सेहत

भारत की 6.3% आबादी या लगभग 63 मिलियन (6.3 करोड़) लोगों को बहरेपन की समस्या है : रिपोर्ट

कम सुनाई देना या बहरेपन की समस्या भारत सहित दुनिया के कई देशों में तेजी से बढ़ती जा रही है। कुछ दशकों पहले तक इसे उम्र बढ़ने के साथ होने वाली दिक्कत माना जाता रहा था, हालांकि ये समस्या अब कम उम्र के लोगों यहां तक कि बच्चों को भी अपना शिकार बनाती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, भारत की 6.3% आबादी या लगभग 63 मिलियन (6.3 करोड़) लोगों को सुनने की क्षमता में गंभीर कमी या बहरेपन की समस्या है। कुछ आदतें इस दिक्कत को बढ़ाती जा रही हैं।

मेडिकल रिपोर्ट्स से पता चलता है कि सुनने की क्षमता में कमी की समस्या वालों का एक बड़ा हिस्सा 0 से 14 वर्ष की आयु वाले लोगों का है। साल 2011 की भारतीय जनगणना में बताया गया कि 19% आबादी को सुनने की दिक्कत थी।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, लाइफस्टाइल से संबंधित कुछ प्रकार की गड़बड़ियों को इसका एक बड़ा कारण माना जाता रहा है। हालिया अध्ययन में शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि जो लोग विडियो गेम्स अधिक खेलते हैं, अक्सर हेडफोन या ईयरफोन लगाए रहते हैं और तेज आवाज के संपर्क में रहते हैं उनमें सुनने की क्षमता कम होने का जोखिम अधिक देखा जा रहा है।

दुनियाभर में बढ़ता जा रहा है खतरा

डब्ल्यूएचओ ने एक वैश्विक रिपोर्ट में सावधान करते हुए कहा, 12 से 35 वर्ष की आयु वाले एक बिलियन (100 करोड़) से अधिक लोगों में सुनने की क्षमता कम होना या बहरेपन का जोखिम हो सकता है। इसके लिए मुख्यरूप से लंबे समय तक ईयरबड्स से तेज आवाज में संगीत सुनने और शोरगुल वाली जगहों पर रहना एक बड़ा कारण माना जा रहा है।

ईयरबड्स या हेडफोन्स का इस्तेमाल करने वाले लगभग 65 प्रतिशत लोग लगातार 85 (डेसिबल) से ज्यादा तेज आवाज में इसे प्रयोग में लाते हैं। इतनी तीव्रता वाली आवाज को कानों के आंतरिक हिस्से के लिए काफी हानिकारक पाया गया है, जो कम उम्र के लोगों को भी बहरा बनाती जा रही है।

अध्ययन में क्या पता चला?

बीएमजे पब्लिक हेल्थ जर्नल में प्रकाशित ये अध्ययन डब्ल्यूएचओ के सहयोग से किया गया है। 50,000 से अधिक लोगों पर किए गए अध्ययनों के विश्लेषण में टीम ने पाया कि वीडियो गेम्स के दौरान होने वाली आवाज तय सीमा से कहीं अधिक होती है।

सामान्य लोगों के लिए 25-30 डेसीबल ध्वनि को पर्याप्त माना जाता है, जबकि 80-90 डेसीबल ध्वनि श्रवण शक्ति को स्थायी हानि पहुंचाने वाली हो सकती है। विश्लेषण के दौरान पाया गया कि वीडियो गेमिंग के समय अधिकतर लोगों का ध्वनि स्तर 85 और 90 डेसीबल के आसपास रहा, जो कानों की सहनशक्ति से कहीं अधिक है।

वीडियो गेम और हेड फोन्स की तेज आवाज है खतरनाक

विशेषज्ञों ने कहा, वीडियो गेमिंग और हेड फोन्स की तेज आवाज सुनने की क्षमता में कमी के साथ टिनिटस का भी खतरा बढ़ाती जा रही है। टिनिटस एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को सिर या कानों के अंदर लगातार किसी किसी प्रकार की ध्वनि सुनाई देती है। यह ध्वनि बजने गूंजने, भनभनाने, फुफकारने या दहाड़ने जैसी हो सकती है।

अध्ययनों से पता चलता है कि टिनिटस न केवल मानसिक तनाव और चिंता बढ़ाता है, बल्कि यह कार्यक्षमता को भी प्रभावित करता है। ऐसे लोगों को एकाग्रता, नींद की परेशानी होती है जो उनकी उत्पादकता पर भी गंभीर असर डालती है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

अमेरिका स्थित कोलोराडो विश्वविद्यालय में ईएनटी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ डैनियल फिंक कहते हैं, व्यापक स्तर पर, चिकित्सा और ऑडियोलॉजी समुदाय को इस गंभीर खतरे को लेकर ध्यान देने की आवश्यकता है। युवा आबादी में ईयरबड्स जैसे उपकरणों का बढ़ता इस्तेमाल 40 की उम्र तक सुनने की क्षमता को कम कमजोर करने वाली स्थिति हो सकती है।

सुनने की क्षमता में कमी को सिर्फ कानों का समस्याओं तक ही सीमित नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे लोगों में मस्तिष्क से संबंधित बीमारियों जैसे डिमेंशिया का जोखिम दो गुना अधिक हो सकता है। जिन लोगों को बिल्कुल नहीं सुनाई देता था या जो लोग बहरेपन के शिकार थे उनमें डिमेंशिया के खतरे को पांच गुना अधिक पाया गया।

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स्रोत और संदर्भ
Risk of sound-induced hearing loss from exposure to video gaming or esports: a systematic scoping review

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