विशेष

इसमें त्रिदेवों का वास माना जाता है, त्रिवेणी का केवल धार्मिक महत्व नहीं है बल्कि…

Neelam Sourabh
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त्रिवेणी
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त्रिवेणी संगम के विषय में तो आप सभी भली-भाँति परिचित हैं, जहाँ वर्तमान में महाकुम्भ का आयोजन हो रहा है मगर क्या आपने एक दूसरी तरह की त्रिवेणी के बारे में भी कभी सुना है? क्या आप जानते हैं कि वृक्षों की त्रिवेणी क्या होती है, कैसे बनती है और उसका महत्व क्या है???

यदि आपको पहली बार इसके बारे में जानने को मिल रहा है तो यह आलेख आपके लिए ही है। पूरा पढ़ने के बाद अगर जानकारी अच्छी लगे तो कृपया मित्रों व परिचितों से साझा अवश्य कीजियेगा ताकि अन्य लोगों को भी इसका लाभ मिल सके।

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मित्रों, जिस तरह से प्रयागराज स्थित त्रिवेणी में तीन पवित्र नदियों का संगम है, बिल्कुल वैसे ही बरगद, पीपल एवं नीम इन तीन पवित्र वृक्षों के मेल से वृक्षों की त्रिवेणी बनती है।

कैसे बनती है त्रिवेणी!
वट, बड़ या बरगद, पीपल और नीम, इन तीनों वनस्पतियों के लगभग एक वर्ष की आयु तथा लगभग एक फुट ऊँचाई के एक-एक पौधे को लेकर एक-दो फुट के घेरे में त्रिकोणीय आकार में रोप दिया जाता है और थोड़ा बढ़ने पर यानी करीब छह या सात फुट की ऊँचाई के हो जाने पर इन्हें किसी साधन द्वारा एक साथ बाँध कर आपस में मिला दिया जाता है। अब आगे ये तीनों पौधे एक साथ ही वृद्धि करते हैं। इनके पूर्ण विकसित होने पर तीनों के तनों और शाखाओं के एक-दूसरे के साथ गुँथ जाने के कारण एक वृहत एकाकार रचना बन जाती हैं अर्थात तीनों पेड़ों का संगम हो जाता है। यही रचना त्रिवेणी कहलाती है। एक सुविकसित त्रिवेणी में तीनों पेड़ों के तने आपस में घुल-मिल कर ऐसे एक हो गये होते हैं कि पहचानना कठिन होता कि कौन-सा भाग किस वनस्पति का है। हाँ ऊपर स्वतंत्र शाखाएँ अपने मूल रूप में ही रहती हैं। है न अद्भुत!

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त्रिवेणी को खुले एवं सार्वजनिक स्थानों पर ही लगाया जाता है, निजी तौर पर घरों के बगीचे में कभी नहीं लगाना चाहिए। जब भी, जहाँ भी त्रिवेणी लगाने का उपक्रम सफल हो जाता है तो विद्व जनों का कहना है, उस स्थान पर एक प्रकार से सकारात्मक ऊर्जा का कुछ दूर तक घेरा बन जाता है और वहाँ पर ठहरने पर धरती माँ के गर्भ से उल्लास छलकता हुआ अनुभव होता है। त्रिवेणी के नीचे बैठ कर विश्राम करने पर अद्भुत मानसिक शान्ति मिलती है, योगाभ्यास करने पर अतिरिक्त ऊर्जा प्राप्त होती तथा अध्ययन करने पर विशेष सफलता का लाभ होता है।

त्रिवेणी में नीम आसपास के वातावरण की वायु को शुद्ध करता है, पीपल शीतल करता है और वट यानी बरगद के चौड़े फलक वाले पत्ते नीचे बैठने वालों को घनी छाया देते हैं। पछुआ या पुरवाई कभी जब तीव्र गति से चलती हैं तो साथ में बहुत धूल उड़ाती हैं पर देखा जाता है कि जहाँ त्रिवेणी लगी हो वहाँ धूल के कण रुक जाते हैं। इस तरह निरन्तर वातावरण स्वच्छ होता रहता है।

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शास्त्रों में वर्णित है कि वास्तव में त्रिवेणी साधारण वृक्ष-कुंज नहीं होते बल्कि इनका विशेष आध्यात्मिक महत्व होता है। एक पूर्ण विकसित त्रिवेणी में त्रिदेवों अर्थात ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का एक साथ वास माना गया है। त्रिवेणी को लगाने, लगवाने या किसी भी तरह से इसकी सेवा करने से समस्त देवतागण एवं परिवार के श्रद्धेय पितृ स्वत: पूजित हो जाते हैं और उनका आशीर्वाद मिलता है।

सनातन संस्कृति में किसी भी मांगलिक कार्य के अवसर पर सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह से समस्त वातावरण शुद्ध हो जाये के उद्देश्य को लेकर धार्मिक स्थलों या घरों में यज्ञ का आयोजन किया जाता है। इसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु त्रिवेणी भी लगायी जाती है। इस त्रिवेणी को शास्त्रों में स्थायी यज्ञ की संज्ञा दी गयी है और बताया गया है कि जहाँ कहीं भी त्रिवेणी लगी होती है वहाँ प्रत्येक क्षण सकारात्मक ऊर्जा का सतत प्रवाह होता रहता है।

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त्रिवेणी का केवल धार्मिक महत्व नहीं है बल्कि शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह बहुत अधिक लाभकारी मानी जाती है।

सर्दी-जुकाम, निमोनिया आदि के साथ अस्थमा की तरह के गम्भीर श्वसन रोगों पीड़ित व्यक्ति यदि इसके नीचे बैठकर श्वास क्रिया वाले योग जैसे अनुलोम-विलोम, कपाल-भाति, प्राणायाम आदि करता है तो थोड़े समय में ही स्वास्थ्यलाभ प्राप्त करता है। अवसाद व अति-तनाव (हाइपरटेंशन) जैसे मानसिक रोगों के उपचार में भी इसके महत्व व योगदान को नकारा नहीं जा सकता। ऐसे रोगों से ग्रसित लोगों को एक निश्चित समय के लिए प्रतिदिन त्रिवेणी के नीचे शान्तिपूर्वक बैठना बहुत प्रभावकारी होता है। धीरे-धीरे मन शान्त होने लगता है साथ ही एकाग्रता भी बढ़ने लगती है।

जिस तरह कुएँ-बावड़ी बनवाने, सहस्त्र-कुण्डीय यज्ञ-हवन करने, कन्यादान करने, निःशुल्क विद्यादान करने या अनाथों का वात्सल्य पूर्वक पालन-पोषण करने जैसे सत्कार्य करने पर पुण्य प्राप्ति की अवधारणा है, ठीक वैसे ही मान्यता है कि त्रिवेणी लगा कर उसका संरक्षण करने पर अक्षय पुण्यों की प्राप्ति होती है।

प्रत्येक वह व्यक्ति जो श्रद्धा व आध्यात्मिक भाव से त्रिवेणी लगाता या लगवाता है अथवा इसका संरक्षण व पालन-पोषण करता है, उसका कोई भी सात्विक कर्म कभी विफल नहीं होता ऐसा प्रमाणित है।

इस त्रिवेणी की तरह तीन वृक्षों के ही संगम से ‘हरिशंकरी’ भी बनायी जाती है जिसमें पीपल और बरगद के साथ गूलर के पौधे को एकाकार किया जाता है। हरिशंकरी का भी त्रिवेणी की तरह ही धार्मिक, आध्यात्मिक महत्व है और इसमें भी त्रिदेवों का वास माना जाता है।
_𝓝𝓮𝓮𝓵𝓪𝓶 𝓢𝓸𝓾𝓻𝓪𝓫𝓱_________
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नीलम सौरभ
रायपुर, छत्तीसगढ़

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