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अब्दुल्लाह आज़म जेल से आ गए तो शाहनवाज़ ख़ान को वहां होना चाहिए था है! मगर वो नही पहुंचे, क्यों? यह तो अखिलेश यादव भी जानना चाहते हैं!


आसमोहम्मद कैफ़ । Aas mohd kaif 🇮🇳
@journoaas
अब्दुल्लाह आज़म के जेल से बाहर आने के बाद बहुत बड़ी चर्चा हो रही है कि समाजवादी पार्टी के नेता उन्हें मिलने नही पहुंचे ! अब ऐसा तो है नही कि अब्दुल्लाह आज़म गोल्ड मैडल हासिल करके लौट रहे थे मगर यह है कि कुछ लोगों को वहां जरूर होना चाहिए था ! कह सकते हैं कि मुरादाबाद की सांसद रुचिवीरा एहसान फरामोश नही है इसलिए वो वहां थी !

खैर पहले आपको एक किस्सा बता देते हैं ! 2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी शिद्दत से चाहती थी कि वो चुनाव जीत जाएं ! वो कम से कम 30 लोकसभा सीट पर जीत हासिल करे, इसके बाद देश मे ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाये कि मुलायम सिंह यादव जी मुख्य केंद्र में आ जाएं और वो पीएम बन जाए ! इसलिए सपा सबको साध रही थी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पूरा दम लगा दिया था, कार्यकर्ताओ को तमाम सुविधाओं के साथ कम्फर्ट जोन मिला, मगर सितंबर 2013 मुजफ्फरनगर में हुए दंगे में सपा के महत्वकांक्षी अभियान का मोमेंटम बिगाड़ दिया ! इस दंगे में राइट विंग पोषित मीडिया ने आज़म खान को सुपर सीएम, पावर सीएम आदि कहक़र खलनायक और अखिलेश यादव को बेचारा पोट्रेट कर दिया ! जबकि आज़म खान की मुजफ्फरनगर दंगे में कोई भूमिका नही थी, ना डीएम, एसएसपी को हटवाने में, ना ही उसके बाद मुसलमानों को राहत पहुंचाने में !

यहां यह था कि आजम खान उस समय मुजफ्फरनगर के प्रभारी मंत्री थे, शेष काम एक नए नवेले लड़के का था जिसकी चर्चा बाद में ! अभी तो यह कि इस दंगे ने समाजवादी पार्टी का मोमेंटम बहुत बिगाड़ दिया !

सरकार दंगे पर नियंत्रण नही कर पाई, दोनों पक्षों को साधने के चक्कर मे उसकी बात बिगड़ गई ! आज़म खान पश्चिमी उत्तर प्रदेश की भूमि पर एक कदम नही रख पा रहे थे, एक शब्द नही कह पा रहे थे ! डैमेज कंट्रोल के लिए सहारनपुर में एक रैली का आयोजन किया गया, एक मैडिकल कॉलेज का उद्घाटन हुआ,एक सड़क का नाम और कॉलेज का नाम शेखुल हिंद के नाम पर किया गया।

आज़म खान इस रैली में आकर अपना दर्द बयां करना चाहते थे मगर आदतन हवा में उड़ रहे एक गुब्बारे और मंच पर एक मुस्लिम नेता का नाम की सूचना पर रूठ गए, इतना रूठ गए कि उन्होंने रैली में आने का विचार ही त्याग दिया !

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक उन्होंने नेताजी का फ़ोन नही रिसीव किया, तब वहां टहल रहे एक लड़के से फोन लगवाया तो आज़म से बात हुई, नेताजी के कहने पर लंबा काफिला लेकर आज़म खान साहब आ तो गए ! मगर उससे पहले वो गुब्बारा नीचे उतरवाया गया और मंच पर उस मुस्लिम नेता का नाम फूलों से छिपाया गया।

इस तस्वीर में हरे कुर्ते में वही लड़का है जो उस दिन कथित तौर पर आज़म खान को मंच से सारी जानकारी दे रहा था, जिसके फ़ोन की कॉल तो रिसीव की गई थी मगर नेताजी की नही, इस युवक का नाम शाहनवाज खान है , जिसका उपनाम शब्बू है ! इनके पिता सरफ़राज़ खान एक समर्पित आज़म खान वादी रहे हैं, इनके इसी सेवा भाव से खुश होकर आज़म खान साहब ने अपने हठयोग प्रयोग करके उनके बेटे को एमएलसी बनवाया था ! ठीक वैसे – जैसे रुचिवीरा को टिकट दिलवाया, वसीम रिज़वी को वक़्फ़ बोर्ड का चेयरमैन बनवाया, सरोजनी अग्रवाल को एमएलसी बनवाया, वगैरह -वगैरह !

अब्दुल्लाह आज़म जेल से आ गए तो शाहनवाज खान को वहां होना चाहिए था है! मगर वो नही पहुंचे, क्यों ! यह तो अखिलेश यादव भी जानना चाहते हैं ! हुआ यह भी है कि इन दिनों जब अखिलेश यादव सहारनपुर एक शादी में शिरकत करने पहुंचे तो उन्होंने सरफ़राज़ खान से पूछा कि आजकल शाहनवाज कहाँ है !

शाहनवाज हैं कि पिछले कुछ समय से वो रामपुर से भी दूर है ! अब्दुल्लाह आज़म जेल से आए तो वहां भी नही थे ! जिस नेता आज़म खान ने इन्हें ज़मीन से उठाकर अर्श पर पहुंचा दिया वो उनके भी साथ भी नही है !

अखिलेश सहारनपुर पहुंचे तो वो स्वागत में भी नही पहुंचे ! उपचुनाव में कहीं वोट मांगने नही गए ! अलबत्ता प्रियंका गांधी के लिए वायनाड प्रचार कर आये ! खान परिवार के साथ नही दिखते हैं, अपनी पार्टी के साथ नही दिखते हैं , अज़ाब यह है कि इधर अब्दुल्लाह आज़म जेल से बाहर आ रहे थे ,उधर शाहनवाज़ खान विधान परिषद में स्टाइल में भौकाल काट रहे थे।

दरअसल आजकल वो सहारनपुर के सांसद इमरान मसूद की गाड़ी में है, ,अक्सर पीछे बैठे हुए दिखते हैं , बढ़िया से ड्रेस सेंस में रौबदार मूंछ के साथ स्मार्ट लगते हैं ! हंसते रहते हैं,आज़म खान साहब से तो मुस्कान रूठ गई है ! वैसे मसूद परिवार की आज़म परिवार से राजनीतिक मतभेद की लंबी कहानी है ! वो अब नही !

यूं कह सकते हैं कि आज़म खान साहब वफ़ादारी और वफादारों के मामले में थोड़े से बदकिस्मत रहे हैं, या उन्होंने उन्ही के शब्दों में कमज़र्फ इंसानों पर अहसान कर दिए ! ऐसे अपने कई है ! तो अब गैरो से कैसी शिकायत !

 

डिस्क्लेमर : लेखक के निजी विचार हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं!