ग़ज़ा युद्ध को एक महीना पूरा…इस्राईल के सामने 5 गंभीर चुनौतियां
इस्राईल पर सात अक्तूबर को जो गहरा वार लगा उससे वह अब तक उबर नहीं सका है, इस बीच वो ग़ज़ा पट्टी में भयानक रूप से नरसंहार कर रहा है जिसकी पूरी दुनिया में निंदा हो रही है मगर इस बीच ग़ज़ा पट्टी से इस्राईली क़ब्ज़े वाले इलाक़ों पर लगातार मिसाइल हमले हो रहे हैं। सवाल यह है कि इस्राईल के सामने क्या चुनौतियां हैं?
इस सवाल का जवाब देने की कोशिश इस्राईल के अख़बार जेरुज़लम पोस्ट ने अपनी डिबेट में की।
पहली चुनौती डिप्लोमैटिक सपोर्ट ख़त्म हो जाना
हमास ने 7 अक्तूबर को हमला किया तो उसके अगले दिन अनेक देशों ने इस्राईल से सहानुभूति जताई मगर एक महीना बीत जाने के बाद ग़ज़ा पट्टी में ज़ायोनी शासन की दरिंदगी की वजह से सारी दुनिया से इस्राईल पर दबाव डाला जा रहा है कि वो हत्याएं करना बंद करके संघर्ष विराम करे। यहां तक कि अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन भी मानवीय संघर्ष विराम की बात कर रहे हैं क्योंकि उन पर मतदाताओं की तरफ़ से भारी दबाव है क्योंकि बाइडन इस मसले में चुनाव गवां सकते हैं। अमरीका के युवा मतदाताओं में फ़िलिस्तीन का समर्थन ज़्यादा देखने में आ रहा है।
दूसरी चुनौती एंटी सेमिटिज़्म चरम पर पहुंच गया
जेरुज़लम पोस्ट का कहना है कि पूरी दुनिया में इंटरनेट पर यहूदियों और ज़ायोनियों के ख़िलाफ़ नफ़रत बहुत बढ़ गई है। एसीएएस सिस्टम ने जो इस विषय पर नज़र रखता है, बताया कि ज़ायोनियों के ख़िलाफ़ नफ़रत में 1200 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
तीसरी चुनौती भारी डिप्रेशन
इस्राईल पर हमास के हमले से पहले भी यह समस्या थी कि ज़ायोनियों विशेष रूप से नई उम्र के बच्चों में डिप्रेशन की स्थिति थी जो इस हमले के बाद बहुत बढ़ गई है।
चौथी चुनौती आर्थिक मंदी
इस्राईल गंभी आर्थिक मंदी की चपेट में आ गया है। इस्राईल ने अपने 3 लाख 60 हज़ार रिज़र्व सैनिकों को मोर्चों पर तैनात कर दिया है। यह लोग अलग अलग उद्योगों को चलाते हैं। अब नई स्थिति में बहुत सारे उद्योग ठप्प हो गए हैं। 300 बड़े अर्थ शास्त्रियों ने प्रधानमंत्री नेतनयाहू को ख़त लिखकर मांग की है कि भयानक आर्थिक संकट के इलाज के लिए ज़रूरी है कि सारे ग़ैर ज़रूरी ख़र्चे फ़ौरन रोक दिए जाएं। अब यह तय है कि इस्राईल की प्राथमिकताएं बदल जाएंगी।
पांचवीं चुनौती वो जंग जिसका अंत मालूम नहीं
इस्राईल ग़ज़ा में ज़मीनी लड़ाई लड़ रहा है मगर जो स्थिति है उसे देखकर कुछ नहीं कहा जा सकता कि यह लड़ाई कब तक जारी रहेगी। हमास को ख़त्म करने का एलान सुनने में तो इस्राईलियों को अच्छ लगता है लेकिन इस लक्ष्य को पूरा कैसे किया जाएगा यह इस्राईल में किसी को नहीं मालूम है। समाज में हमास की भारी लोकप्रियता है और दूसरी तरफ़ उसके पास लगभग ढाई सौ इस्राईली क़ैदी के रूप में मौजूद हैं।
हमास ने कहा है कि इस्राईली हमलों की वजह से 60 क़ैदी लापता हैं इसका मतलब यह है कि अगर आप्रेशन इसी तरह जारी रहा तो शेष क़ैदियों की जान भी ख़तरे में पड़ जाएगी।
फ़िलिस्तीनी जियालों के सामने आतंकी इस्राईली सेना हुई पस्त!
ग़ज़्ज़ा में कुछ ऐसा हो रहा है कि जिसके बारे में दुनिया की बड़ी-बड़ी शक्तियां भी देखकर दंग हैं। अत्याधुनिक हथियारों से लैस आतंकी ज़ायोनी सेना को क़स्साम ब्रिगेड के जियाले ऐसी टक्कर दे रहे हैं कि युद्ध के मैदान को छोड़कर इस्राईली सैनिकों भागते हुए दिखाई दे रहे हैं।
प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, अवैध आतंकी ज़ायोनी सेना ने भारी सैनिकों और हथियारों के साथ वेस्ट बैंक और जेनिन शरणार्थी शिविर कैम्प पर हमला किया है। इस बीच फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास की सैन्य शाखा क़ुद्स बटालियन ने रविवार को एक बयान जारी करके बताया है कि प्रतिरोध के जियालों कई मोर्चों पर आतंकी इस्राईली सैनिकों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। साथ ही सामने आई कुछ वीडिया और फोटो में भी यह साफ देखा जा सकता है कि फ़िलिस्तीनी जियालों की जवाबी कार्यवाही में आतंकी ज़ायोनी सैनिक मैदान छोड़कर भाग रहे हैं।
इस बीच क़ुद्स बटालियन ने एक इस्राईली बुलडोज़र पर एक विशेष तरह के बम से हमला किया गया, जिससे उसे काफ़ी नुक़सान हुआ है। वहीं हार से बौखलाई ज़ायोनी सेना ने वेस्ट बैंक के शहरों और जेनिन शिविर के बुनियादी ढांचे को बड़े पैमाने पर नष्ट करना शुरू कर दिया है। जबकि फ़िलिस्तीनी जियालों ने ज़ायोनी सेना के साथ लड़ाई में वेस्ट बैंक के क़िलक़ीलिया शहर में इस्राईली सैनिकों के एक काफ़िले को निशाना बनाते हुए उसके रास्ते में बम विस्फोट किया है। इस धमाके में कई इस्राईली सैनिकों के मारे जाने और सैन्य गाड़ियों के तबाह होने की सूचना है।
एक महीने के बाद भी अतिग्रहणकारियों को कोई उपलब्धि नहीं मिली : हिज़्बुल्लाह
लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज्दुल्लाह की कार्यकारी परिषद के अध्यक्ष ने कहा है कि एक महीने के बाद भी जायोनियों को कोई उपलब्धि नहीं मिली।
सैयद हाशिम सफीयुद्दीन ने जायोनी सरकार के अपराधों की ओर संकेत किया और कहा कि अब तक प्रतिरोध ने जो कुछ दिखाया है वह मात्र उसकी क्षमता का एक छोटा सा भाग है और दुश्मन को चाहिये कि वह अपने आपको बड़े आघात के लिए तैयार करे।
उन्होंने अतिग्रहणकारियों के मुकाबले में दक्षिणी लेबनान और गज्जा पट्टी में होने वाले परिवर्तनों के बारे में कहा कि आज गज्जा में दो मोर्चा है एक कमज़ोर, कायर और पराजित जो इस्राईली सेना दिखा रही है और वह अब भी आवासीय क्षेत्रों पर बमबारी और महिलाओं, बच्चों और आम नागरिकों की हत्या कर रही है।
सैयद हाशिम सफीयुद्दीन ने कहा कि गज्जा में दूसरा मोर्चा प्रतिरोध के शूरवीर जवानों का है इस प्रकार से कि पूरे एक महीने के बाद भी हम देख रहे हैं कि अतिग्रहणकारियों को कोई उपलब्धि नहीं हासिल नहीं हुई और वे घोषित कोई भी लक्ष्य प्राप्त न कर सके और ईश्वर की इच्छा से वे कोई भी लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकेंगे।
उन्होंने फिलिस्तीनी जनता के खिलाफ अमेरिका, जायोनी सरकार और उसके दूसरे समर्थकों के षडयंत्रों की ओर संकेत किया और कहा कि उत्तरी गज्जा पट्टी के लोगों को ज़बरदस्ती सीना मरूस्थल भेजने की साजिश रची गयी है और आज अगर कोई यह कहे कि गज्जा के लोगों को ज़बरदस्ती पलायन करवाने की योजना खत्म हो गयी है तो वह गलती कर रहा है क्योंकि इस साज़िश को व्यवहारिक बनाने के लिए मिस्र और जार्डन पर यथावत दबाव डाला जा रहा है।
ज़ायोनी युद्धक विमानों ने 450 क्षेत्रों पर बमबारी की
अवैध जायोनी सरकार के युद्धक विमानों ने गत रात्रि गज्जा पट्टी के 450 क्षेत्रों पर बमबारी की।
समाचार एजेन्सी अलजज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार जायोनी सरकार के युद्धक विमानों की गत रात्रि की बमबारी में दैरूल बलह और अज़्वाइदा में कम से कम दो आवासीय मकान ध्वस्त और 45 फिलिस्तीनी शहीद हो गये। अलजज़ीरा के अनुसार जायोनी युद्धक विमानों की पाश्विक बमबारी में शहीद होने वाले बहुत से फिलिस्तीनी मलबे के नीचे दबे हुए हैं।
इसी बीच राष्ट्रसंघ से संबंधित संगठनों व संस्थाओं ने बयान जारी करके एलान किया है कि विभिन्न कारणों से हमें गज्जा पट्टी में तुरंत युद्ध विराम की ज़रूरत है। इसी प्रकार इन संगठनों व संस्थाओं के बयान में आया है कि गज्जा पट्टी के लोगों को ज़िन्दगी की मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित करना, आवासीय मकानों, शरण स्थलों और अस्पतालों पर बमबारी अस्वीकार्य है।
इसी प्रकार इन संगठनों व संस्थानों के बयान में बल देकर कहा गया है कि गज्जा पट्टी पर हमले के आरंभ से लेकर अब तक 100 से अधिक हमले चिकित्सा केन्द्रों पर हो चुके हैं। जायोनी सेना ने भी एलान किया है कि केवल गत रात्रि 450 बार गज्जा पट्टी पर बमबारी की गयी।
फिलिस्तीन के स्वास्थ्यमंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार जायोनी सैनिकों के पाश्विक हमलों में शहीद होने वाले फिलिस्तीनियों की संख्या अब तक 9 हज़ार 770 से अधिक हो गयी है जिनमें चार हज़ार 800 बच्चे और दो हज़ार 550 महिलायें हैं।
ग़ज़्ज़ा संकट को लेकर चीन ने की सुरक्षा परिषद की बैठक की मांग
ग़ज़्ज़ा के वर्तमान संकट के दृष्टिगत चीन ने सुरक्षा परिषद की बैठक की मांग की है।
संयुक्त राष्ट्रसंघ में चीन के स्थाई प्रतिनिधि जांगजून ने ग़ज़्ज़ा में अवैध ज़ायोनी शासन की अंधाधुंध बमबारी के संदर्भ में कहा है कि अपनी अध्यक्षता के काल में चीन, फ़िलिस्तीन और इस्राईल के बीच तनाव को समाप्त करना चाहता है।
पहली नवंबर से चीन को संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद की अस्थाई अध्यक्षता मिली है। चीन के अनुसार वह इस दौरान ग़ज़्ज़ा संकट की समाप्ति के लिए प्रयास करेगा।
एक कूटनीतिक स्रोत के अनुसार चीन ने एक प्रस्ताव देकर राष्ट्रसंघ की बैठक आहूत किये जाने की मांग की है। इसी बीच संयुक्त अरब इमारात की ओर से भी इसी प्रकार का अनुरोध सुरक्षा परिषद से किया गया है। इस बैठक को आज सोमवार को बुलाने की मांग की गई है।
राष्ट्रसंघ में रूस के स्थाई प्रतिनिधि वैस्ली नेबेंज़, सुरक्षा परिषद के पश्चिमी देशों पर यह आरोप लगा चुके हैं कि वे इस्राईल और फ़िलिस्तीनियों के बीच तनाव को दूर कराने के प्रयासों में बाधा बन रहे हैं।
याद रहे कि इससे पहले भी सुरक्षा परिषद में ग़ज़्ज़ा संकट के समाधान के उद्देश्य से प्रस्ताव दिये जा चुके हैं किंतु पश्चिमी शक्तियों की ओर से उनको वीटो कर दिया गया जिनमें अमरीका प्रमुख रहा।
ग़ज़्ज़ा में रक्तपात को रुकवाना, अंकारा की ज़िम्मेदारी है – अर्दोग़ान
तुर्किये के राष्ट्रपति का कहना है कि ग़ज़्ज़ा में रक्तपात को रुकवाना, अंकारा की ज़िम्मेदारी है।
अर्दोग़ान कहते हैं कि ग़ज़्ज़ा में रक्तपात को फौरन रोका जाए। तुर्किये के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोग़ान का कहना है कि ग़ज़्ज़ा में अपने फ़िलिस्तीनी भाइयों और बहनों को हम अकेला नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने कहा कि ग़ज़्ज़ा में रक्तपात को रुकवाना अंकारा की ज़िम्मेदारी है।
अर्दोग़ान का कहना था कि हमारा काम ग़ज़्ज़ा में होने वाले उस नरंसारह को रुकवाना है जो पूरे विश्व समुदाय की आखों के सामने किया जा रहा है।
उन्होंने एक्स पर अपने संदेश में लिखा है कि मानवता के आधार पर हमारी जिम्मेदारी, उन हत्यारों को पकड़ने की है जो बच्चों, महिलाओं और निर्दोष लोगों को फ़िलिस्तीन में मार रहे हैं। यह वे हत्यारे हैं जो फ़िलिस्तीनियों की संपत्ति को नष्ट कर रहे हैं। अर्दोग़ान के इसी के साथ बैतुल मुक़द्दस की सुरक्षा की भी बात कही।
फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में तुर्किये के राष्ट्रपति का यह बयान एसी हालत में सामने आया है कि जब कल ही अर्थात रविवार को इस देश के अदनाय क्षेत्र में अमरीकी छावनी के बाहर ग़ज़्ज़ा के समर्थन में निकाले जाने वाले प्रदर्शन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने टियर गैस के गोले छोड़े और उनको तितिर-बितर करने के लिए बल का प्रयोग किया। अर्दोग़ान इससे पहले भी ग़ज़्ज़ा के समर्थन में लंबेचौड़े भाषण दे चुके हैं किंतु अभी तक व्यवहारिक रूप में उन्होंने कुछ भी नहीं किया है।
इसराइल-ग़ज़ा संघर्ष: चार हफ़्तों के दौरान सामने आए ये पांच नए सच
इसराइल पर सात अक्तूबर को हमास के हमले के बाद की रिपोर्टिंग, विश्लेषणों और टिप्पणियों के बारे में एक बात ये समझनी चाहिए कि इनमें से कोई भी पूरी कहानी नहीं है.
बल्कि हमेशा की तरह, युद्ध के कोहरे को भेदकर ये पता लगाना भी मुश्किल है कि युद्धक्षेत्र में क्या चल रहा है.
इसराइलियों और फ़लस्तीनियों के बीच के संघर्ष की जो नई शक्ल है वो भी पूरी तरह उभरकर सामने नहीं आई है.
घटनाएं बहुत तेज़ी से घट रही हैं. जंग के अन्य इलाक़ों में फैलने का ख़तरा वास्तविक है. मध्यपूर्व में कहीं न कहीं नई वास्तविकताएं जन्म ले रही हैं, लेकिन उनकी शक्ल क्या होगी और वो किस तरह काम करेंगी, ये इस बात पर निर्भर करेगा कि बाकी बचे साल, या संभवतः इससे आगे के समय में, युद्ध में क्या होता है.
एक नज़र ऐसी बातों डालते हैं जिन्हें हम जानते हैं और कुछ ऐसी बातों पर भी गौर करते हैं जिन्हें अभी तक हम नहीं जानते हैं. ये सूची पूरी नहीं है.
2003 में इराक़ पर अमेरिका के आक्रमण के समय जब तत्कालीन अमेरिकी रक्षामंत्री डोनाल्ड रम्स्फील्ड ने ‘अज्ञात अज्ञातों’ की बात की थी, तब बहुत से लोगों ने उनका मज़ाक बनाया था. लेकिन दुनिया के इस हिस्से में, बाकी किसी अन्य क्षेत्र की तरह ही, ये ‘अज्ञात’ मौजूद हैं और जब ये सामने आएंगे, तब बड़ा फ़र्क़ पैदा हो सकता है.
पहला सच
एक तय बात ये है कि इसराइल के लोग ग़ज़ा से हमास की ताक़त और उसके सहयोगी इस्लामिक जिहाद को खत्म करने के अभियान का समर्थन करते हैं.
इसराइल के लोगों के आक्रोश की वजह हमास के हमले में 1400 से अधिक लोगों की मौत और 240 से अधिक को ग़ज़ा में बंधक बनाया जाना है. इस हमले ने समूचे इसराइल को हैरान कर दिया है.
सात अक्तूबर के हमास के हमले के बाद इसराइली सेना के रिटायर्ड जनरल नोआम टिबोन अपनी पत्नी के साथ कार चलाकर ग़ज़ा सीमा के पास नहाल ओज़ किबुत्ज़ पहुंचे थे.
उनका मिशन अपने बेटे, बहू और उनके दो बच्चों को बचाना था और वो कामयाब रहे थे. वो अपने सुरक्षित कमरे में बंद थे और बाहर से हमास के हमलावरों की गोलीबारी की आवाज़ें सुन रहें थे.
मैंने टिबोन से मुलाक़ात की. वो रिटायर्ड हैं, 62 साल के हैं लेकिन बिलकुल फिट हैं. उस दिन वो एक असॉल्ट राइफ़ल और मृत पड़े इसराइली सैनिक की लाश से उठाये हेलमेट के साथ किबुत्ज़ पहुंचे थे.
रास्ते में मिले इसराइली सैनिकों की एक यूनिट उन्होंने तैयार की थी. उन्होंने किबुत्ज़ को हमलावरों से मुक्त कराया था और अपने परिवार सहित बाक़ी फंसे लोगों की जानें बचाईं थीं. जनरल पुरानी परंपरा के इसराइली सैनिक हैं और सीधी बात करते हैं.
“ग़ज़ा को अंजाम भुगतना पड़ेगा…कोई राष्ट्र ये स्वीकार नहीं करेगा कि उसका पड़ोसी बच्चों, महिलाओं और आम लोगों का नरसंहार करे. जिस तरह आपने (ब्रितानी लोगों ने) दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अपने दुश्मन को कुचल दिया था. हमे ग़ज़ा में यही करना है. कोई दया नहीं दिखानी है.”
मैंने पूछा कि उन मासूम फ़लस्तीनी नागरिकों का क्या जो मारे जा रहे हैं?
“दुर्भाग्यवश ऐसा हो रहा है, हम मुश्किल पड़ोसियों के साथ रहते हैं, और हमें जीवित रहना है… हमें कठोर होना पड़ेगा, हमारे पास कोई विकल्प नहीं है.”
बहुत से अन्य इसराइली भी उन्हीं की तरह भावना व्यक्त करते हैं कि फ़लस्तीनी नागरिकों की मौत दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन वो हमास के कृत्यों की वजह से मारे जा रहे हैं.
ये भी स्पष्ट है कि हमास पर इसराइल के हमले से भारी रक्तपात हो रहा है. ग़ज़ा में हमास संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़ मरने वालों की संख्या नौ हज़ार को पार कर चुकी है. इनमें से 65 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे हैं.
अभी ये स्पष्ट नहीं है कि इसराइल के हमलों में मारे गए पुरुषों में से कितने आम नागरिक थे या हमास और इस्लामिक जिहाद के लिए लड़ रहे थे. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और इसराइल, स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों पर भरोसा नहीं करते हैं. लेकिन पिछले संघर्षों में फ़लस्तीनियों ने मौतों के जो आंकड़े दिए हैं उन्हें अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने सही पाया है.
एक दुखद आंकड़ा क़रीब आ रहा है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि यूक्रेन पर 21 महीने पहले शुरू हुए रूस के आक्रमण के बाद से अब तक 9700 आम नागरिक मारे जा जुके हैं. रूस ने फ़रवरी 2022 में यूक्रेन पर हमला किया था.
मारे गए कुछ फ़लस्तीनी हमास का हिस्सा हो सकते हैं. अगर ये मारे गए लोगों का दस प्रतिशत भी हैं, जिसकी संभावना कम है, तो इसराइल अब तक एक महीने के भीतर लगभग इतने ही फ़लस्तीनी नागरिकों को मार चुका है जितने फरवरी 2022 के बाद से यूक्रेन में रूस के हमलों में मारे गए हैं.
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय का कहना है कि इसराइल के हवाई हमलों में बड़ी तादाद में आम नागरिक मारे जा चुके हैं और घायल हुए हैं. इसे लेकर गंभीर चिंता जाहिर करते हुए उसने कहा है कि ये हमले असंगत हैं और युद्ध अपराध हो सकते हैं.
इसराइल पर हमास के हमले के पहले दिन से ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने हमास को ख़त्म करने के लिए इसराइल के सैन्य अभियान का समर्थन किया है. लेकिन उन्होंने ये शर्त भी जोड़ी है कि ऐसा करने के लिए सही तरीका अपनाने की आवश्यक्ता है. उनका मतलब ये था कि इसराइल को नागरिकों की रक्षा करने के लिए बनाए गए युद्ध के नियमों का पालन करना चाहिए.
अमेरिकी रक्षा मंत्री एंटनी ब्लिंकन तेल अवीव पहुंचे. वापसी की फ्लाइट लेने से पहले उन्होंने कहा, “जब मैं किसी फ़लस्तीनी बच्चे, एक लड़का, या लड़की को, किसी ढही इमारत के मलबे से निकाले जाते देखता हूं तो मुझे उतनी ही पीड़ा होती है जितनी किसी इसराइली के बच्चे या किसी और जगह के बच्चे को देखकर होती है.”
मैंने बीते तीस सालों में हुए इसराइल के सभी युद्धों पर रिपोर्ट की है. मुझे याद नहीं है इससे पहले कभी अमेरिकी प्रशासन ने इतने स्पष्ट रूप से कहा हो कि इसराइल को युद्ध के नियमों का पालन करने की ज़रूरत है. ब्लिंकन की यात्रा ये संकेत देती है कि वो ये मानते हैं कि इसराइल बाइडन की सलाह पर अमल नहीं कर रहा है.
एक और बात हमें निश्चित रूप से पता है कि इसराइल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू भारी दबाव में हैं. इसराइल के ख़ुफ़िया प्रमुख या सेना प्रमुख की तरह उन्होंने सार्वजनिक रूप से 7 अक्तूबर के घटनाक्रम के लिए व्यक्तिगत रूप से माफ़ी नहीं मांगी है. उस दिन बॉर्डर के क़रीब रहने वाले इसराइली लोग असहाय और असुरक्षित रह गए थे.
पिछले रविवार, 29 अक्तूबर, को उन्होंने एक ट्वीट में इसराइल की ख़ुफ़िया एजेंसी को ज़िम्मेदार बताया था, जिसके बाद हंगामा हो गया था. नेतन्याहू ने संदेश डिलीट कर दिया और माफ़ी मांग ली.
तीन इसराइलियों, इनमें एक ख़ुफ़िया एजेंसी शिन बेत के पूर्व निदेशक हैं, एक शांति वार्ताकार हैं और एक टेक जगत के उद्यमी हैं, ने एक फ़ॉरेन अफ़ेयर्स जर्नल में एक लेख लिखकर कहा है कि नेतन्याहू की मौजूदा युद्ध और इसके बाद जो भी होता है में कोई भागीदारी नहीं होनी चाहिए.
भले ही इसराइली प्रधानमंत्री के वफ़ादार समर्थक हों, लेकिन इसराइली सेना और सुरक्षा प्रतिष्ठानों से जुड़े प्रमुख लोगों को अब उन पर विश्वास नहीं है.
अपने परिवार और फंसे हुए अन्य लोगों को बचाने के लिए नाहाल ओज़ किबुत्ज़ पहुंचने वाले रिटायर्ड जनरल नोआम टिबोन नेतन्याहू की तुलना नेविले चेंबरलिन से करते हैं. 1940 में चेंबरलिन से इस्तीफ़ा ले लिया गया था और विंस्टन चर्चिल को प्रधानमंत्री बनाया गया था.
टिबोन कहते हैं, “ये इसराइल राष्ट्र के इतिहास में सबसे बड़ी नाकामी है. ये एक सैन्य नाकामी है. ये ख़ुफ़िया तंत्र की नाकामी है. और ये सरकार की नाकामी है. जो वास्तव में कमान संभाल रहे हैं, वो ही इसके लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार हैं. वो प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू हैं. वो इसराइल के इतिहास की सबसे बड़ी विफलता के लिए ज़िम्मेदार हैं.”
ये भी स्पष्ट है कि जो पुरानी यथास्थिति थी वो ध्वस्त हो चुकी है. ये स्थिति अप्रिय थी और ख़तरनाक थी, बावजूद इसके इसमें एक निश्चित गंभीर-परिचित स्थिरता थी.
2005 में पिछले फ़लस्तीनी विद्रोह के दौरान एक पैटर्न उभरा था कि नेतन्याहू ये मानते हैं कि इस यथास्थिति को हमेशा बरक़रार रखा जा सकता है. ये एक ख़तरनाक़ भ्रम था, सभी के लिए, फिर वो चाहें फलस्तीनी हों या इसराइली.
ये तर्क दिया जाता था कि फ़लस्तीनी इसराइल के लिए ख़तरा नहीं है, बल्कि एक समस्या है जिसका प्रबंधन किया जाना है. जो उपाय उपलब्ध थे, उनमें या तो डंडे की सज़ा थी, या प्रलोभन थे. इसके अलावा ‘बांटो और राज करो’ की प्राचीन रणनीति.
नेतन्याहू 2009 के बाद के अधिकतर वक़्त इसराइल के प्रधानमंत्री रहे हैं. इससे पहले वो 1996 से 1999 तक प्रधानमंत्री रह चुके हैं. वो लगातार तर्क देते रहे हैं कि शांति के लिए इसराइल के पास कोई सहयोगी नहीं है.
संभावित रूप से, इसराइल के पास सहयोगी था, फलस्तीनी प्राधिकरण, जो एक गंभीर रूप से त्रुटियों से भरा संगठन है, और इसका समर्थन करने वाले बहुत से लोग ये मानते हैं कि उम्रदराज प्रमुख महमूद अब्बास को अब किनारे हो जाना चाहिए.
लेकिन फ़लस्तीनी प्राधिकरण ने 1990 के दशक में इसराइल के साथ सह-अस्तित्व वाला फ़लस्तीनी राष्ट्र निर्मित करने के विचार को स्वीकार कर लिया था.
‘बांटों और राज करो’ की नेतन्याहू की रणनीति का मतलब ये था कि हमास को ग़ज़ा में फ़लस्तीनी प्राधिकरण की क़ीमत पर मज़बूत होने दिया जाए.
इसराइल में सबसे लंबे समय से प्रधानमंत्री नेतन्याहू भले ही सार्वजनिक रूप से बहुत सोच-समझकर बोलते हों, लेकिन पिछले कई सालों से उनके फैसलों से पता चलता है कि वो नहीं चाहते कि एक स्वतंत्र फ़लस्तीनी राष्ट्र बनें. इसके लिए वेस्ट बैंक में इसराइल को ज़मीन छोड़नी होगी, जिसमें पूर्वी यरूशलम भी शामिल हैं, इसराइल के कट्टरपंथी यहूदी मानते हैं कि इस पर यहूदियों का अधिकार है.
समय- समय पर नेतन्याहू की घोषणाएं लीक होती रही हैं. 2019 में कई इसराइली सूत्रों ने बताया था कि नेतन्याहू ने अपनी लिकुड पार्टी के कई सदस्यों से कहा था कि अगर वो फ़लस्तीनी राष्ट्र का विरोध करते हैं तो उन्हें ग़ज़ा में पैसा लगाने की योजनाओं का समर्थन करना चाहिए. ग़ज़ा के लिए अधिकतर पैसा क़तर से आता है. उन्होंने अपनी पार्टी के सदस्यों से कहा था कि ग़ज़ा में हमास और वेस्ट बैंक में फ़लस्तीनी प्राधिकरण के बीच मतभेद बढ़ाते रहने से फ़लस्तीनी राष्ट्र का निर्माण असंभव हो जाएगा.
ये भी स्पष्ट है कि इसराइल, जिसे अमेरिका का पूर्ण समर्थन हासिल है, ऐसे किसी समझौते को स्वीकार नहीं करेगा जो हमास को सत्ता में रहने दे. इसका मतलब है कि अभी और बहुत रक्तपात होगा. इससे और बड़े सवाल यह पैदा होते हैं कि हमास की जगह क्या होगा या कौन उसकी जगह लेगा?
अभी तक इस सवाल का जवाब नहीं मिला है
अरब लोगों और यहूदियों के बीच जॉर्डन नदी से लेकर भूमध्यसागर तक की ज़मीन के नियंत्रण को लेकर चल रहा संघर्ष सौ सालों से अधिक पुराना है. इसका एक सबक ये है कि इसका कोई सैन्य समाधान नहीं है.
1990 के दशक में ओस्लो में शांति प्रक्रिया शुरू हुई थी जिसका मक़सद संघर्ष को समाप्त करना और पूर्वी यरूशल में राजधानी के साथ स्वतंत्र फ़लस्तीनी राष्ट्र का निर्माण था.
कई बार बंद होने और शुरू होने वाली इस शांति प्रक्रिया को फिर से शुरू करने का अंतिम गंभीर प्रयास ओबामा के शासनकाल के दौरान हुआ था. ये एक दशक पहले ही नाकाम हो चुका है और इसके बाद से ये संघर्ष और अधिक तीव्र होता जा रहा है.
जैसा कि राष्ट्रपति बाइडन और कई अन्य राष्ट्राध्यक्ष कह चुके हैं, और अधिक रक्तपात और युद्धों को रोकने का एकमात्र संभावित तरीक़ा ये है कि इसराइल के साथ एक स्वतंत्र फ़लस्तीनी राष्ट्र का निर्माण हो.
दोनों तरफ मौजूदा नेताओं के रहते, ये संभव नहीं है. चरमपंथी, फिर चाहें वो इसराइली हों या फ़लस्तीनी, इस विचार को ध्वस्त करने के लिए कुछ भी करेंगे, जैसा कि वो 1990 के बाद से करते रहे हैं.
इनमें से कुछ लोग ये मानते हैं कि वो ईश्वर की इच्छा का पालन कर रहे हैं. इसी वजह से किसी धर्मनिरपेक्ष समझौते के लिए उन्हें मनाना असंभव हो जाता है.
लेकिन अगर ये युद्ध भी, इतना बड़ा झटका नहीं देता है कि दो राष्ट्र समाधान को व्यवहारिक बनाया जा सके, तो किसी भी और चीज़ से ऐसा नहीं हो पाएगा. और इस संघर्ष को समाप्त करने के पारस्परिक रूप से स्वीकार्य तरीक़े के बिना, इसराइल और फ़लस्तीनियों की अगली पीढ़ियां भी युद्ध की आग में झोंकी जाती रहेंगी.
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जेरेमी बोवेन
पदनाम,अंतरराष्ट्रीय संपादक, दक्षिणी इज़राइल से
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ब्लिंकन की बात क्यों नहीं मान रहा कोई
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन तीन दिन से मध्य पूर्व के चक्कर काट रहे हैं. उनकी कोशिश है कि उस स्थिति को संभालें, जो कभी भी और ज़्यादा बिगड़ सकती है.
शुक्रवार को इसराइल और शनिवार को जॉर्डन जाने के बाद रविवार को वह वेस्ट बैंक, इराक़ और फिर तुर्की पहुंचे. जहां भी वह रुके, वहां अलग तरह की चुनौतियां और नाउम्मीदी थीं.
ब्लिंकन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह बीच का रास्ता तलाशने की कोशिश कर रहे हैं मगर फ़िलहाल उस पर चलने के लिए भी कोई राज़ी नहीं है.
शुक्रवार को ब्लिंकन ने इसराइली नेताओं को ग़ज़ा में मानवीय मदद पहुंचाने और बंधकों की रिहाई के लिए पॉज़ (अस्थायी तौर जंग रोकना) के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन इसराइली प्रधानमंत्री ने तुरंत इनकार कर दिया.
अगले दिन ब्लिंकन ने इसराइल के पड़ोसी अरब देशों के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात की. सभी चाहते हैं कि तुरंत युद्धविराम हो. जॉर्डन के विदेश मंत्री अयमान साफ़ादी का कहना था कि इसराइल युद्ध अपराध कर रहा है.
इस सबके बीच, अमेरिका में जब राष्ट्रपति जो बाइडन से पूछा गया कि क्या मानवीय पॉज़ की दिशा में कोई प्रगति हुई है, तो उनका कहना था कि इसमें ‘अच्छी’ प्रगति हुई है.
बाइडन तो मानवीय पॉज़ की संभावनाओं को लेकर आशावादी हैं मगर मध्य पूर्व में ऐसा नहीं है. यहां कितना तनाव है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि ब्लिंकन रविवार को जहां-जहां गए, उन्होंने बड़ी गोपनीयता बरती.
वह फ़लस्तीनी प्राधिकरण के प्रमुख महमूद अब्बास से मिलने बख़्तरबंद गाड़ियों के काफ़िले में रामल्लाह पहुंचे. रास्ते की सुरक्षा का ज़िम्मा फ़लस्तीनी पैलेस गार्ड ने संभाला हुआ था.
वह इराक़ गए तो रात के अंधेरे में. ब्लिंकन और उनके साथ आए राजनयिकों ने बग़दाद एयरपोर्ट से अमेरिकी दूतावास जाने के लिए हेलिकॉप्टर से उड़ान भरी, तो सबने बुलेटप्रूफ़ जैकेट और हेलमेट पहने हुए थे. इसके बाद वे सभी गाड़ियों के काफ़िले में प्रधानमंत्री शिया अल सुडानी से मिलने गए.
सोमवार को वह तुर्की के अधिकारियों से मिलेंगे. इससे एक दिन पहले ही तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने इसराइल से अपने राजदूत को बुलाते हुए कहा है कि उन्हें अब नेतन्याहू से कोई वास्ता नहीं रखना. अर्दोआन ने कहा, “हमने उन्हें मिटा दिया है, बाहर फेंक दिया है.”
पेचीदा हालात
जैसे ही अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन एक तरफ़ आग बुझाते हैं, वैसे ही दूसरी ओर से लपटें निकलने लगती हैं.
मैंने बग़दाद एयरपोर्ट पर ब्लिंकन से पूछा कि क्या राष्ट्रपति बाइडन की तरह उन्हें भी लगता है कि इसराइल को पॉज़ के लिए मना लिया जाएगा और क्या अरब देशों को समझा पाएंगे कि अभी युद्धविराम करवाना संभव नहीं है?
उन्होंने दोनों सवालों का जवाब हां में दिया.
ग़ज़ा में मानवीय मदद कैसे पहुंचाई जा सकती है, अमेरिका इसे लेकर लगातार इसराइल से चर्चा कर रहा है.
जहां तक अरब देशों की बात है, ब्लिंकन ने कहा कि ‘युद्धविराम को लेकर अलग-अलग विचार हैं लेकिन जिनसे भी उनकी बात हुई, उन्हें लगता है कि मानवीय पॉज़ से बंधकों को छुड़ाने, ग़ज़ा में मदद पहुंचाने और वहां फंसे विदेशी नागरिकों को निकालने में तेज़ी आएगी.’
उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है लेकिन इस मामले में कुछ पेचीदगियां भी हैं.
फ़िलहाल, ऐसा नहीं लग रहा कि अरब देशों या इसराइल में से कोई भी ब्लिंकन की बात मानेगा क्योंकि सभी पर अपने देश के अंदर से दबाव का सामना करना पड़ रहा है.
शुक्रवार को ब्लिंकन जब इसराइल के राष्ट्रपति आइज़ैक हरज़ोक के साथ मीडिया के सामने आए तो पीछे से इसराइली प्रदर्शनकारियों की आवाज़ें सुनी जा सकती थीं. ये लोग अपनी सरकार से हमास द्वारा बंधक बनाए गए लोगों को छुड़ाने के लिए और कोशिशें करने की मांग कर रहे थे.
इस बीच, इस पूरे क्षेत्र, यूरोप और अमेरिका में फ़लस्तीन-समर्थक प्रदर्शनकारी बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतरे हैं.
अमेरिका में प्रदर्शनकारियों ने व्हाइट हाउस की चारदीवारी पर चढ़ने की कोशिश की. पेरिस, लंदन और बर्लिन में भी प्रदर्शन हुए.
इस्तान्बुल में प्रदर्शनकारियों ने एक बैनर पकड़ा हुआ था जिसमें ब्लिंकन को नरसंहार में भागीदार बताया गया था
अब तक का हासिल क्या रहा?
ब्लिंकन के दौरे से कुछ सकारात्मक यही निकला है कि वह सभी पक्षों से बात कर रहे हैं और इस संघर्ष का दायरा अभी बढ़ा नहीं है.
अक्टूबर महीने में जो बाइडन अरब देशों के नेताओं से साथ जॉर्डन में बैठक करने वाले थे, मगर ग़ज़ा के अस्पताल में धमाके के बाद यह अचानक रद्द हो गई थी. उसके बाद ब्लिंकन का इन देशों के विदेश मंत्रियों से मिलना दिखाता है कि कुछ प्रगति हुई है.
वह अपने अरब समकक्षों को फ़लस्तीनियों के दीर्घकालिक भविष्य पर विचार करने और क्षेत्र में स्थायी शांति का रास्ता तलाशने लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, मगर इसमें ज़्यादा कामयाबी मिलती नज़र नहीं आ रही.
जॉर्डन के विदेश मंत्री साफ़ादी का कहना है कि ‘जब यही पता नहीं कि युद्ध के बाद ग़ज़ा में क्या हालात होंगे तो कैसे किसी बात पर विचार करें?’
उन्होंने कहा, “क्या हम एक तबाह हो चुकी ज़मीन के बारे में बात करेंगे? क्या हम शरणार्थी बना दी गई आबादी के बारे में बात करेंगे?”
बाइडन ने 12 अक्टूबर को व्हाउट हाउस में यहूदी समुदाय के नेताओं के साथ हुई बैठक में कहा था, “मुझे लगता है कि इसराइल और ग़ज़ा में हुए ख़ून-ख़राबे और त्रासदी के बाद मध्य पूर्व में कुछ बेहतर परिणाम निकल सकता है. लेकिन मुझे जन्मजात आशावादी कहा जाता है.”
लेकिन मध्य पूर्व के हालात पर नज़र डालें तो यहां बहुत कम ही लोग आशावादी हैं.
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एंथनी ज़र्चर
पदनाम,अमेरिकी विदेश मंत्री के साथ यात्रा पर
ग़ज़ा पर बमबारी रुकवाने के लए ज़ायोनी सरकार और अमरीका पर इस्लामी देशों की तरफ़ से भारी सियासी दबाव डाला जाए : आयतुल्लाह ख़ामेनेई
इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने आज सुबह इराक़ के प्रधानमंत्री मुहम्मद शेया अलसूदानी से मुलाक़ात में ग़ज़ा की पीड़ित जनता के समर्थन में इराक़ की सरकार और जनता के अच्छे और ठोस स्टैंड की प्रशंसा की।
उन्होंने ग़ज़ा में क़त्लेआम रुकवाने के लिए इस्लामी दुनिया की तरफ़ से अमरीका और ज़ायोनी सरकार पर सियासी दबाव बढ़ाए जाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि इलाक़े के एक अहम मुल्क की हैसियत से इराक़ इस सिलसिले में विशेष भूमिका निभा सकता है और अरब जगत व इस्लामी दुनिया के बीच कए नई पंक्ति खड़ी कर सकता है।
इस्लामी क्रांति के नेता ने ग़ज़ा की बेहद चिंताजनक स्थिति और इन अपराधों और वहशियाना हमलों से दुनिया के सारे स्वतंत्र स्वभाव के इंसानों के दिलों को पहुंचने वाली ठेस की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि ज़ायोनी सरकार के हमलों के बिल्कुल आरंभिक दिनों से ही सभी साक्ष्य जंग को आगे बढ़ाने में अमरीकियों की प्रत्यक्ष भूमिका की निशानदेही कर रहे थे और जैसे जैसे जंग आगे बढ़ रही है ज़ायोनी सरकार के अपराधों की मंसूबाबंदी में अमरीकियों की प्रत्यक्ष भूमिका के कारण और भी स्पष्ट होते जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अगर अमरीका की सियासी व सामरिक मदद न हो तो ज़ायोनी सरकार इस काम को जारी नहीं रख पाएगी।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि यह बात बिल्कुल ज़ाहिर है कि ग़ज़ा में हो रहे अपराधतं में अमरीकी पूरी तरह शामिल हैं। उन्होंने कहा कि ग़ज़ा में हो रहे सामूहिक नरसंहार के बावजूद इस मुक़ाबले में ज़ायोनी सरकार अब तक वास्तविक पराजित पक्ष है क्योंकि वह अपनी खोई हुई इज़्ज़त वापस नहीं ले सकी और आगे भी वापस नहीं ले पाएगी।
इस्लामी क्रांति के नेता ने ग़ज़ा में बमबारी रोकने के उद्देश्य से अमरीका और ज़ायोनी सरकार पर राजनैतिक दबाव बढ़ाने के लिए व्यापक रूप से कोशिशें किए जाने पर ज़ोर दिया और कहा कि इस्लमी गणराज्य ईरान और इराक़ आपसी समन्वय के ज़रिए इस सिलसिले में प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं।
इस्लामी क्रांति के नेता ने आर्थिक और सुरक्षा क्षेत्रों में ईरान और इराक़ के आपसी सहयोग के बारे में बात करते हुए कहा कि इन क्षेत्रों में प्रगति हो रही है लेकिन इस पर पूरी तवज्जो होनी चाहिए कि समझौतो को अमली जामा पहनाने में आरंभिक जोश को क़ायम रखते हुए काम जारी रखना चाहिए और रफ़तार में कमी नहीं आने देना चाहिए।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अरबईन के दिनों में इराक़ की जनता, सरकार और ख़ुद प्रधानमंत्री की मेहमान नवाज़ी, ज़ायरीन की सेवा और अमन व सुरक्षा की स्थिति का शुक्रिया अदा किया और उनकी सराहना की।
इस मुलाक़ात में जिसमें राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी भी मौजूद थे इराक़ी प्रधानमंत्री अलसूदानी ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से अपनी मुलाक़ात पर बेहद ख़ुशी का इज़हार किया और अलअक़सा तूफ़ान आप्रेशन को एक साहसिक आप्रेशन और दुनिया के सभी आज़ाद ख़याल लोगों के लिए क़ाबिल तारीफ़ आप्रेशन क़रार दिया और कहा कि इस ख़ुशी के साथ ही हम सब ग़ज़ा में वहशियाना क़त्ले आम से बहुत ग़मगीन हैं।
इराक़ के प्रधानमंत्री ने कहा कि इराक़ी सरकार और अवाम और इसी तरह इराक़ी राजनैतिक दल ग़ज़ा के मामले में इस इलाक़े के मज़लूम अवाम के समर्थन की पहली पंक्ति में खड़े है। और इराक़ी सरकार ने ग़ज़ा में अपराधों पर अंकुश लगाए जाने के लिए व्यापक राजनैतिक कोशिशें कर रही है।
अलसूदानी ने इन अपराधों पर अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और मानवाधिकारों के दावेदारों की ख़ामोशी की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि हमारी पूरी कोशिश पहले चरण में ग़ज़ा में बमबारी रुकवाना और दूसरे चरण में ग़ज़ा के लोगों के लिए खाने पीने की चीज़ें और दवाएं भेजना है।
उन्होंने बताया कि इस्लामी गणराज्य ईरान के राष्ट्रपति के साथ होने वाली वार्ता में इस बारे में आवश्यक समन्वय कर लिया गया है।
इराक़ के प्रधानमंत्री ने इसी तरह ईरान-इराक़ संबंधों को विस्तार देने और समझौतों को अमली जामा पहनाने पर अपनी सरकार के पुख़्ता इरादे की बात दोहराई।
अगर ईरान इस्तक्षेप करेगा तो भूमध्य सागर में ही दफ्न हो जाओगेः मूसवी
आज़रबाइजान गणराज्य में ईरानी राजदूत ने एक जायोनी अधिकारी को संबोधित करते हुए कहा है कि अगर ईरान हस्तक्षेप करेगा तो आप नील नदी के बजाये भूमध्य सागर में ही दफ्न हो जायेंगे।
समाचार एजेन्सी इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार सैयद अब्बास मूसवी ने इस्राईली राजदूत की डींग पर प्रतिक्रिया जताते हुए एक्स पर लिखा कि हमास के शूरवीर जवान ही आपके लिए काफी हैं, आपको याद रहे कि अगर एक दिन ईरान हस्तक्षेप करेगा तो आप नील नदी के बजाये भूमध्य सागर में ही दफ्न हो जायेंगे और भागने का रास्ता भी नहीं मिलेगा और आप मकड़ी के जाले से भी कमज़ोर हैं।
इसी प्रकार मूसवी ने लिखा कि इस समय पूरी दुनिया आपके खिलाफ है! आज़रबाइजान गणराज्य के स्वाभिमानी और बहादुर लोग दुनिया के दूसरे लोगों की तरह अतिग्रहणकारियों से नफरत करते हैं।
ज्ञात रहे कि आज़रबाइजान गणराज्य में इस्राईली राजदूत ने लिखा था कि ईरान वह आक्टोपस है जो हथियारों और प्राक्सी युद्ध के सैनिकों को विभिन्न क्षेत्रों में भेजता है, हमास, हिज्बुल्लाह, यमन में हूसी और इराक, सीरिया, और यहां तक कि आज़रबाइजान गणराज्य में छद्म युद्ध के सैनिक बनाने के प्रयास में है।
इसी प्रकार इस्राईली राजदूत ने लिखा था कि मध्यपूर्व के तनाव की जड़ इस्राईल को खत्म करने हेतु ईरान का रुजहान व विचार है किन्तु शायद डर की वजह से वह खुद यह कार्य अंजाम नहीं देता है।
ज्ञात है कि मध्यपूर्व विशेषकर फिलिस्तीन समस्या की जड़ 75 वर्षों से अधिक समय से इस्राईल द्वारा फिलिस्तीनियों की मातृभूमि का अतिग्रहण और इस्राईल द्वारा लाखों फिलिस्तीनियों की हत्या व घायल करना है।
TIMES OF GAZA
@Timesofgaza
Up to 500 Palestinians killed, hundreds others injured in the heavy lsraeli bombing of Gaza Strip last night.
sarah
@sahouraxo
BREAKING: Israel just murdered another Palestinian journalist, Muhammad al-Jaja, who they massacred along with his entire family (wife and 2 daughters).
Israel has now killed 47 journalists in Gaza in 29 days.
Iran Observer
@IranObserver0
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Haaretz:
The IDF will enter Gaza City in the next 48 hours according to senior officials who confirmed to the newspaper.
Maha Hussaini
@MahaGaza
Breaking: An Israeli airstrike just hit the rooftop of the al-Shifa Hospital, the largest medical compound in the Gaza Strip, destroying the solar panels which the hospital partially relies on.
Dozens were killed and injured.
Inside the Haramain
@insharifain
NEWS: Under the Presidency of the Custodian of the Two Holy Mosques, heads of states of the Islamic world will attend an urgent extraordinary summit of the OIC on the Israeli Aggression against Gaza and the Occupied Palestinian Territories in Riyadh on Sunday, 12 November 2023
Quds News Network
@QudsNen
Five martyrs, who are members of the family of the head of the Public Relations and Media Department at Abu Youssef Al-Najjar Hospital, Mr. Talaat Barhoum (his wife and four children), have been received at Al Hilal Emirates Hospital.
Bayan 𓂆
@BayanPalestine
Doctor Maisara and his family were murdered in an israeli airstrike that targeted his house in #Gaza last night.
The Barracks
@thebarrackslive
💥Israel just bombed the office of the Palestinian media group in Al-Ghifari tower in Gaza.
💥They bombed a car full of journalists and their children in Lebanon.
💥46 Journalists have been murdered over the past month.
💥Israel is targeting anyone who speaks out against this genocide!
Yara Eid 🇵🇸 يارا عيد
@yaraeid_
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Israeli warplanes have just targeted the solar panels on the roof of Al Shifa hospital – the largest hospital in Gaza with the highest number of injured civilians and displaced people! They’re literally trying to cut off all sources of life left.
sarah
@sahouraxo
BREAKING: South Africa has withdrawn all of its diplomats from Israel in response to the genocide in Gaza.
“Another holocaust in the history of humankind is unacceptable, and the South African government has decided to withdraw all its diplomats in Tel Aviv for consultation.”
The Spectator Index
@spectatorindex
BREAKING: 🇯🇴 Jordan’s Prime Minister Bisher Khasawneh says attempts to ‘displace’ Palestinians from Gaza or the West Bank would be ‘a red line’ and his country would consider it a ‘declaration of war’.
JIX5A
@JIX5A
Israel asks India for up to 100,000 workers to replace Palestinians amid Gaza war:
Israel has reportedly cancelled work permits of some 90,000 Palestinians who used to work in Israel before the war began.
Israeli Builders Association has urged the government to allow companies to hire up to 100,000 Indian workers to replace almost equal number of Palestinians who have lost their work permits amid the ongoing war between Israeli military and Hamas militants in the Gaza Strip, according to a report published by VOA News.
Haim Feiglin of Israeli Builders Association said that they are negotiating with India in this regard and currently waiting for a decision from the Israeli government to approve this.
“We hope to engage some 50,000 to 100,000 workers from India to work across the sector and bring it to normalcy,” he said.
According to the report, there are some 90,000 Palestinians who used to work in Israel before the war began. However, they are no longer allowed to work in Israel following the brutal October 7 attack by militants of Palestinian Islamic outfit Hamas.
This has led to a significant slowdown in Israel’s construction industry, which is reeling under a severe shortage of workforce.
Notably, India and Israel had signed an agreement in May early this year to allow 42,000 Indian workers to work in the Jewish state in the fields of construction and nursing. The move was expected to help Israel in dealing with the rising cost of living as Indian labourers are paid comparatively cheaper wages.
India has the world’s largest working population and tens of hundreds of Indian workers are already working in the Middle East. So far, it is not clear if a new deal will be signed or they will tweak the existing one since it only allows 42,000 workers for both construction and nursing sector.
As per the May 2023 deal that was signed by Israeli Foreign Minister Eli Cohen and his Indian counterpart Dr S Jaishankar, 34,000 workers will be engaged in the construction field and another 8,000 for nursing needs.
Israel asks India for up to 100,000 workers to replace Palestinians amid Gaza war:
Israel has reportedly cancelled work permits of some 90,000 Palestinians who used to work in Israel before the war began.
Israeli Builders Association has urged the government to allow companies… pic.twitter.com/ng7HeFqkJA
— JIX5A (@JIX5A) November 6, 2023
Ambassador Amir Weissbrod
@AmirwWeissbrod
More than 50 older persons are being held hostage in Gaza in the hands of #Hamas.
They are our grandparents, our family, our community members 🇮🇱
These are a few of their stories
Sony Thang
@nxt888
🇨🇳WANG WENBIN:
[Israeli finance minister Bezalel Smotrich in an interview said that ‘Israeli army will control Gaza after the war’. From the amount of that war budget and the minister’s remarks, we understand that there are signs that Israel plans to expand its occupation to the whole of Gaza Strip and has the intent to make it permanent. As a member of the UN Security Council, what will China’s position be if that would be the case?]
“China’s position on the Palestinian question is consistent and clear.
We support the establishment of an independent state of Palestine that enjoys full sovereignty on the basis of the 1967 borders and with East Jerusalem as its capital on the basis of relevant UN resolutions.
China will work relentlessly with the international community to this end.”
https://twitter.com/i/status/1721535258896498738
Sonam Mahajan
@AsYouNotWish
Hamas leader Khaled Mashal, who recently addressed a rally in Kerala, India, meets Pakistani politician Maulana Fazal-ur-Rehman in Qatar and expresses solidarity with Kashmir, drawing an equivalence between Kashmir and Gaza.
This is the man who was defended by Muslim Indians and their friends in the media.
Watch how Palestinian surgeon @saraalsaqqa battles to save lives in Gaza’s largest hospital as a young content creator @ahmedhijazee records the people and places targeted by Israel’s assault.
Watch Horror at Gaza Hospital by Real Gaza Productions ⤵️ #AJCloseUp pic.twitter.com/shuk7Ag8Av
— Al Jazeera English (@AJEnglish) November 6, 2023
red.
@redstreamnet
◾ The death toll from Israel’s genocide in Gaza has surpassed 10,000, rising to at least 10,022.
◾ The US Navy has dispatched a guided-missile submarine capable of launching nuclear missiles to the Middle East in their latest show of force.
◾ The “highest number” of “UN fatalities ever recorded in a single conflict” was reported by the UN; 88 UNRWA staff have been killed in Gaza since October 7.
◾ “The Israel-Gaza war has become the deadliest four-week period for journalists covering conflict since the Committee to Protect Journalists (CPJ) began documenting journalist fatalities in 1992.” According to the CPJ, at least 36 journalists and media workers have been killed since October 7.
◾ A WSJ report revealed that Israeli soldiers are dying at more than twice the rate they were during the war on Gaza in 2014, as the Israeli military continues to attempt to push into Gaza City.
◾ At least 70 Palestinians were arrested overnight in yet another wave of violent raids across the occupied West Bank, including PA officials and prominent Palestinian activist Ahed Tamimi. More than 2,000 people have been arrested in these raids since October 7, including at least 49 women and 17 journalists. Settlers and the Israeli military in the occupied West Bank have also killed at least 155 Palestinians.
◾ The Israeli army is recruiting Jewish settlers who have not served in the Israeli military to post them as “defense militiamen” in various settlements in the occupied West Bank and are accepting those with criminal records.
◾ In the West Bank, Israeli Finance Minister Bezalel Smotrich wants to “create sterile security areas around [Jewish] communities and roads and to prevent Arabs from entering them.”
◾ Israel’s Iron Dome defense system was overwhelmed by rocket barrages coming from Gaza, with an Israeli interceptor rocket landing in the central area of the city of Rishon LeZion, south of Tel Aviv.
◾ H3zbo!lah has fired a barrage of rockets at an Israeli town after Israel killed three children and their grandmother in a targeted drone attack on their car.
Alex kennedy
@Alexkennedy30
🚨 JUST IN – ISRAELI ARMY HAS COMPLETELY SURROUNDED GAZA:
IDF spokesman Daniel Haraghi said that the Israeli military had completely completed the encirclement of Gaza City, reaching the coast.
Israel promises that the humanitarian corridor will continue its work for the departure of the local population to the southern regions.
Haaretz.com
@haaretzcom
LIVE UPDATES: 35 Jewish and Arab rights groups in Israel call for ceasefire, release of hostages and political solution to conflict
Remember their names…
Students of #Athens unfold in front of the Parliament of #Greece the list of names of 4.000 children of #Gaza murdered by Israel
🔴This is not "Self Defense"-This is Massacre
Solidarity with #Palestine #FreePalestine pic.twitter.com/txoRyKCIKc
— PAME Greece International (@PAME_Greece) November 6, 2023