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कभी तक़दीर का मातम कभी दुनियाँ से गिला
मधुसूदन उपाध्याय =============== कभी तकदीर का मातम कभी दुनियाँ से गिला _____________________________________ इस शीर्षक से शकील बंदायूनी की एक गजल के एक मकते को आधार बना कर यह लिख रहा हूँ। शुद्ध मन से तथा ईश्वर को साक्षी रखकर । जो लोग भाग्य नहीं मानते उनके लिए यह सब कुछ एक बार सोचने का विषय […]
चुप रहा, कुछ ना कहा, तो क्या?…यह भी एक प्यार का इज़हार है—-पूर्व जज, दिनेश कुमार शर्मा की कविता!
Dinesh Kumar Sharma Former District Judge Patna, India ======== मित्रों, नमस्कार। काव्य-रचना, एक खास अंदाज़ में, अहसासों की संवाहिका है। उसमें, भाव-पक्ष के अतिरिक्त, विचार-पक्ष भी हो सकते हैं। विचारों से असहमति हो सकती है– स्वाभाविक है।किंतु, तब भी प्रस्तुति के स्तर पर कविता का आनंद हम उठा सकते हैं। अभी-अभी एक कविता (ग़ज़ल) अवतरित […]
वह महज़ 14 साल की थी जब पहली बार घर से भागी…
नज़रबट्टू (अपना अपना नजरिया ) रवि हाल में ही एक ढाबे में मैनेजर की जगह नियुक्त हुआ था | अच्छा खासा ढाबा था और यह नौकरी में बड़ी मुश्किल से उसे मिली थी | जब कोई चीज़ मुश्किल से मिलती है तो उसकी कीमत भी पता चलती है |वो बड़ी सतर्कता से काम में जुटा […]