धर्म

#हुजूर सल्ल० की पीठ पर ऊँठ की ओझड़ी डालना : #SiratunNabiSeries Part-10

मोहम्मद सलीम
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#हुजूर सल्ल० की पीठ पर #ऊँठ_की_ओझड़ी डालना
#SiratunNabiSeries Post-10
एक दिन आप बैतुल्लाह शरीफ़ में नमाज़ पढ़ रहे थे। अबू जहल भी मौजूद था। अबू जहल ने कहा, बाहर अभी ऊंट जिब्ह हुआ है। उस की #ओझड़ी पड़ी हुई है। कोई उसे उठा कर लाओ और मुहम्मद (सल्ल०) के ऊपर डाल दो।
#उक्बा ने कहा, मैं लाता हूं।
चुनांचे वह गया और दो आदमियों को साथ ले कर ओझडी उठवा लाया। जब हुजूर सल्ल. सज्दे में गये, तो उस ने ओझड़ी आप सल्ल० की पीठ पर रख दी।
दुश्मन अपनी इस शैतानी हरकत पर खिलखिला कर हंसने लगे। इस मज्मे में हजरत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद भी मौजूद थे। ये मुसलमान हो चुके थे। दिल में दुश्मनों की इस हरकत पर कुढ़ रहे थे, लेकिन कुछ कहने या ओझड़ी उठाने की हिम्मत न होती थी। चुपचाप खड़े रहे।
इत्तिफ़ाक़ से #हजरत_फातमा (र.अ.), जो हुजूर सल्ल० की सब से छोटी साहबजादी थी, उधर आ निकलीं। आप अभी बहुत छोटी थीं। अपने अब्बा की यह हालत देख कर बहुत दुखी हुई। उन्होंने अपने नन्हे-नन्हे हाथों से ओझड़ी को सरकाया और खड़े हो कर तमाम दुश्मनों को भला-बुरा कहा। किसी को उन से कुछ कहने की हिम्मत न हुई।
जब हुजूर सल्ल० नमाज से फ़ारिग हुए, तो आप ने हजरत फातमा की पेशानी चुम कर कहा, बेटी ! क्यों उन्हें बुरा कह रही हो? उन की आंखें नहीं हैं। अगर ये पहचान लेते तो ऐसी हंसी उड़ाने की बातें न करते। तुम उन को बुरा भला न कहो, बल्कि दुआ करो कि अल्लाह उन्हें देखने और समझने की ताकत अता फरमाये।
इस के बाद आप सल्ल० हज़रत फातिमा को अपने साथ ले कर वापस चले आए।
मुसीबतें यहीं नहीं खत्म हो गयीं, बल्कि दिन-ब-दिन बढ़ती ही गयीं।
धीरे-धीरे काफ़िरों को भी मालूम हो गया कि कौन-कौन से लोग मुसलमान हो गये हैं। इस लिए उन्हों ने एक बड़ी #मज्लिसे_शूरा बिठाने का इरादा कर लिया और तैयारियां शुरू हो गयीं।