भारत में विटामिन डी की कमी को अब “मौन महामारी” कहा जाता है. इससे देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य और विकास पर लम्बे समय के लिए असर हो सकता है.
आत्महत्या के विचारों से पीड़ित लगभग 60 फीसदी लोगों में एक बात समान है: विटामिन डी की कमी. मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी की एक नई रिपोर्ट बताती है कि विटामिन डी की कमी को अब तक जितना माना गया था उससे ज्यादा हानिकारक हो सकती है. यह मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं और आत्महत्या की प्रवृत्तियों को और बढ़ा सकती है.
भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जहां लोगों में विटामिन डी की कमी सबसे अधिक है. टाटा 1एमजी लैब्स के 2023 के आंकड़ों से पता चलता है कि हर चार में से तीन भारतीय, यानी करीब 76 फीसदी लोग, विटामिन डी की कमी से जूझ रहे हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा सूरज की रोशनी पाने वाले देशों में शामिल होने के बावजूद क्यों यहां “विटामिन डी” की कमी की समस्या इतनी बड़ी है?
विटामिन डी की कमी बनी मौन महामारी
रिसर्च रिपोर्ट बताती है हमारी खाने-पीने की आदतें और संस्कृति से जुड़े कुछ तौर तरीके इसके लिए जिम्मेदार हैं. देश में ऐसे लोगों की संख्या बड़ी है जो मछली, अंडे की जर्दी और फोर्टिफाइड डेयरी जैसे विटामिन डी से भरपूर चीजों को अपने आहार में शामिल नहीं करते. इसके अलावा, पारंपरिक पहनावा भी अक्सर धूप को सीधे त्वचा तक पहुंचने नहीं देता. यह कमी पूरे देश में हुई है, लेकिन शहरों में स्थिति और गंभीर है. इसके कारण हैं प्रदूषण, बदलती जीवनशैलियां, सनस्क्रीन का बढता इस्तेमाल और सस्ते सप्लीमेंट्स की कमी. शहरी इलाकों में पर्याप्त धूप भी विटामिन डी के पर्याप्त स्तर में तब्दील नहीं होती क्योंकि लोग बाहर कम समय बिताने लगे हैं और हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है.
विटामिन डी का पर्याप्त स्तर सेहत के लिए बड़ा महत्वपूर्ण होता है, और इसकी कमी से प्रतिरक्षा तंत्र, उपापचय, हृदय स्वास्थ्य और समग्र स्वास्थ्य को लंबे समय तक नुकसान पहुंचा सकता है. चिंताजनक रूप से लोगों पर इसका बढ़ता असर और इसके बारे में कम जागरूकता होने की वजहों से भारत में विटामिन डी की कमी को अब “मौन महामारी” कहा जा रहा है.