साहित्य

चाय बने तो पियें…

गांव में सुबह-सुबह 4-5 बजे ही चिडियों की चहचाहट, गाय-भैंसों के रमभाने की आवाज शुरू हो जाती है…
घर के बड़े बुजुर्ग जाग कर कुल्ला-मंजन करके बिस्तर पर बैठ जाते हैं कि चाय बने तो पियें। छोटे बच्चे तो अपनी माँ संग ही उठ जाते हैं। माँ उनका हाथ-मुहँ धोकर तेल-काजल लगाकर बड़े बुजुर्गों के पास छोड देती है।
बुजुर्ग अपने पोते-पोतियों को कहानियां सुनाकर, खेल में लगा कर अपने पास रखते हैं और उनके साथ समय बिताते हैं। उतनी देर में उनकी माएं घर के काम निपटा लेती हैं।

घर की वरिष्ठ महिलाएं घर के बाहर के काम में लग जाती हैं। घर की बेटियाँ एवं बहुएं घर के अंदर के काम और रसोई संभाल लेती हैं।

सारे बर्तन बाहर आंगन में भिगोकर, फिर सारे घर में झाड़ू लगेगा। कोई बर्तन धोने लगेगा तो कोई चूल्हा साफ करके पोछा लगाएगा।

पहले जब मिट्टी के चूल्हे पर भोजन बनता था तब चूल्हे को मिट्टी भिगोकर कपड़े की सहायता से पोत कर साफ करते थे। घर की साफ सफाई हो जाने के बाद दाल-चावल की बटुली, कड़ाही, चाय की पतीली सबकी पेदी को बाहर से गीला करके फिर उस पर चूल्हे की निकली राख को डालकर एक परत चढ़ा देते हैं ताकि बरतन काला न पड़े। इसे लेप लगाना या लेईयाना कहते हैं।

यह सब काम निपटने के बाद सूखी लकड़ी, उपले आग को तेज करने के लिए चावल के छिलका यानी धान की भूसी रखी जाती है। जब लकड़ी कंडे की व्यवस्था हो जाती है तब चूल्हा जला कर चाय-नाश्ता-भोजन बनाने की शुरुआत होती है।

बेटी एक तरफ दाल, एक तरफ चाय का पानी चढ़ा देती है और बहु नहाने चली जाती है। जब तक चाय बनती है तब तक बहु नहा कर आ जाती है। जब बहु रसोई सम्भाल लेती है तब तक बिटिया रानी सबको चाय नाश्ता दे देती है। इधर चाय का पतीला उतार कर बहु चावल का पानी चढ़ा देती है। एक तरफ दाल दूसरी तरफ चावल बनने लगता हैं।

चाय-नाश्ता सबको करवा कर बिटिया रानी गृह वाटिका से ताजी सब्जियों को तोड़कर लाकर काट देती हैं और बहु तब तक सिलबट्टे पर दाल और सब्जी का मसाला पीस लेती है। बीच-बीच में चूल्हे में धान की भूसी झोंका करती हैं ताकि आग तेज होती रहे और दाल चावल पकते रहें।

चावल तो उबलने के बाद तुरन्त पक जाता है पर दाल पकने में समय लेती है। चावल के बनने के बाद उसे चूल्हे से उतार कर रख देते हैं और कड़ाही चढ़ा कर सब्जी को तड़का लगा देते हैं। उधर दाल गल जाती है तो उसे अच्छी तरह से घोंट कर दाल के उपर रखे कटोरे में गर्म हो रहे पानी को डाल देते हैं नमक डाल देते हैं और दाल में उबाल आने देते हैं जब दाल में उबाल आ जाता है तब उसमे खटाई डाल दी जाती है। खटाई के गलने पर दाल चूल्हे से उतार कर रख ली जाती है और कड़ाही उधर की तरफ कर देते हैं और इधर तवा चढ़ा देते हैं। बिटिया रानी तब तक आटा गूंथ देती है। इधर बहु दाल छौंक देती है।

बिटिया एक बाल्टी ताजा साफ पानी नल चलाकर लाकर रसोई में रख देती है। पीढ़ा रख देती है। और स्वयं रोटी बेलने लगती है। बहु गर्मा-गर्म रोटी सेंकती जाती हैं और सबको भोजन परोस कर खिलाती जाती है। यूं सब लोग मिल-जुलकर काम निपटा लिया करते थे।

गांव में सुबह की शुरुआत कुछ यू ही होती थी और सबके घरों में कुछ ऐेसा ही नजारा हुआ करता था। ❤️