धर्म

बोलते समय सावधान रहो, क्योंकि तुम्हारी हर बात लिखी जाती है और निस्संदेह, तुम पर निगरानी रखने वाले नियुक्त हैं!

निःसंदेह अच्छी वाणी उन महान नेमतों में से एक है जिसे ख़ुदा ने इंसान को अता किया है। इसके माध्यम से मनुष्य अपने विचारों को दूसरों तक पहुँचा सकता है और अपनी भावनाओं, संवेदनाओं तथा इच्छाओं को प्रकट कर सकता है।

इस लेख में पार्स टुडे इस्लाम में बोलने के शिष्टाचार के महत्व पर प्रकाश डालता है।

क़ुरआन मजीद में अल्लाह ने जिन नेमतों का उल्लेख किया है, उनमें से एक है ज़बान और बोलने की क्षमता। जैसा कि क़ुरआन में महान ईश्वर ने फ़रमाया है

“أَلَمْ نَجْعَلْ لَهُ عَینَینِ وَلِسَانًا وَشَفَتَيْنِ”

(क्या हमने उसके लिए दो आंखें, एक ज़बान और दो होंठ नहीं बनाए?)

यह नेमत यानी ज़बान भले ही शरीर के अन्य अंगों की तुलना में आकार में छोटी हो, लेकिन इसकी कार्यक्षमता और महत्व अत्यंत बड़ा है।

बात करना दो भागों में विभाजित होता है:

बाहरी और स्वरूपगत पक्ष: इसमें बोलने का तरीका, भाषा का उपयोग, आवाज़ का लेहजा और वाणी के अन्य बाहरी पहलू आते हैं।

वस्तुगत या सामग्री संबंधी पक्ष: इसमें वाणी का अर्थ, संदेश और वह जानकारी या विचार शामिल हैं जो दूसरों तक पहुँचाए जाते हैं।

क़ुरआन की आयतें जो बोलने के महत्व को दर्शाती हैं:

बोलते समय सावधान रहो, क्योंकि तुम्हारी हर बात लिखी जाती है:

और निस्संदेह, तुम पर निगरानी रखने वाले नियुक्त हैं- प्रतिष्ठित लेखक यानी फरिश्ते

पाक व शुद्ध लोग, पाक बातों की ओर मार्गदर्शित किए जाते हैं:

और उन्हें पाक बात की ओर मार्गदर्शन किया गया

सलाम करना, मोमिनों से बात शुरू करने का सबसे अच्छा तरीका है:

जब वे लोग तुम्हारे पास आयें जो हमारी आयतों पर ईमान लाते हैं, तो उनसे कहो: ‘तुम पर सलाम हो।

वे ही लोग सिफ़ारिश व शफ़ाअत के योग्य हैं, जिनकी बात अल्लाह को पसंद हो:

उस दिन कोई सिफारिश लाभ नहीं देगी सिवाय उसके जिसे रहमान अनुमति दे और जिसकी बात से वह प्रसन्न हो।

दूसरों को नसीहत करते समय नरमी से बोलना अधिक प्रभावशाली होता है:

उससे नरमी से बात करना, शायद वह नसीहत ले या डर जाए।

माता-पिता से आदरपूर्वक और सम्मानजनक भाषा में बात करो:

और उनसे शिष्ट भाषा में बात करो।

लोगों से अच्छे और भले शब्दों में बात करो:

और लोगों से भली बात कहो

अहले बैत की जीवनी और सदाचरण में बातचीत के शिष्टाचार

पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.) फ़रमाते हैं:

जो अल्लाह और क़ियामत के दिन पर ईमान रखता है उसे चाहिए कि भलाई की बात कहे या चुप रहे।

हज़रत अली फ़रमाते हैं:

ऐसी बातों से परहेज़ करो जो अशोभनीय मानी जाती हैं, क्योंकि वे नीच लोगों को तुम्हारे पास खींच लाती हैं और प्रतिष्ठित लोगों को तुमसे दूर कर देती हैं।

इमाम जाफ़र सादिक़ फ़रमाते हैं:

हक़ के बारे में बात करना, ग़लत पर चुप रहने से बेहतर है।

इस्लाम में बातचीत के सबसे महत्वपूर्ण शिष्टाचार

सच बोलना

भलाई के बारे में सोचना

नर्मी और विनम्रता

संक्षिप्त और सारगर्भित बोलना, अर्थहीन बातों से बचना

ध्यानपूर्वक सुनना

बातचीत का अंदाज़ और शब्दावली श्रोता व सुनने वाले के अनुसार होना चाहिए

अच्छे और मीठे शब्दों का चयन

विनम्रता और नम्रता

उपस्थित लोगों का सम्मान करना

बातचीत के दौरान दरूद व सलवात) पढ़ना

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