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एक ही समय में इस्राईली, तुर्की और सऊदी अरब के अधिकारियों की आज़रबाइजान यात्रा का क्या राज़ है, जानिये!

इस्राईल के रक्षा मंत्री बेनी गैंट्ज़ की बाकू की यात्रा के एक दिन बाद ही सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फ़ैसल बिन फ़रहान आज़रबाइजान की यात्रा पर पहुंचे और वहां उन्होंने अपने आज़री समकक्ष जैहून बायरामोफ़ से मुलाक़ात के अलावा, इस देश के राष्ट्रपति इहलाम अलीओफ़ से भी मुलाक़ात की।

हालांकि बिन फ़रहान की बाकू यात्रा का उद्देश्य सऊदी अरब-आज़रबाइजान के संबंधों की 30वीं सालगिरह बताया गया था, लेकिन ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि इस यात्रा का असली मक़सद यही था, जिसकी घोषणा की गई है। इस्राईली रक्षा मंत्री की बाकू की यात्रा के एक दिन बाद और फ़ैसल बिन फ़रहान की यात्रा से पहले तुर्क रक्षा मंत्री ख़ुलूसी आकार ने बाकू का दौरा किया और अपने आज़री समकक्ष से मुलाक़ात की। यानी ऐसे समय में कि जब बाकू तुर्किए और इस्राईल के सैन्य शिष्टमंडलों की मेज़बानी कर रहा था, सऊदी विदेश मंत्री भी वहां पहुंच गए। इसे कोई संयोग क़रार नहीं दिया जा सकता है।

इसलिए इस रहस्य का पता लगाने के लिए कि बाकू एक ही साथ क्यों तुर्किए, इस्राईल और सऊदी अरब के प्रतिनिधिमंडलों की मेज़बानी कर रहा है, मध्यपूर्व के राजनीतिक घटनाक्रमों और इससे भी आगे जाकर यूक्रेन और रूस युद्ध पर नज़र डालना होगी।

मध्यपूर्व के घटनाक्रमों की जहां तक बात है, ज़ायोनी शासन फ़िलिस्तीनी मुद्दे को ख़त्म करने और संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों से यू-टर्न लेने के लिए फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों से संबंधों को सामान्य बनाने का प्रयास कर रहा है, ताकि इस तरह से अरबों और मुसलमानों की सहमति प्राप्त कर सके या कम से कम अरबों और मुसलमानों की दुश्मनी के केन्द्र से ख़ुद को हटा सके। गैंट्ज़ की बाकू यात्रा को, इस्राईली मीडिया ने तथाकथित इब्राहीमी समझौते का ही सिलसिला क़रार दिया और दावा किया कि इससे बाकू को अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में अपना दूतावास खोलने के लिए राज़ी किया जा सकता है। जिस तरह से सऊदी अरब की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद यूएई और बहरीन ने यह क़दम उठाया है।

जैसा कि अकसर विश्लेषकों का मानना है, ज़ायोनी शासन द्वारा आज़रबाइजान पर अधिक ध्यान देने का एक मुख्य कारण, इस देश की सरज़मीन से ईरान के लिए चुनौतियां उत्पन्न करना है। इस्राईल ने ईरान की सीमा से 7 किलोमीटर की दूरी पर आज़रबाइजान की सीमा में जंगलान इलाक़े में एक डिजिटल विलेज भी स्थापित किया है, ताकि अपनी आतंकवादी और जासूसी गतिविधियों को गति प्रदान कर सके। इसी तरह से जल संकट के प्रबंधन में बाकू की मदद के बहाने ज़ायोनी शासन ईरान और आज़रबाइजान के बीच मदभेद उत्पन्न करने की साज़िश रच रहा है।

आज़ारबाइजान में अपनी गतिविधियों के सहारे ज़ायोनी शासन इस क्षेत्र में जिन उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहता है, वह तुर्किए और सऊदी अरब के उद्देश्यों से मेल खाते हैं। इसीलिए कहा जा सकता है कि एक ही समय में इस्राईल, तुर्किए और सऊदी अरब के अधिकारियों की बाकू यात्रा का रहस्य भी इन्हीं उद्देश्यों में छिपा हुआ है।