इतिहास

14 जनवरी 1858 को सैकड़ो क्रांतिकारियों को भोपाल रियासत के सिहोर मे गोलियों से उड़ा दिया गया था!

Ataulla Pathan
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*14 जनवरी 1858 को सैकड़ो क्रांतिकारियों को सिहोर मे गोलियों से उड़ा दिया गया।*
सभी शहीदो को खिराज ए अकिदत

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🟡 *6 अगस्त 1857 को “सिपाही बहादुर” के नाम से सरकार तक बना ली। बागियों की सरकार को दर्शाने के लिये दो झण्डे निशाने मुहम्मदी और निशाने महावीरी क़िला के बुर्ज पर लगाये गए।*
🔵 *ज्ञात रहे के अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ बनी यह पहली समानांतर सरकार थी।*
🟢 *इस सरकार में वली शाह, आरिफ़ शाह, महावीर और रमजू लाल जैसे लोग शामिल थे। इन्होंने प्रशासन चलाने के लिए एक कौंसिल की स्थापना की। इसका मुखिया महावीर कोठ हवलदार को बनाया गया। इसलिए यह कौंसिल महावीर कौंसिल के नाम से मशहूर हुई।*

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6 अगस्त 1857 को फ़ौजियों ने भोपाल रियासत के सीहोर में बग़ावत का झंडा बुलंद किया। सिपाहियों ने वली शाह रिसालदार के नेतृत्व में बैरसिया और सीहोर में अंग्रेज़ों को चुन चुन कर मारा। उनके बंगलों में आग लगाई, ख़ज़ाना लूट लिया।

अंग्रेज़ों से भड़के सिपाहियों ने 6 अगस्त 1857 को एक सभा की, जिसमें क्रांतिकारी भाषण देते हुए वली शाह ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ उत्तेजित स्वर में बोले ‘फ़ौज के अधिकारी अच्छी तरह कान खोलकर सुन लें कि अगर उन्होने हमारे महबूब लीडर महावीर को गिरफ़्तार कर लिया तो हम फ़ौज की इमारत की ईंट से ईंट बजा कर रख देंगे और हम सभी बड़े अधिकारियों को भेड़ बकरियों की तरह काटकर फेंक देंगे।’

इसी दिन स्पष्ट कर दिया गया जो अंग्रेजों की ग़ुलामी पसंद करते हैं वह चले जायें और देश की आज़ादी पसंद करने वाले सिपाही क्रांतिकारियों का साथ दें। इसी दिन 6 अगस्त 1857 को “सिपाही बहादुर” के नाम से सरकार तक बना ली। बागियों की सरकार को दर्शाने के लिये दो झण्डे निशाने मुहम्मदी और निशाने महावीरी क़िला के बुर्ज पर लगाये गए। ज्ञात रहे के अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ बनी यह पहली समानांतर सरकार थी।

इस सरकार में वली शाह, आरिफ़ शाह, महावीर और रमजू लाल जैसे लोग शामिल थे। इन्होंने प्रशासन चलाने के लिए एक कौंसिल की स्थापना की। इसका मुखिया महावीर कोठ हवलदार को बनाया गया। इसलिए यह कौंसिल महावीर कौंसिल के नाम से मशहूर हुई।

सीहोर में दो अदालतें बनाई गईं। एक के मुखिया वली शाह थे तो दूसरे के महावीर। 8 जनवरी 1858 को जनरल रोज़ की विशाल फ़ौज मुम्बई के रास्ते सीहोर पहुँची। जनरल रोज़ की सेना ने यहाँ क्रांतिकारियों को पकडक़र गिरफ़्तार कर लिया। उनसे माफ़ी मांगने को कहा गया, लेकिन क्रांतिकारियों ने माफ़ी मांगने से इंकार कर दिया। अंतत: *14 जनवरी 1858 को सैकड़ो क्रांतिकारियों को सैकड़ाखेड़ी स्थित चांदमारी के मैदान पर एकत्र कर बिना किसी नियमित जांच के गोलियों से उड़ा दिया गया। अनेक किताबों और भोपाल स्टेट गज़ेटियर के पृष्ठ क्रमांक 122 के अनुसार इन शहीदों की संख्या 356 से अधिक थी।*

सिपाही बहादुर सरकार जिसकी स्थापना 6 अगस्त 1857 को सीहोर में हुई थी और 31 जनवरी 1858 को उस दिन समाप्त हो गई जब फाज़िल मुहम्मद ख़ां को राहतगढ़ क़िले के दरवाज़े पर जनरल रोज़ के आदेश पर फांसी पे लटका दिया गया। बग़ावत असफ़ल होने के पश्चात भी सीहोर के बाग़ी जिन्होने सिपाही बहादुर सरकार गठित की थी किसी न किसी प्रकार अपना आंदोलन चलाते रहे परन्तु व्यापक स्तर पर उनकी गिरफ्तारियों, देश निकाले और कई सजाओं ने उनके दमखम तोड़ दिये, और *अंग्रेज़ों से टकराने की इस हिमाकत की सज़ा 356 जांबाज़ों को सामूहिक मौत की सज़ा के रूप में भुगतनी पड़ी, उनका मंसूबा बिखर सा गया। *मगर आज़ादी की चाह सुलगती ही गई। और इसी सरज़मीन ने बरकतुल्लाह भोपाली को पैदा किया जिसने 1 दिसम्बर 1915 को काबुल में बाकायदा अंतरिम भारत सरकार की स्थापना की।*

स्वतंत्रता संग्राम के समृध्द इतिहास को अपने गर्भ में संजोये सीहोर को लेकर मध्य प्रदेश शासन और स्थानीय प्रशासन ने कभी कोई गंभीर कदम नहीं उठाये। यहाँ ऐतिहासिक स्मारकों और जीर्ण-शीर्ण हो रही समाधियों की देखरेख आज तक नहीं की गई। *लेकिन एक कोशिश दिल्ली में हुई, लाल क़िले में बने ‘आज़ादी के दीवाने’ नामक संग्रहालय में इस क़त्ल ए आम का ज़िक्र किया गया है.*

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Md Umar Ashraf
Heritage times
2)भोपाल स्टेट गज़ेटियर पृष्ठ क्रमांक 122

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संकलन अताउल्ला खा रफिक खा पठाण सर टूनकी बुलढाणा महाराष्ट्र
9423338726

सरफराज अहमद
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‘Nationalism and Indian Muslims’ book bha. Okay. Got Bhole Ideological Book Award. It was delivered on 24th December. The speech made on the occasion has been published on the Indie Journal today.
How did Muslims respond to it when India’s political and cultural social leisure was occupying? This book was born while searching for it.
How Muslim intellectuals protested after the concept of Falani came out. Review of two extreme ideologies among Muslims regarding Phalani and how did those who shouted Hindi nationalism initially against Urdu language took the role of binationalism? I have presented many such issues in this book. While answering the award, I have also ruined the presentation in this book. The link to the speech is given below.
Sarfaraz Ahmed,
Solapur

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भोपाल में वाक़े ताजुल मसाजिद का शुमार दुनिया की बड़ी मस्जिदों में होता है. अपने रकबे के लिहाज़ से ये दुनिया की आठवीं सब से बड़ी मस्जिद है. ढाई लाख स्क्वायर फीट में भी फैली इस मस्जिद में तक़रीबन 175000 (एक लाख पचहत्तर हज़ार) लोग नमाज़ पढ़ सकते हैं. भोपाल रियासत की तीसरी फ़रमारवां नवाब शाह जहां बेगम (رحمۃ اللہ علیہا) ने इस की तामीर 1877 में शुरू करवाई और 1901 में उनकी वफ़ात होने पर काम रुक गया. आज़ादी के बाद मौलाना इमरान नदवी साहब ने इसकी तामीर मुकम्मल की और इसे आबाद किया.

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इस मस्जिद के हिस्से में एक फ़ज़ीलत ये भी है इसकी तामीर लेडी ने करवाई थी. इस मस्जिद को बनाने वाले राज मिस्त्री अल्लाह रक्खा थे. सुर्ख़ पत्थर की बनी हुई ये मस्जिद मुग़ल और इंडो इस्लामी आर्किटेक्चर का बेहतरीन नमूना है.

मस्जिद एक टीले पर बनाई गयी है. इस में दाखिल होने के 9 दरवाज़े हैं मैन गेट की ऊंचाई 74 फीट है. मस्जिद के शुमाली हिस्से ( दक्षिणी भाग ) औरतों के लिए नमाज़ पढ़ने का इंतज़ाम है. मस्जिद में दो हौज़ भी हैं.

मस्जिद आबाद है और इस में एक मदरसा भी क़ायम है.