्की की ये ख़ुफ़िया एजेंसी बेहद खतरनाक मानी जाती है लेकिन तुर्की की सरकार ने कभी भी इसे अपनी एजेंसी स्वीकार नहीं किया है, ऐसे में अब अगर कोई हमला ग्रीस पर होता है तो तुर्की उसमे शामिल नहीं होने का कह कर साफ़ बच जायेगा

तुर्की और ग्रीस में एजियन सागर में मौजूद द्वीपों को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। ऐसे में ग्रीस के अधिकारियों ने युद्ध का डर जताया है। दरअसल, दोनों देशों में अगले साल चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में राष्ट्रीयता की भावनाएं भड़कने से युद्ध का खतरा पैदा हो सकता है।

एथेंस: ग्रीस और तुर्की के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। ग्रीक अधिकारियों का कहना है कि अगले जून में दोनों देशों में चुनाव होने हैं। ऐसे में तुर्की के साथ एजियन सागर या पूर्वी भूमध्य सागर में छोटी भी मुठभेड़ किसी बड़े युद्ध को शुरू कर सकती है। ग्रीस को शक है कि तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन चुनाव से पहले अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए देश की सुरक्षा को खतरा बताने की कोशिश कर सकते हैं। 20 साल से तुर्की की सत्ता पर काबिज एर्दोगन ने अगस्त में धमकी दी थी कि वह अपनी सेना को कभी भी ग्रीक द्वीपों पर कब्जे का आदेश दे सकते हैं। उन्होंने कहा था कि हम एक रात अचानक आ सकते हैं। अगर यूनानी कुछ करते हैं तो उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। इससे पहले भी एक सर्वे जहाज को लेकर 2020 में ग्रीस और तुर्की के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था। भूमध्य सागर में तनाव इतना बढ़ गया था कि फ्रांस को अपनी नौसेना तैनात करने की धमकी देनी पड़ी थी

ग्रीस के पूर्व एनएसए बोले- अब संभव है युद्ध
अल जजीरा से बात करते हुए ग्रीस के रिटायर्ड एडमिरल लेक्जेंड्रोस डायकोपोलोस ने कहा कि 2019, 2020, 2021 तक मैंने कहा था कि युद्ध की कोई संभावना नहीं है। लेकिन, अब ऐसा नहीं कह सकता हूं। तुर्की की बयानबाजी अब हमले की ओर बढ़ रही है। एडमिरल लेक्जेंड्रोस डायकोपोलोस ग्रीस के प्रधानमंत्री क्यारीकोस मित्सोटाकिस के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। एथेंस में भी तुर्की के शीर्ष राजनयिक इस बात से सहमत हैं कि ग्रीस के साथ तनाव चरम पर हैं, लेकिन उनका मानना है कि इस तनाव को अच्छे से संभाला जा सकता है। तुर्की के राजदूत बुराक ओजुगरगिन ने कहा कि दूतावास के रूप में, हमने अपने ग्रीक सहयोगियों के साथ एक उचित बातचीत की है। हम सभी कोशिश कर रहे हैं कि दुर्घटनाएं न हों। चीजें 2020 की गर्मियों जितनी खराब नहीं हैं, लेकिन हमें बहुत सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि हालात बहुत जल्द बिगड़ सकते हैं।

तुर्की कई मोर्चों पर ग्रीस को उलझाना चाह रहा
पेंटियन विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रोफेसर और शिक्षा और धार्मिक मामलों के उप मंत्री एंजेलोस सिरिगोस भी युद्ध की आशंका से सहमत हैं। उन्होंने कहा कि ग्रीस को सबसे गंभीर रक्षा तैयारी करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि तुर्की कई समानांतर संकटों को पैदा करने का प्रयास करेगा। वह शरणार्थी संकट बढ़ाने की कोशिश करेगा या फिर ग्रीस से समुद्री इलाकों में एक तेल और गैस सर्वेक्षण जहाज को भेजकर माहौल गरमाने की तैयारी कर सकता है। दो साल पहले नाटो में शामिल इन दोनों देशों के बीच तनाव चरम स्तर पर पहुंच गए थे। तब तुर्की ने पानी के नीचे तेल और गैस की तलाश के लिए एक सर्वेक्षण जहाज भेजा था। वहीं ग्रीस का दावा था कि जहाज के खोज वाला इलाका अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत उसके अधिकार क्षेत्र में आता है। इसके बाद ग्रीस और तुर्की की नौसेनाएं इजियन और पूर्वी भूमध्य सागर में एक दूसरे के सामने आ गई थीं।

तुर्की का दावा है कि उसके देश के पास मौजूद द्वीपों पर ग्रीस का कोई अधिकार नहीं है। वह इन क्षेत्रों में खोज की गतिविधियां बंद करने को तैयार नहीं है। तुर्की का कहना है कि वह समुद्री इलाके में तेल और गैस की खोज के अलावा भूकंपीय इमेजिंग सर्वे करना चाहता है। ग्रीस की इन धमकियों को देखते हुए डायकोपोलोस ने कहा कि 2019-21 में तुर्की की रणनीति हमें पहले बल प्रयोग करने के लिए उकसाने की थी। अब तुर्की को पता चल गया है कि ऐसा नहीं होगा … इसलिए वे पहले हमले की शुरुआत करने के बारे में सोच रहे हैं। तुर्की की चाल ग्रीस को हमलावर घोषित कर हमारे द्वीपों पर कब्जा करने की है। ऐसे में वे अंतरराष्ट्रीय जगत में खुद को पीड़ित बता सकते हैं।

तुर्की और ग्रीस के बीच दुश्मनी की मुख्य वजह पूर्वी भूमध्य सागर में मौजूद कुछ द्वीप हैं। इन द्वीपों पर ग्रीस का कब्जा है, लेकिन ये भौगोलिक रूप से तुर्की के नजदीक हैं। इतना ही नहीं, इन द्वीपों पर रहने वाले लोगों की संस्कृति, वेश-भूषा, खान-पान और भाषा तुर्की से मिलती है। ऐसे में तुर्की इन द्वीपों पर अपना दावा करता है, हालांकि ग्रीस शुरू से ही इन दावों को नकारता रहा है। तुर्की के राजनयिकों का कहना है कि ग्रीस के साथ सिर्फ द्वीपों को लेकर ही विवाद नहीं है, बल्कि इसमें जैसे क्षेत्रीय जल की चौड़ाई, द्वीपों का परिसीमन, द्वीपों का असैन्यीकरण या हवाई क्षेत्र की लंबाई जैसे मुद्दे भी शामिल हैं। एर्दोगन के अधिकारी दावा करते हैं कि उन्होंने 1947 पेरिस शांति संधि के तहत इन द्वीपों को ग्रीस को सौंपा था। इसमें दावा किया गया था कि ग्रीस इन द्वीपों का सैन्यीकरण नहीं करेगा, लेकिन यह वादा तोड़ा गया है।

तुर्की और ग्रीस विवाद

पूर्वी भूमध्य सागर में एजियन द्वीप समूह मौजूद है। तुर्की का दावा है कि इसके द्वीपों पर उसका अधिकार है, वहीं ग्रीस का दावा है कि वह इस इलाके का असली मालिक है। दोनों देश नाटो के सहयोगी हैं। इसके बावजूद इनमें आपस में ही युद्ध का खतरा बना हुआ है। तुर्की कहता है कि इन द्वीपों पर उसका दावा सर्वमान्य है। ग्रीस और ऑस्ट्रिया में तुर्की के पूर्व राजदूत हसन गोगस ने अल जजीरा को बताया कि एजियन सागर में ग्रीस के साथ हमारे कई विवाद हैं, जैसे क्षेत्रीय जल की चौड़ाई, द्वीपों का परिसीमन, द्वीपों का असैन्यीकरण या हवाई क्षेत्र की लंबाई। ये सभी मुद्दे परस्पर रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। ग्रीस सिर्फ द्वीपों पर तुर्की के अधिकार को नकारता है।

तुर्की का दावा- संधि का उल्लंघन कर रहा ग्रीस
गोगस का दावा है कि एजियन सागर में अधिकांश ग्रीक द्वीप तुर्की की मुख्य भूमि के करीब हैं, जैसे कि कास्टेलोरिजो या कोस। उन द्वीपों को असैन्यीकरण की शर्त पर 1947 पेरिस शांति संधि के तहत ग्रीस को दे दिया गया था। हालांकि, ग्रीस इस प्रावधान का उल्लंघन करता है। इस बीच, ग्रीक दृष्टिकोण से, तुर्की ऐसे दावे कर रहा है जो न तो यथास्थिति द्वारा समर्थित हैं और न ही अंतरराष्ट्रीय कानून द्वारा।

रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण हैं ये द्वीप
बर्मिंघम विश्वविद्यालय में कंपरेटिव यूरोपीय पॉलिटिक्स में एसोसिएट प्रोफेसर सोतिरियोस जर्टालौडिस ने अल जजीरा को बताया कि ग्रीस एजियन सागर को ग्रीक क्षेत्र का एक मूलभूत हिस्सा मानता है, क्योंकि इस इलाके के सैकड़ों द्वीपों पर बड़ी संख्या में यूनानी नागरिक रहते हैं। इसके अलावा एजियन सागर भू राजनीतिक और रणनीतिक रूप से भी ग्रीस के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस इलाके में यूरोप की दक्षिण-पूर्वी सीमा और काला सागर और मध्य पूर्व के इलाके आपस में मिलते हैं।

दोनों देशों के बीच हो चुकी हैं तीन संधियां
इन द्वीपों के बंटवारे को लेकर दोनों देशों के बीच लॉज़ेन (1923), मॉन्ट्रो (1936) और पेरिस (1947) की संधियां हो चुकी हैं। इनमें लॉजेन और पेरिस में हस्ताक्षरित संधियाँ यह नियंत्रित करती हैं कि कौन सा द्वीप किस देश का है। हालांकि, मॉन्ट्रो की संधि का उद्देश्य लॉजेन की संधि को आंशिक रूप से बदलना था। मैनचेस्टर विश्वविद्यालय में राजनीति के प्रोफेसर दिमित्रिस पापादिमित्रियो ने बताया कि अंकारा की व्याख्या पूर्वी एजियन में संप्रभु अधिकारों से संबंधित एक जटिल स्थिति पैदा करती है।

साइप्रस
यह तब से ग्रीस और तुर्की के बीच विवाद में रहा है जब 1974 में एक ग्रीक समर्थित सैन्य तख्तापलट के जवाब में तुर्की के लड़ाकों ने इस द्वीप पर हमला किया था और बाद में टर्किश रिपब्लिक ऑफ़ नॉर्दन साइपरस की एकतरफा घोषणा कर दी गई थी.

आधुनिक तुर्की राज्य की स्थापना से पहले यूनानियों और तुर्कों के बीच दुश्मनी का एक लंबा इतिहास रहा है.

ऐसी उम्मीदें थीं कि तुर्की जब यूरोपीय संघ की सदस्यता के क़रीब आयेगा तब साइप्रस मुद्दा हल करना आसान हो सकता है.

लेकिन अब तुर्की के यूरोपीय संघ में शामिल होने की कोई संभावना नहीं है और ऊर्जा पर तनाव ने एक बहुत पुराने विवाद में एक नया तत्व जोड़ दिया है.

‘नए ओटोमन’
तुर्की द्वारा अपनाई जाने वाली बहुत अधिक मुखर विदेश नीति पुराने ओटोमन साम्राज्य जैसी है. राष्ट्रपति अर्दोआन के भौगोलिक इलाकों का निश्चित रूप से विस्तार हुआ है.

तुर्की का रणनीतिक रुख शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से कट्टर धर्मनिरपेक्ष राज्य के पतन का था जो कि अब एक अधिक इस्लामी स्वर में बदल गया है.

सत्तारूढ़ एकेपी पार्टी ने तुर्की की बढ़ती अर्थव्यवस्था का इस्तेमाल कर क्षेत्रिय वर्चस्व को बढ़ाने की कोशिश की.

हालांकि हाल के दिनों में तुर्की की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाई गई है, लेकिन राष्ट्रपति अर्दोआन ने पीछे हटने का कोई संकेत नहीं दिया है.

सरकार का ब्लू होमलैंड सिद्धांत स्पष्ट रूप से तुर्की के लिए एक बहुत बड़ी समुद्री भूमिका की परिकल्पना करता है.

तुर्की ने रूस और ईरान जैसे देशों के साथ जहाँ तक आवश्यक हो, अपने मुताबिक़ चीज़ें चलाने की कोशिश की है.

वो अपने क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश करता रहा है और लीबिया के शीत युद्ध में जीएनए सरकार के साथ अपने क्षेत्रीय विस्तार की माँग करता रहा है.

सीरिया की तरह इस क्षेत्र में इतनी सारी लड़ाइयों हैं कि यह कुछ हद तक ये छद्म युद्ध बन गए हैं, जिसमें बाहरी खिलाड़ी एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं.

लीबिया में तुर्की के ख़िलाफ़ मिस्र और यूएई जैसे शक्तिशाली देश हैं.

संयुक्त राष्ट्र समर्थित लीबिया सरकार को तुर्की ने भारी समर्थन दिया है जबकि संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र जनरल खलीफ़ा हफ़्तार के पक्ष में हैं.

तुर्की और यूएई ने लीबिया के आसमान में एक प्रकार का छद्म ड्रोन युद्ध शुरु कर दिया है जिसमें यूएई अपने चीन से लाए ड्रोन का इस्तेमाल करता है और तुर्की अपने देश में बने सशस्त्र ड्रोन का.

तुर्की की यह वायु शक्ति GNA को बचाने में निर्णायक साबित हुई है.

लीबिया संघर्ष ने तुर्की और मिस्र के बीच की दुश्मनी को गहरा कर दिया है.

लीबिया पर मतभेदों ने तुर्की और फ्रांस के बीच संबंधों में भी खटास ला दी है. कुछ समय पहले एक नौसैनिक स्टैंड-ऑफ़ हुआ था जहाँ तुर्की के युद्धपोतों ने फ्रांसीसी नौसेना को एक मालवाहक जहाज को रोकने पर हस्तक्षेप किया था.

माना जा रहा था कि वो लीबिया के तट से हथियार ले जा रहा था.

बढ़ते ग्रीक-तुर्की तनावों के बीच, फ्रांस ने ग्रीस के साथ एकजुटता दिखाने के किए दो युद्धपोतों और दो समुद्री दो जहाज़ों को भेजा है.

भूमध्य सागर में तनाव का तात्कालिक कारण ऊर्जा से संबंधित हो सकता है लेकिन यह कहानी का केवल एक हिस्सा है.

यदि किसी क्षेत्र को संकट से निकालने की ज़रूरत है तो वो पूर्वी-भूमध्य सागर है, लेकिन इसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा? और सवाल है कि क्या इससे जुड़े देश इसके लिए तैयार हैं?

International Defence Analysis
@Defence_IDA
#Erdogan said he agreed with #Putin on the creation of a gas hub in #Turkey. From there they will be able to sell gas to #Europe.

ग्रीस-तुर्की के मध्य विवाद के प्रमुख बिंदु

कस्टम यूनियन एग्रीमेंट (Custom Union Agreement):
हाल ही में ग्रीस के विदेश मंत्रालय द्वारा तुर्की के साथ कस्टम यूनियन एग्रीमेंट (Custom Union Agreement) को निलंबित करने पर विचार करने के लिये यूरोपीय संघ को एक पत्र लिखा गया था।

कस्टम यूनियन एग्रीमेंट (Custom Union Agreement):
यूरोपीय संघ और तुर्की एक ‘कस्टम यूनियन एग्रीमेंट’ से जुड़े हैं जो 31 दिसंबर, 1995 को लागू हुआ।
तुर्की वर्ष 1999 से यूरोपीय संघ में शामिल होने वाला एक उम्मीदवार देश है और यूरो-भूमध्यसागरीय साझेदारी (Euro-Mediterranean Partnership) का सदस्य है।
यह सभी औद्योगिक वस्तुओं को संदर्भित करता है किंतु कृषि (प्रसंस्करित कृषि उत्पादों को छोड़कर), सेवाओं या सार्वजनिक खरीद को संदर्भित नहीं करता है।
इसके तहत द्विपक्षीय व्यापार रियायतें कृषि के साथ-साथ कोयला एवं इस्पात उत्पादों पर भी लागू होती हैं।

यूरो-भूमध्यसागरीय साझेदारी (Euro-Mediterranean Partnership):
यूरो-भूमध्यसागरीय साझेदारी, यूरोपीय संघ के दक्षिण में उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व के 16 देशों में आर्थिक एकीकरण एवं लोकतांत्रिक सुधार को बढ़ावा देने का एक प्रयास है।

ब्लूमबर्ग (Bloomberg) की एक रिपोर्ट:
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ग्रीस ने तुर्की को हथियारों का निर्यात रोकने के लिये जर्मनी सहित यूरोपीय संघ के तीन सहयोगियों को चर्चा के लिये बुलाया था।

दो नाटो सहयोगियों (ग्रीस-तुर्की) के बीच संबंध जो दशकों से विवादास्पद रहे हैं इस वर्ष चरम पर पहुँच चुके हैं। दोनों देशों के मध्य शरणार्थी समस्या, तेल की खोज और हागिया सोफिया स्मारक सहित कई मुद्दों पर विवाद चल रहा है।

ग्रीस-तुर्की प्रवास विवाद (Greece-Turkey migration dispute):

वर्ष 2011 में सीरियाई युद्ध की शुरुआत के बाद से विस्थापित हुए सीरियाई शरणार्थियों ने तुर्की में शरण ली है।
नवीनतम ज्ञात आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में तुर्की में लगभग 37 लाख सीरियाई शरणार्थी रह रहे हैं जिससे तुर्की में सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक तनाव बढ़ गया है।

वर्ष 2015 में शरणार्थी संकट अपने चरम पर पहुँच गया क्योंकि जलमार्गों का उपयोग करके यूरोप जाने का प्रयास करते समय हज़ारों शरणार्थी डूब गए और इनमें से लगभग 10 लाख ग्रीस एवं इटली पहुँच गए।

वर्ष 2016 में तुर्की ने एक समझौते के तहत प्रवासियों को यूरोपीय संघ में प्रवेश से रोकने पर सहमति जताई जिसके बदले में यूरोपीय देशों ने तुर्की द्वारा अपनी धरती पर शरणार्थियों का प्रबंधन करने में मदद करने के लिये आर्थिक सहायता देने का वादा किया।

हालाँकि शरणार्थियों के प्रबंधन हेतु असमर्थता पर ज़ोर देते हुए फरवरी 2020 में तुर्की ने कहा कि वह वर्ष 2016 के समझौते का सम्मान नहीं करेगा।
तुर्की की आलोचना: आलोचकों ने सीरिया के इदलिब प्रांत (Idlib Province) जहाँ पूर्ववर्ती सप्ताह में युद्ध जैसे हालात उत्पन्न हो गए थे, में अपने सैन्य अभियान के मद्देनज़र पश्चिमी सहयोगियों को एक मंच पर लाने के लिये प्रवासी मुद्दे को एक अस्त्र के रूप में प्रयोग करने के कारण तुर्की को दोषी ठहराया है।
सीरिया का इदलिब प्रांत अंतिम विद्रोही कब्ज़े वाले क्षेत्रों में से एक है जहाँ बड़े पैमाने पर संघर्ष की वापसी की आशंकाओं ने सीरियाई लोगों में तुर्की सीमा की ओर प्रवास की संभावनाओं को बढ़ा दिया था।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (United Nations High Commissioner for Refugees-UNHCR) के अनुसार, तुर्की में 4.1 मिलियन शरणार्थी रह रहे हैं जिसमें 3.7 मिलियन सीरियाई लोग शामिल हैं।

ग्रीस का पक्ष: ग्रीस ने कहा कि तुर्की शरणार्थियों का उपयोग ‘एक प्यादे’ की तरह कर रहा है।
मार्च, 2020 में हज़ारों प्रवासियों ने ग्रीस और बुल्गारिया के माध्यम से यूरोप में प्रवेश करने का प्रयास किया किंतु कोरोनोवायरस महामारी और सीमा पुलिसिंग की शुरुआत के कारण यह संख्या तेज़ी से गिर गई।

वैश्विक शरणार्थी संकट पर UNHRC की एक रिपोर्ट:
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (United Nations High Commissioner for Refugees-UNHCR) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 के अंत तक लगभग 79.5 मिलियन लोग विभिन्न कारणों से विस्थापित हुए, जो कि वैश्विक आबादी का लगभग 1 प्रतिशत हैं, इसमें से अधिकांश बच्चे थे।
रिपोर्ट के अनुसार, 79.5 मिलियन में से, 26 मिलियन क्रॉस-बॉर्डर शरणार्थी थे, 45.7 मिलियन लोग आंतरिक रूप से विस्थापित थे, 4.2 मिलियन शरण (Asylum) माँगने वाले थे और 3.6 मिलियन वेनेज़ुएला से अन्य देशों में जाने वाले विस्थापित थे।

इतनी बड़ी मात्रा में विस्थापन के मुख्य कारणों में उत्पीड़न, संघर्ष, हिंसा और मानवाधिकारों के उल्लंघन आदि को शामिल किया जा सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014 से सीरिया शरणार्थियों की उत्पत्ति के लिये एक प्रमुख देश रहा है। वर्ष 2019 के अंत में दुनिया भर के 126 देशों में कुल 6.6 मिलियन सीरियाई शरणार्थी थे।

ग्रीस-तुर्की: ऐतिहासिक संबंधों पर एक नज़र
सदियों से तुर्की और ग्रीस ने एक विविध प्रकार का इतिहास साझा किया है। वर्ष 1830 में ग्रीस ने आधुनिक तुर्की के अग्रदूत ‘ऑटोमन साम्राज्य’ (Ottoman Empire) से स्वतंत्रता हासिल की।

वर्ष 1923 में दोनों देशों ने अपनी मुस्लिम और ईसाई आबादी का आदान-प्रदान किया। यह दूसरा सबसे बड़ा मानव प्रवासन था केवल भारत के विभाजन के समय हुआ प्रवासन ही इतिहास में इससे बड़ा था।

दोनों देश दशकों पुराने साइप्रस विवाद (Cyprus Conflict) को लेकर एक-दूसरे का विरोध करते रहते हैं और एजियन सागर (Aegean Sea) में अन्वेषण अधिकारों को लेकर दोनों देशों के मध्य दो अवसरों पर युद्ध जैसे हालात भी बन चुके हैं।

एजियन सागर भूमध्य सागर का ही एक विस्तृत भाग है। यह दक्षिणी बाल्कन क्षेत्र और अनातोलिया प्रायद्वीप के बीच में स्थित है इस प्रकार यह ग्रीस और तुर्की के मध्य स्थित है।

हालाँकि दोनों देश 30 सदस्यीय नाटो (NATO) गठबंधन का हिस्सा हैं और तुर्की आधिकारिक तौर पर यूरोपीय संघ की पूर्ण सदस्यता के लिये एक उम्मीदवार है जबकि ग्रीस यूरोपीय संघ का एक सदस्य है।

पूर्वी भूमध्यसागरीय विवाद
(The Eastern Mediterranean Dispute):

40 वर्षों तक तुर्की और ग्रीस ने पूर्वी भू-मध्य सागर और एजियन सागर के अधिकारों पर असहमति जताई है, जहाँ तेल एवं गैस के भंडार होने की संभावनाएँ हैं।
21 जुलाई, 2020 को तुर्की ने घोषणा की कि ड्रिलिंग जहाज़ ओरुक रीस (Oruc Reis) तेल एवं गैस के लिये समुद्र के एक विवादित हिस्से की छान-बीन करेगा। ग्रीस ने अपनी वायु सेना, नौसेना और कोस्टगार्ड को हाई अलर्ट पर रखकर इसका प्रत्युत्तर दिया किंतु वार्ता के बाद तुर्की का ड्रिलिंग पोत सितंबर, 2020 में पीछे हट गया था।

अक्तूबर, 2020 की शुरुआत में तुर्की ने पुनः अपनी योजना का क्रियान्वयन करना शुरू किया जिसके तहत कास्तेल्लोरिज़ो (Kastellorizo) नामक एक ग्रीक द्वीप के पास भूकंपीय सर्वेक्षण का संचालन किया।

ग्रीस जो कास्तेल्लोरिज़ो द्वीप के आसपास के जल क्षेत्र को अपना मानता है, ने ड्रिलिंग जहाज़ की गतिविधियों को ‘क्षेत्र में शांति के लिये प्रत्यक्ष संकट’ के रूप में वर्णित किया है।

‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS) पर एक हस्ताक्षरकर्त्ता के रूप में ग्रीस का कहना है कि पूर्वी भूमध्य सागर में अपने द्वीपीय क्षेत्रों पर विचार करते हुए इसकी महाद्वीपीय शेल्फ (Continental Shelf) की गणना की जानी चाहिये।

जबकि तुर्की जिसने UNCLOS पर हस्ताक्षर नहीं किया है, का तर्क है कि देश की महाद्वीपीय शेल्फ की गणना मुख्य भूमि से की जानी चाहिये। इसके अतिरिक्त यह भी स्पष्ट किया कि ड्रिलिंग जहाज़ ओरुक रीस द्वारा संचालित की गई अन्वेषण गतिविधियाँ ‘पूरी तरह से तुर्की के महाद्वीपीय शेल्फ’ के अंतर्गत थी।