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2060 तक विश्व अर्थव्यवस्था को सिर्फ़ बढ़ते मोटापे के कारण जीडीपी के 3.3 प्रतिशत का नुकसान होना तय है : रिपोर्ट

2060 तक विश्व अर्थव्यवस्था को सिर्फ बढ़ते मोटापे के कारण जीडीपी के 3.3 प्रतिशत का नुकसान होना तय है. एक नए अध्ययन में यह अनुमान जाहिर किया गया है.

एक ताजा अध्ययन बताता है कि दुनिया मोटापे की भारी आर्थिक कीमत चुका रही है और इसका सबसे ज्यादा असर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहा है. बुधवार को प्रकाशित हुए इस अध्ययन में बताया गया है कि 2060 तक मोटापा जीडीपी का 3.3 फीसदी नुकसान कर देगा.

बीएमजे ग्लोबल हेल्थ पत्रिका में छपा यह अध्ययन मोटापे का हरेक देश पर पड़ने वाले असर का विश्लेषण करता है. मोटापा अपने आप में तो एक बीमारी है ही, यह कैंसर, डायबीटीज और हृदय रोगों की भी सबसे बड़ी वजहों में से एक है.

किस देश को कितना नुकसान
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह भी बताया है कि किस देश में कितने लोग अनुमानित तौर पर मोटापे के शिकार हैं. बॉडी मास इंडेक्स के आधार पर मोटापे का आकलन किया जाता है. बीएमआई 25 से ज्यादा होने पर ओवरवेट और 30 से ज्याद होने पर मोटापा माना जाता है.

शोध की मुख्य लेखिका रेचल न्यूजेंट ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के बाहर पत्रकारों से बातचीत में कहा, “वैश्विक स्तर पर लगभग दो तिहाई लोग मोटापे या अधिक वजन से पीड़ित हैं. और हमारा अनुमान है कि 2060 तक ऐसे लोगों की संख्या हर चार में से तीन हो जाएगी.”

शोध के मुताबिक फिलहाल जीडीपी के का 2.2 प्रतिशत नुकसान मोटापे के कारण हो रहा है और इस नुकसान में सबसे ज्यादा वृद्धि उन देशों में होने की आशंका है जहां संसाधन कम हैं. वैसे हर देश के नुकसान के हिसाब से देखा जाए तो चीन, अमेरिका और भारत को मोटापे के कारण सबसे ज्यादा नुकसान होने की आशंका है. चीन को 100 खरब डॉलर, अमेरिका को 25 खरब डॉलर और भारत को 850 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है.

अर्थव्यवस्था के आकार के अनुपात में देखा जाए तो सबसे बुरा असर युनाइटेड अरब अमीरात पर हो सकता है जहां जीडीपी का 11 फीसदी मोटापे की भेंट चढ़ जाएगा. दूसरा नंबर त्रिनिदाद (10.5) का है.

कहां कहां नुकसान?
शोध ने मोटापे की सीधी कीमत का भी विश्लेषण किया है जिसमें चिकित्सा खर्च आदि शामिल है. इसके अलावा अपरोक्ष नुकसान की भी गणना की गई है जो असामयिक मौतों के कारण होने वाले उत्पादकता में नुकसान के रूप में गिना जाता है. यह पहली बार है जबकि उत्पादकता में नुकसान की गणना की गई है.

रिसर्च फर्म आरटीआई इंटरनेशनल की उपाध्यक्ष न्यूजेंट ने बताया, “जो नुकसान नजर नहीं आता वह विकास की रफ्तार को धीमा करता है. अगर यह नुकसान ना होता तो हम और ज्यादा तेजी से विकसित हो रहे होते और लोगों की जिंदगियों में बदलाव तेजी से हो रहा होता.”

न्यूजेंट कहती हैं कि आबादी और आर्थिक विकास मोटापे के बढ़ने के मुख्य कारण बन गए हैं और जैसे-जैसे देशों की आय बढ़ रही है, उनके खान-पान में बदलाव आ रहा है. वह कहती हैं कि अमीर देशों में आबादी बूढ़ी होती जा रही है और उनके लिए वजन कम करना मुश्किल होता जा रहा है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की फ्रैंचेस्को ब्रांका कहती हैं कि मोटापे के खराब परिणामों को टालने के लिए कई तरह के उपाय किए जा सकते हैं. वह कहते हैं, “मिसाल के तौर पर जब खाने की चीजों की कीमतें तय की जाएं तो मोटापा बढ़ाने वाली चीजें जैसे कि पेय पदार्थ और अधिक चीनी व वसा वाले खाने महंगे रखे जाएं.”

इसके अलावा खाने के लेबल की व्यवस्था को बेहतर करना, काउंसलिंग और ड्रग थेरेपी आदि को इलाज के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है.

वीके/सीके (एएफपी)