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जेल में मेरे बेटे उमर ख़ालिद से मेरी मुलाक़ात….एक बार ज़रूर पढ़ें!

Ansar Imran SR
@ansarimransr
जेल में मेरे बेटे उमर ख़ालिद से मुलाक़ात

उमर ख़ालिद, जिसे 2020 की दिल्ली दंगों में शामिल होने के झूठे इल्ज़ाम में यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किया गया था, पाँच साल से जेल में बंद है। उसकी माँ सबीहा ख़ानम ने तिहाड़ जेल में मुलाक़ात का ये बयान लिखा है।

8 जुलाई 2025

जेल में अपने बेटे उमर से मिलकर मेरी रूह को नई ताक़त मिली।

पिछले दो हफ़्ते से उमर का कोई वीडियो कॉल नहीं आया। पता चला टेक्निकल दिक़्क़त की वजह से मुलाक़ात नहीं हो पा रही। बेचैनी होने लगी क्योंकि यही आधी-अधूरी मुलाक़ात का सहारा था। दिल भारी था, आँखों से आँसू टपकते रहे। फिर अचानक ख़ुदा की मर्ज़ी से सीधी मुलाक़ात का ख़्याल दिल में आया।

पति से कहा तो उन्होंने काम का बहाना किया। मैंने हिम्मत न हारी और अकेले ही जेल चल पड़ी। उम्र के इस पड़ाव पर जेल जाना बहुत मुश्किल काम है। मगर जब इंसान ख़ुदा पर भरोसा रखे तो मुश्किल रास्ते भी आसान हो जाते हैं।

आज महीनों बाद बेटे से आमने-सामने मिलने जा रही थी। दिल में एक अजीब सी घबराहट थी। इसे सीधी मुलाक़ात कहते हैं मगर ये भी कितनी अजीब है—हमारे बीच दो काँच की दीवारें। एक तरफ हम, दूसरी तरफ उमर। न छू सकते हैं, न साफ़ देख सकते हैं। बस धुँधली सूरत दिखती है और इंटरकॉम से बात होती है।

जुमे के दिन सुबह 9 बजे घर से निकली। तिहाड़ जेल जामिया से बहुत दूर है, रास्ता भी भरा रहता है। करीब एक घंटे में पहुँची। उमर के लिए चमड़े की चप्पल ले गई थी, मगर चेकिंग पर रोक लग गई। बहुत मिन्नतें कीं मगर माने नहीं, चप्पलें वहीं छोड़नी पड़ीं।

अंदर अपनों से मिलने वालों की लंबी क़तारें थीं—औरतें, मर्द, बच्चे। आज ज़्यादा भीड़ लग रही थी। मैं भी एक लाइन में लग गई। पीछे दो औरतें अपने क़ैदियों के बारे में बता रही थीं—एक का बेटा बलात्कार के केस में, दूसरी का देवर भी उसी जुर्म में। मैं चुप रही। सोचा, कैसे बताऊँ कि मेरा बेटा बग़ैर किसी जुर्म के पाँच साल से जेल में सड़ रहा है?

दिमाग़ में उमर की दो बार मिली पैरोल की याद आई—बहन और चचेरे भाई की शादी के लिए सात-सात दिन। वो ख़ुशी के पल कितनी जल्दी गुज़र गए। इन्हीं ख़्यालों में खोई थी कि मेरी बारी आ गई।

फिर उमर के खर्च के पैसे जमा कराने की और लंबी क़तार! क़तारों में जितना वक़्त बिताया, उससे कहीं कम वक़्त उमर से बात कर पाई। इसके बाद जेल के भीतर जाने की लाइन लगी।

पहले जूते एक्स-रे से गुजरे, फिर बॉडी चेक हुआ। फिर जेल नंबर 2 तक पैदल चलना पड़ा।

मुलाक़ात वाली जगह पर एक महिला स्टाफ ने पर्ची देखकर प्यार से कहा: “ओह! आप उमर की अम्मी हैं? मैंने उसके दोस्तों को देखा है, मगर आपको पहली बार देख रही हूँ।” उन्होंने अंगूठे का निशान लगवाया और वेटिंग रूम में बिठा दिया। उनकी बातों में उमर के लिए इज्ज़त झलक रही थी।

मैंने सोचा—ये उमर के अच्छे अख़लाक़ की वजह से होगा। जेल में जहाँ गालियाँ आम बात हैं, वहाँ अदब से पेश आने वाला क़ैदी सबका दिल जीत लेता है। उमर को तो गुस्सा भी बहुत कम आता है। अब जेल के भीतर हर कोई जानता है कि उमर बेगुनाह है, सिर्फ़ सरकारी ज़ुल्म का शिकार है।

वेटिंग एरिया में चिड़ियों की चहचहाहट सुनकर दिल खुश हो गया। शहरों में हम प्रकृति की इन नेमतों से महरूम रह गए हैं। लगा जैसे जेल की दीवारों के भीतर उड़ने वाली चिड़ियाँ कह रही हों: “हम यहाँ भी आज़ाद हैं।” सोचा—दीवार के इस पार हम ख़ुद को आज़ाद कहते हैं, उस पार उमर जैसे अनगिनत लोग बेबस क़ैद में हैं।

उमर जैसे शख़्स के लिए, जो जंतर-मंतर पर चिल्लाता था, जो इंसाफ़ के लिए देश भर घूमता था, ये क़ैद बहुत सख़्त इम्तिहान है। पाँच लंबे साल… अगर किताबों का शौक़ न होता तो शायद वक़्त काटना मुश्किल होता। उसने इन पाँच सालों में 300 से ज़्यादा किताबें पढ़ डाली हैं।

तभी लाउडस्पीकर पर उमर ख़ालिद का नाम पुकारा गया। मैं दौड़कर खिड़की के पास पहुँची। उमर ने जेल के भीतर के पेड़ से तोड़ा हुआ एक छोटा सा फूल मेरे लिए लाया था। वो फूल मेरे लिए किसी कीमती तोहफ़े से कम नहीं था।

काँच और सलाखों के पीछे इंटरकॉम से बात हुई:
“अम्मी, बहुत देर लगा दी। मैं तो काफ़ी देर से इंतज़ार कर रहा था।”
मैंने कहा: “बेटा, क़तारें बहुत लंबी थीं।”

उसने घर के हर सदस्य का हाल पूछा—अब्बू की तबीयत, बहनों का कुशल, बच्चों का हाल। जेल के भीतर की ज़िंदगी के क़िस्से सुनाए। मैं हमेशा की तरह उसके खाने-पीने और सेहत को लेकर परेशान थी:

“तबीयत ठीक तो है? क्या पढ़ रहे हो? बहुत गर्मी तो नहीं लग रही?”

उसने हर सवाल का जवाब दिया और फिर सबका हाल पूछा। बोला: “अख़बारों में अब्बू के कार्यक्रम पढ़ता हूँ। उनसे कहना ज़्यादा सफ़र न करें, अपनी सेहत का ख़याल रखें।”

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