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अगर कुआ घर से थोड़ा दूर है तो…

अरूणिमा सिंह
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पहले के समय में लगभग सबके अपने अपने कुआ हुआ करते थे ।
खेतों में भी लोग खेत की सिंचाई करने के लिए कुआ खुदवाते थे । ढेकुली के माध्यम से सिंचाई की जाती थी।
घर के सारे काम कुए के पानी से किए जाते थे।
भोजन बनाने और पीने का पानी कुए से आता था।
घर की महिलाएं ताँबे या कासे के बने गागर से या बाल्टी से रस्सी की मदद से पानी भरती थी।
अगर कुआ घर से थोड़ा दूर है तो जोड़ा गागर एक साथ लेकर चलती थी।
एक गागर सर पर एक कमर पर रखकर चलती थी।
मध्य प्रदेश में मैं ने देखा था कि उधर सरकारी नल का पानी हफ्ते में एक दिन आता था वो भी रात दो बजे कभी तीन बजे।
नल आते ही लोग नीद से उठकर पानी भरते थे क्योंकि अगर चूक गए तो एक हफ्ते तक पानी नहीं मिलेगा और फिर टैंकर मंगवाना एक मात्र उपाय होता था।

वहां घर के अंदर या घर के बाहर जगह है तो बाहर बड़ा और गहरा सा गड्ढा खोदकर सीमेंट लगा कर पक्का कर देते थे , उसी में एक नल की टोंटी लगवा देते हैं और एक टोंटी उपर लगती है। नीचे वालीं टोंटी से वो गड्ढा या कुआ पानी से भरता रहता है और उपर वालीं टोंटी से लोग पीने का पानी मिट्टी के मटकों में भर लेते थे बाकी मोटर लगा कर टंकी में चढ़ा देते थे।

टंकी का पानी बहुत कम और सम्भाल कर उपयोग किया जाता था। घर के ज्यादातर काम बाहर के बने कुए से बाल्टी और रस्सी की मदद से पानी निकाल कर किए जाते थे। यदि कुआ घर के बाहर बना है तो उसको टिन से ढंक दिया जाता था बाल्टी जाने के लिए थोड़ी सी जगह छोड़ दी जाती थी। कई लोग पानी निकाल कर उस छोटी सी जगह पर भी दरवाज़ा लगा कर, ज़ंजीर लगा कर ताला लगा देते थे।

हमारी तरफ जब महिलाएं पानी निकालती थी तो पानी निकालते समय न जाने कितनी बार बाल्टी या गागर कुए में गिर जाती थी जिसे फिर कांटेदार छल्ले से फँसा कर बाहर निकाला जाता था।

कई बार पानी संग बाल्टी में बैठकर मेढ़क भी बाहर आ जाते थे।

हमारे नाना जी गांव में एक बुजुर्ग महिला भोजन बनाने के लिए रात में कुए से पानी भरकर लाई और साथ में मेढ़क भी आ गया। मेढ़क सिर्फ आया ही नहीं बल्कि दाल के साथ पक भी गया क्योंकि एक तो वो बुजुर्ग थी दूसरे ढिबरी के मद्धिम रोशनी में देख न सकी। इस तरह तब बहुत कांड हुआ करते थे।
महिलाएं या पुरुष घर में लड़ते थे तब कहते थे कि-जाब कहूँ कुआ, नारा लय लियब(कहीं कुआ में कूद जायेगे) मतलब की सुसाइड की धमकी या करने का पॉइंट भी हुआ करता था।

कई बार बच्चे खुद गिर जाते थे । खेत के कुए में गलती से साँड, भैंसा अक्सर गिरते थे जिन्हें फिर बड़ी मुश्किल से गाँव वाले रस्सा बांधकर खींचकर निकालते थे।
हमारी तरफ बेटे के विवाह के समय जब बारात निकलती है तब कुए की परिक्रमा करके कुआ पूजन होता है, जच्चा प्रसूति के सवा महीने बाद कुए की पूजा करके गृह कार्य को हाथ लगाती है।

मामा जी के गांव में कभी पुराना एक कुआ रहा होगा जो पाट दिया गया था। पूरे गाँव के लोग उसी कुए की पूजा करते थे। कुआ बंद होने के बाद भी बेटे के विवाह में वही कुआ पूजा जाता था और कुआ न रहने की वज़ह से उसी भूमि को ही घूम कर परिक्रमा करने की औपचारिकता निभा दी जाती थी। उस कुए को हमने नहीं देखा था मतलब कि बहुत पहले ही बंद हो गया था।

अब मेरे मामा के घर के कुए की पूजा होती है। कुआ उपर से ढंक दिया है और चारो तरफ छोटी सी दीवार बनाकर, सीमेंट की जगत बना कर बहुत सुन्दर बना दिया गया है।

मैं छोटी थी जब कोई घर पर नहीं होता था तब अपनी सखियों से कुए के बीचोंबीच में रखे गए पाट पर चलने की शर्त लगाती थी। हिम्मत दिखाने की हद तो तब होती थी जब आँख बंद करके पाट पर चलकर कुआ पार करने की शर्त लगाने लगे। फिर एक दिन गांव के किसी व्यक्ति ने देख लिया नानी जी से शिकायत कर दी और उसी दिन नानी ने हिम्मत और शर्त दोनों का भूत उतार दिया।

कुआ खोदना न तो आसान न ही उसमे साफ मीठा पानी पीने के लिए जो निवार पड़ता है न वो आसान होता है क्योंकि कुआ खोदना मेहनत का काम था और उसमें निवार डालने के लिए बुद्धि और कुशलता चाहिए होती थी।

मेरे परनाना जी थे। जो की निवार डालने में कुशल माने जाते थे। आस-पास के तमाम गांव के लोग अपने कुए में निवार डालने के लिए बुलाते थे।
दीपावली का दिन था। पड़ोस के गांव में कुआ खोदा जा रहा था परनाना जी को पता था कि उन्हें निवार डालने के लिए बुलाया जाएगा लेकिन उस दिन उनका मन निवार डालने जाने का नहीं था इसलिए वो अंगूठे पर कपड़ा बाँध कर बहाना बनाकर लेट गए ताकि न जाना पड़े परन्तु लोग माने नहीं जबर्दस्ती बुलाकर ले गए और निवार डालते समय उनके उपर मिट्टी गिर गयी मिट्टी के नीचे दबने की वज़ह से उनकी जिंदगी चली गई तबसे आज तक नानी जी के घर पर दीपावली मानना बंद है।

अब लगभग सब लोग कुए को पूरी तरह से बंद कर दे रहे। यदि बंद करना ज्यादा जरूरी न हो तो पूरी तरह से मत बंद करिए चित्र की जाली लगा दीजिए ताकि कोई अंदर गिरे न और बारिश के समय पानी अंदर जाए ताकि गर्मियों में जल का स्तर बना रहे।

कुआ तो अब कोई खुदवा नहीं सकता सो जो बचे हैं उन्हें बचा रखिए, संजो रखिए, संरक्षित कीजिए।
निवार क्या होती है? कैसे डालते हैं? मुझे नहीं मालूम है बस सुना है। आप सब जरूर बतायें। कुए के बीच में जो लकड़ी रखी जाती उसे आपकी तरफ क्या कहते हैं वो भी बतायें क्योंकि हमने तो पाट लिख दिया है।

तस्वीर फेसबुक साभार
अरूणिमा सिंह