साहित्य

दिल ज़ोरों से रोया है फिर….कुछ तो है जो खोया है फिर….By-सरिता जैन

Sarita Jain
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जब भी अपनी अना से लड़ती हूँ
इक मुख़ालिफ़ हवा से लड़ती हूँ।
इन्तिहा दास्ताँ की करनी है
इस लिए इब्तिदा से लड़ती हूँ।
दोस्तों की जफ़ा नहीं समझी
दुश्मनों की वफ़ा से लड़ती हूँ।
मुझ पे गिरती हैं बिजलियाँ सी कई
जब भी काली घटा से लड़ती हूँ।
सर पे माँ बाप की दुआ लेकर
रोज़ ही बद्दुआ से लड़ती हूँ।
सरिता जैन
फोटो… के.शंकर सौम्य जी के सौजन्य से
बहुत बहुत आभार …

Sarita Jain
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डूबती नावों का मन्ज़र देख कर
हँस न पाया वो समंदर देख कर।
बदली बदली है अज़ीज़ों की नज़र
वक़्त के माथे पे तेवर देख कर।
तेरे मक़तल का अजब दस्तूर है
हँस दिया मक़तूल ख़न्जर देख कर।
फ़त्ह की सूरत भी है कितनी अजब
डर गए लाशों के लश्कर देख कर।
जीत कर भी खाली हाथों ही गया
फ़लसफ़ा समझे सिकंदर देख कर।
सरिता जैन

Sarita Jain
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दिल ज़ोरों से रोया है फिर
कुछ तो है जो खोया है फिर।
ख़्वाबों के बिस्तर से उठकर
क़ब्र में कोई सोया है फिर।
अक्सर पहले पाप किया है
अपने मन को धोया है फिर।
इक ख़्वाहिश पहले कुचली है
सपना नया संजोया है फिर।
किसको नफ़रत है फूलों से
किसने काँटा बोया है फिर।
सरिता जैन

Sarita Jain
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आहें सुनती हैं बस सदाओं में
कौन तन्हा नहीं है राहों में।
तोहमतें मुझ पे किस लिए आईं
कौन उड़ता नही हवाओं में।
फ़ैसला बिक गया सरे -बाज़ार
मेरा क़ातिल भी था गवाहों में।
ढूंढने से भी अब नहीं मिलता
कोई इंसान इन ख़ुदाओं में।
खेल चारागरों का है शायद
कुछ असर ही नही दवाओं में।
आसमां को छुआ है तब “सरिता”
मां ने जब भी उठाया बाहों में।
सरिता जैन

Sarita Jain
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मेरे अंदर है कमरा तीरगी का
दरीचा कोई खोले रौशनी का।
समंदर साथ है सदियों से लेकिन
वही आलम है मेरी तिश्नगी का।
किसी दिन देख कर आंखे तुम्हारी
बनाउंगी मैं चेहरा ज़िन्दगी का।
ज़रा सी लाओ ख़ुद में ख़ाकसारी
असर फिर देखना तुम बंदगी का।
वबा हर दिन बदल लेती है चेहरा
ख़ुदा जाने क्या होगा इस सदी का।
मुहब्बत, बस मुहब्बत,बस मुहब्बत
यही इक फ़लसफ़ा है ज़िंदगी का।
सरिता जैन