विशेष

, ,,वो तो इतनी बार मारती है…

बहुत से धार्मिक लोग सेक्स के विरोध में हैं क्योंकि वे अभी तक यह नहीं समझ पाए हैं कि प्रेम क्या है। उन्होंने प्रेम को केवल सबसे स्थूल चीज़ – सेक्स – के रूप में ही जाना है। इसलिए वे इसके विरुद्ध बोलते रहते हैं। उन्होंने प्रेम की सुंदरता को नहीं जाना है; उन्होंने केवल कुरूप सेक्स को जाना है।
यदि आप किसी संत को सेक्स के बारे में बात करते और उसके खिलाफ़ होते हुए देखें, तो निश्चय मान लें कि उसने कभी प्रेम को नहीं जाना है। और जो व्यक्ति प्रेम को नहीं जानता, वह प्रार्थना को भी नहीं जान सकता, चाहे उसकी कितनी भी ऊँची-ऊँची बातें क्यों न हों – क्योंकि सेक्स प्रेम में परिष्कृत होता है, और प्रेम प्रार्थना में परिष्कृत होता है। यह एक क्रमबद्ध प्रक्रिया है, यह एक पिरामिड की तरह है। आधार सेक्स है और शिखर प्रार्थना, और इन दोनों के बीच प्रेम का विस्तार है।
जब आप किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में पूर्ण रूप से उपस्थित होते हैं, और उस उपस्थिति में तृप्त और आनंदित होते हैं, तो एक साझेदारी जन्म लेती है। प्रेम यौन भी हो सकता है, प्रेम में एक यौन आयाम भी हो सकता है, लेकिन तब सेक्स ऊँचाई पर उठ जाता है, तब सेक्स स्वयं स्थूल नहीं रह जाता, तब सेक्स स्वयं ही एक उच्च स्तर पर पहुँच जाता है। तब उसमें एक अलग गुण आ जाता है।
जब आप किसी व्यक्ति से प्रेम करते हैं और सेक्स सहज रूप से घटित होता है – केवल एक साझेदारी के रूप में – न कि किसी लालसा से, न कि आपने इसकी इच्छा की थी, न कि आपने इसे योजनाबद्ध किया था, न कि यह आपके मन में पहले से था, यह वहाँ था ही नहीं – आप केवल उपस्थिति साझा कर रहे थे, और उस साझेदारी से शरीर भी एक-दूसरे में मिलने और घुलने-मिलने लगे, तो फिर सेक्स भी कुछ अलग हो जाता है।
प्रेम में, या तो सेक्स लुप्त हो जाता है या रूपांतरित हो जाता है। पहले यह रूपांतरित होता है, फिर धीरे-धीरे लुप्त हो जाता है। तब प्रेम का एक और, उच्चतर गुण प्रकट होता है – वह है प्रार्थना। प्रार्थना में कोई सेक्स शेष नहीं रह जाता। प्रेम ठीक प्रार्थना और सेक्स के बीच में होता है।

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शोभा अक्षर
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लैंगिक भूमिकाएँ और रूमानी खाँचें
अधिकतर लोग रोमांस में अंतरंग होने से इसलिए घबराते हैं कि कहीं अभी तक उनका एक दूसरे की नज़रों में बना कंडीशंड स्त्रियोचित या पुरुषोचित व्यक्तित्व का किला भर-भरा कर ना गिर जाए! मसलन जिन गुणों से दो लोग एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए थे वे अंतरंग होने पर क्षणिक और भ्रामक लगें!

अंतरंगता सबसे पहले बाहरी-ऊपरी पहचान को हटाकर अंदरूनी भले ही कंडीशंड व्यक्तित्व, से रूबरू कराता है।

पितृसत्ता तो अवचेतन में भी भय पैदा करती है, वह डर इन निरर्थक बातों से भी घबराहट पैदा करता है जैसे, अंतरंग होने पर शरीर में चर्बी कहाँ-कहाँ से कितनी निकली है, यह पता चल जाएगा! मेकअप के बिना जो चेहरा है, उसकी बनावट, रंग आदि कहीं सब बिगाड़ न दें! कोई आदत या हरकत सामने हो गई तो कलई खुल जाएगी! मसलन रूमानी खाँचें में जो सब फिट कर ढका हुआ था, उसके ऊपर का पर्दा कहीं हट गया तो! तो, ऐसे भय वाला संबंध चाहिए क्यों? यहीं, रूमानी जुनून बल्कि प्रेमांधता (infatuation)में अधिकतर लोग ख़ुद के आत्म-प्रेम (सम्मान) को दरकिनार कर, अपमानजनक व्यवहार स्वयं के लिए ख़ुद चुन लेते हैं।

दूसरा, अंतरंग हो कर यह आज़माना कि इसकी लैंगिक भूमिका, गर्ल फ्रेंड/बॉयफ्रेंड या विवाहयोग्य है कि नहीं! मसलन, पुरुष के संदर्भ में कि पैसा वाक़ई ठीक-ठाक कमाता है कि नहीं! समाज में साथ ले जाने पर मैस्कुलिनिटी होल्डर बॉडी लैंग्वेज देगा या नहीं। तलाक होने पर या अलग होने पर कम से कम एलिमनी ठीक-ठाक मिलेगी या नहीं! या नाम तो बड़े के साथ जुड़े, छोटा-मोटा नाम तो नहीं है! स्त्री है तो सुंदर बने रहने के लिए दिन-रात के रूटीन में ब्यूटी प्रोडक्ट शामिल है या नहीं। सेक्स के दौरान निर्धारित स्त्री वाले लुभावनी अदाओं से लैस है या नहीं! घर-गृहस्थी में दक्ष है या नहीं! सामाजिक एक्सेप्टेंस में कोई कमी तो नहीं आयेगी। मसलन दोस्त लोग हॉट आइटम झपटाया है, ऐसा बोलेंगे या नहीं! घर वाले मालदार और काम-काज में संपन्न है, इसकी पुष्टि करेंगे या नहीं! आदि-आदि। तो, यह तो इंटीमेट होना हुआ भी नहीं!!

अंतरंगता आत्म-प्रेम है, जहाँ रोमांस की उत्कटता हमेशा बनी रहती है।

मगर थोपी हुई लैंगिक भूमिकाएं क्या वाक़ई असल में दो लोगों को एक-साथ आज़ादी को महसूस करने में सहायक होती हैं?

क्या सामाजिक बंधनों से अधिक ख़ुद के कंडीशंड बंधन हमें बार-बार उसी वन में पहुँचा देते हैं, जिसका ज़िक्र दांते ने किया था, “हम परछाइयों से घिरे एक वन में पहुँच जाते हैं- वह वन जो बहुत सघन और दुर्गम है।”

कभी-कभी सोचती हूँ, जिस सोशल कैपिटल को हम सब ढो रहे हैं वह हमें इतनी प्यारी क्यों लगती है, वो तो इतनी बार मारती है जितना शायद जीना भी नहीं है।
स्त्रीद्वेष और इनसान विरोधी, प्रेम और शांति विरोधी पूंजी!!

संदर्भ : रेखा का एकतरफा प्यार पर कथन (द कपिल शर्मा शो) और अतुल सुभाष की आत्महत्या, अन्य आत्महत्याएं
– Shobha Akshar

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