साहित्य

मर्द के अंदर भी होती है रोने की इच्छा, चेहरे की झूठी मुस्काने धोने की इच्छा – सीताराम “पथिक” की कवितायेँ पढ़िये!

Sitaram Pathik
Rewa, India

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💐मां की ढूंढ कमी नहीं पाए!
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ठीक ढंग से जी नहीं पाए।
जख्मों को हम सी नहीं पाए।
बादल जैसे फट पड़ते हैं,
लोग क्रोध को पी नहीं पाए।
कोशिश की दुनिया वालों ने,
मां की ढूंढ कमी नहीं पाए।
धनवानों के घर में सब कुछ,
लेकिन वहां खुशी नहीं पाए।
छप्पन व्यंजन मिले भले ही,
आग्रह की एक रोटी नहीं पाए।
प्यार दबा सहमा सिकुड़ा सा,
उगता जहां नमी नहीं पाए।
शहर गए हम लेकिन जी भर,
ले लें हवा खुली नहीं पाए।
प्रतिभाएं वे ही कुंठित हैं,
जिन में आग जली नहीं पाए।
हर मन में बबूल वन दिखता,
लेकिन कहीं नदी नहीं पाए।
ठीक ढंग से जी नहीं पाए।
जख्मों को हम सी नहीं पाए।
-सीताराम “पथिक”
मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित!


Sitaram Pathik
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🤵मर्द के अंदर भी!
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मर्द के अंदर भी होती है रोने की इच्छा।
चेहरे की झूठी मुस्काने धोने की इच्छा।
पत्थर दिल का तमगा उसको मिला जमाने से,
रखता है जबकि वह नाजुक कोने की इच्छा।
जिम्मेदारी का हर गट्ठर उसके कंधे पर,
परमार्थी बनकर वह रखता ढोने की इच्छा।
सदा सुरक्षित रखता ढाई अक्षर बीजों को,
उचित समय में उचित जगह पर बोने की इच्छा।
पाने की प्रत्याशा उसके अंदर जीवित है,
मगर नहीं दिखती कुछ भी, कभी खोने की इच्छा।
स्त्री के प्रायः सब सपने उस पर निर्भर हैं,
स्त्री कहतीं हैं वह रखता सिर्फ सोने की इच्छा।
अपना जो है उसे बांटता सारी दुनिया में,
दूजे से नहीं रखता वह एक दोने की इच्छा।
मर्द के अंदर भी होती है रोने की इच्छा।
चेहरे की झूठी मुस्काने धोने की इच्छा।
-सीताराम “पथिक”
मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित!