धर्म

#मुसलमानो_के_खिलाफ़ मज्लिसे_शूरा : #SiratunNabiSeries Part-11

मोहम्मद सलीम
=================
·
#मुसलमानो_के_खिलाफ #मज्लिसे_शूरा
#SiratunNabiSeries Post-11
जब तक हुजूर सल्ल० तन्हा रहे, उस वक्त तक न तो मक्का के #कुफ्फार को कोई चिन्ता हुई और न घबराहट, बल्कि वे हुजूर सल्ल० की बातों का मजाक उड़ाते रहे, समझते रहे कि दो चार दिन तब्लीग़ करने के बाद खुद ही खामोश हो जाएंगे, लेकिन जब सुना कि आप सल्ल० की तब्लीग से बहुत से अरब मुसलमान हो चुके हैं, तो डरे, चिन्ता बढ़ने लगी और हुजूर सल्ल० के खिलाफ़ एक आम जोश पैदा हो गया।
इस बीच हुजूर सल्ल० पर वह्य नाजिल हुई कि ‘(कह दो ऐ मुहम्मद सल्ल. ! कि) जिन चीजों को तुम पूजते हो, वे दोजख के इंधन होंगे।
हुजूर सल्ल० ने सब को यह आयत बुलंद आवाज से कह सुनायी,
इस से वे और भड़क उठे और आप पर बेजा #गुस्ताखियों की बौछार शुरू कर दी। इतना तंग किया कि हुजूर सल्ल० का घर से निकलना मुश्किल हो गया, लेकिन आप अपनी तब्लीग में बराबर लगे रहे और उस में किसी किस्म की कोई कोताही न की।
चूंकि मुसलमानों की तायदाद में हर दिन बढ़ोतरी हो रही थी, इसलिए है हुजूर सल्ल० ने जरूरत महसूस की कि कोई ऐसा मकान तज्वीज किया जाये, जिस में दो घड़ी के लिए मुसलमान हर दिन जमा होकर कुरआन शरीफ़ पढ़ें और याद किया करें। चुनांचे अरकम का मकान जो आबादी से एक तरफ़ था, तज्वीज किया गया।
हुजूर सल्ल० उस मकान पर तश्रीफ़ ले जाते, तमाम मुसलमान भी मक्का के कुफ्फार की नजरों से बच-बचा कर एक-एक दो-दो कर के आ जाते, हजूर सल्ल० के इर्शादात सुनते, नमाज़ पढ़ते, कुरआन शरीफ़ याद करते और खामोशी से अपने-अपने घरों को वापस हो जाते।
अगरचे यह सब काम #खामोशी से हो रहा था, भिर भी कुरेश वालों ने पता लगा ही लिया कि कौन-कौन मुसलमान हो गया है, ये लोग कहां जमा होते हैं और इन की तायदाद क्या है ? इन बातों ने उन्हें और भड़का दिया।
भड़कने की एक वजह यह भी थी कि जो लोग मुसलमान हो गये थे, उन में से ज्यादा तर उन के गुलाम थे या उन के गरीब रिश्तेदार थे।

इस घबराहट में उन्हों ने तमाम कबीलों के सरदारों को मश्विरे के लिए बुला लिया। #मज्लिसे_शूरा का इज्लास शुरू हुआ।
अबू जहल मीटींग का सरदार बना। अबू लहब ने खड़े हो कर कहा, भाइयो ! आज हम सब इस लिए जमा हुए हैं कि हमारे मजहब को ठेस लगायी जा रही है, हमारे मजहब को बुरा-भला कहा जा रहा है। जिन बुतों को हम और हमारे बाप-दादा पूजते आ रहे हैं, अब उन को जलील किया जा रहा है। अब आप लोग इस की रोक-थाम का उपाय सोचें।
#अबू_लहब के बाद #अबू_सुफ़ियान खड़ा हुआ और उस ने कहा, हमारे लिए कितने शर्म की बात है कि हमारे सामने हमारे माबूदों को बुरा-भला कहा जाए और हम चुप-चाप बैठे देखा करें। क्या हम इतने नामर्द, बुजदिल और बे-हिस हो गये हैं कि हमारे माबूदों को जलील किया जाए और हमारा खन न खोले।
अगर हमारी बे-हिसी इस हद तक हो गयी, तो हम को जिंदा रहने का हक नहीं है, या तो जोश व गैरत से उठो, अपने बुतों की बुराई करने वालों का खात्मा कर दो या अपने हाथ से अपने गले काट कर मर जाओ।
अबू सुफ़ियान का ताल्लुक #बनू_उमैया खानदान से था। बनु उमैया बनु हाशिम के मुकाबले का था। यह उमवी यह कैसे देख सकता था कि एक हाशमी का असर बढ़े। हुजूर सल्ल० #हाशमी थे, इस लिए अबू सुफ़ियान ले भड़काने वाली तकरीर कर के लोगों के दिलों को गरमा दिया। हर तरफ़ से आवाजें आने लगीं, हम क्यों मरें! अपने माबूदों को रुसंवा करने वालों का खात्मा ही क्यों न कर दिया जाए।
#हजरत_उमर ने खड़े हो कर कहा, ठहरो सोच-समझ कर बातें करो। क्या तुम यह नहीं जानते कि हमारे माबूदों को झूठा करार देने वाला, बुतपरस्ती की बुराई करने वाला मुहम्मद (सल्ल०) है, जो कबीला बनी हाशिम से है। कबीला बनी हाशिम कुरैश में सब से ज्यादा इज्जतदार क़बीला है।

तमाम कबीले इस कबीले का एहतिराम करते हैं। अगर किसी आदमी ने मुहम्मद (सल्ल०) को क़त्ल कर डाला, तो #बनी_हाशिम का खानदान उन का इन्तिकाम लेने के लिए ऐडी चोटी का जोर लगा देगा। हाशिमियों के साथी क़बीले उन का साथ देंगे। नतीजा यह होगा कि एक बार फिर तमाम अरब में लड़ाई की चिंगारियां भड़क उठेगी और यह कोई नहीं जानता कि इस लड़ाई का नतीजा क्या होगा, कितने खानदान बर्बाद हो। जाएंगे और कितने कबीलों का खात्मा हो जाएगा।
अबू जहल ने हजरत उमर से पूछा, तो क्या हम मुहम्मद (सल्ल०) से कुछ न कहें ? अपने माबूदों की तौहीन इसी सरगर्मी के साथ करने दी जाए?
#उमर बोले, कम से कम मैं यह नहीं चाहता कि वह कत्ल कर दिये जाएं, इस से बड़े फ़ितने के पैदा होने का खतरा है, बल्कि मुनासिब यह है कि उन्हें समझाओ, उन पर सख्तियां करो, लेकिन #क़त्ल_न_करों।
और जो लोग मुसलमान हो गये हैं, उन के साथ क्या व्यवहार किया जाए? अबू जहल ने पूछा। .. वे जिन लोगों के रिश्तेदार या गुलाम हैं, वही लोग उन पर इस कदर सख्तियां करें, वे नये धर्म से मुंह फेर कर फिर अपने माबूदों की ओर लौट आएं, उस ने मश्विरा दिया।
वलीद बिन मुगिराह ने कहा, मश्विरा तो मुनासिब है। मैं इस तज्वीज पर इतना और बढ़ाता हूं कि जो लोग मुसलमान हो गये हैं, उन पर सब के सामने सख्तियां की जाएं, ताकि दूसरों को सबक मिले और फिर मुसलमान होने की हिम्मत न कर सकें।
अब्बास बिन वाइल सहमी ने कहा, मेरे ख्याल में यह तज्वीज मुनासिब है। इस वक्त जो लोग मुसलमान हुए हैं, उन में ज्यादातर गुलाम और मुफ्लिस हैं। जब उन पर सख्तियां होंगी, तो वे अपने बाप-दादा के मजहब की तरफ़ लौटेंगे और चुकि लोगों को उन की हालत देख कर सबक मिलेगा, इस लिए फिर कोई नये मजहब को अख्तियार न करेगा।
सब ने इस तज्वीज की जोरदार ताईद की और सबं की राय से यही तै पाया कि मुसलमानों पर सब के सामने इतनी सख्तियां की जाएं कि वे मजबूर हो कर इस्लाम छोड़ दें और अपने बाप-दादा का मजहब पकड़ लें।
इस तज्वीज़ के बाद उत्बा बिन रबीआ ने कहा, अब उन लोगों के नाम बता दिये जाएं, जो मुसलमान हो गये हैं।
अबू जहल ने कहा, मैं ने जहां तक हो सका, मुसलमानों की सूची तैयार कर ली है। इस में सिर्फ एक दो ही ऐसे असरदार बुजुर्ग हैं, जिन का हम कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं, वरना सब के सब हमारे काबू के हैं और हम उन पर भरपूर सख्तियां कर सकते हैं। जो नाम मुझे इस वक्त तक मालूम हो सके हैं, मैं बताता हूं। #हजरत_खदीजा रजि०, #हजरत_अबू_बक्र सिद्दीक रजि०, #हजरत_अली रजि० #हज़रत_उस्मान रजि०, ये लोग कुरैश के शरीफ़ों में से हैं और इन लोगों पर सख्तियां करना मुश्किल है।
एक बूढ़े आदमी ने खड़े हो कर कहा, इस में से एक उस्मान है, जो मेरा भतीजा है। अगर उस ने इस्लाम न छोड़ा, तो उसे मारते-मारते मार डालूंगा।