धर्म

इमाम हुसैन के अमर वचन…..आज़ाद रहो!

आज़ाद रहो!

स्वतंत्र रहो! इमाम हुसैन  के अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष के प्रेरक वचन

पार्स टुडे: इमाम हुसैन (अ.स.) का आंदोलन आज दुनिया में स्वतंत्रता, सत्य की खोज और अत्याचार के विरोध का प्रतीक माना जाता है।

हज़रत हुसैन  जिन्हें “अबा अब्दुल्लाह और “सैय्यदुस् शुहदा” के नाम से जाना जाता है, पैगंबर इस्लाम के पौत्र थे। वह 4 हिजरी क़मरी में मदीना में पैदा हुए थे। इमाम अली पैगंबरे इस्लाम के उत्तराधिकारी, उनके पिता थे और हज़रत फातिमा ज़हरा  पैगंबरे इस्लाम की बेटी, उनकी माँ थीं। इमाम हुसैन ने अपने भाई इमाम हसन की शहादत के बाद 50 हिजरी में इमामत का पद संभाला और लगभग ग्यारह साल तक अहल-ए-बैत के अनुयायियों और मुसलमानों का नेतृत्व किया।

इमाम हुसैन  की इमामत मुआविया के शासन के अंतिम वर्षों में शुरू हुई। मुआविया के बेटे यज़ीद ने 60 हिजरी में अपने पिता की मृत्यु के बाद, इमाम हसन के साथ हुए शांति समझौते की शर्तों को ताक पर रखकर खिलाफत की गद्दी हथिया ली और जनता पर अत्याचार शुरू कर दिया। इमाम हुसैन ने इसके खिलाफ विद्रोह किया और 10 मुहर्रम 61 हिजरी को अपने परिवार और वफ़ादार साथियों के साथ कर्बला की घटना में शहीद हो गए।

इस लेख में पार्स टुडे ने इमाम हुसैन के आंदोलन के कारणों व रहस्यों और उनकी कुछ हदीसों पर एक नज़र डाली है।

कर्बला के आंदोलन का कारण

इमाम हुसैन का आंदोलन और कर्बला की घटना निःसंदेह आज के विश्व में इस्लाम धर्म के बाक़ी रहने और अस्तित्व का मुख्य कारण है। यह वह विद्रोह है जो आज स्वतंत्रता, न्याय की खोज और अत्याचार के प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में पहचाना जाता है। कर्बला की इस घटना ने दुनिया भर के प्रतिरोध और स्वतंत्रता आंदोलनों के लिए एक मॉडल व आदर्श प्रदान किया है जिसके अनुसरण में अनेक समूहों ने महत्वपूर्ण सफलताएँ प्राप्त की हैं।

आज हम देखते हैं कि दुनिया भर के मुसलमान और अहल-ए-बैत के अनुयायी, कर्बला की शिक्षाओं और संस्कृति से प्रेरणा लेकर, अनेक प्रतिरोध समूहों का गठन करने और स्वतंत्रता-संग्रामी योद्धाओं को प्रशिक्षित करने में सक्षम हुए हैं। इससे पश्चिमी दुनिया और वैश्विक साम्राज्यवाद के खिलाफ एक मजबूत और स्थिर मोर्चा बनाया जा सका है।

इसका स्पष्ट उदाहरण फिलिस्तीन, यमन और लेबनान जैसे क्षेत्रों में गठित प्रतिरोध समूह हैं जिन्होंने इमाम हुसैन के आंदोलन से प्रेरणा लेकर ज़ायोनी दुश्मन के ख़िलाफ़ डटकर मुकाबला किया है।

इमाम हुसैन की हदीस – अत्याचार से बचने की सीख

1. “मज़लूम पर ज़ुल्म करने से बचो”

«بُنَی ایاک وَ ظُلْمَ مَنْ لا یجِدُ عَلَیک ناصِراً الَّا اللَّه جَلَّ وَ عَزَّ»

अनुवाद:

“मेरे बेटे! उस व्यक्ति पर कभी अत्याचार मत करना जिसका अल्लाह के सिवा कोई सहारा नहीं है।

इमाम हुसैन के प्रेरक उपदेश

2. “गरिमा के साथ मृत्यु, अपमान के साथ जीवन से बेहतर है यानी इज़्ज़त की मौत ज़िल्लत व अपमान की ज़िन्दगी से बेहतर है।

«مَوْتٌ فِى عِزّ خَيْرٌ مِنْ حَيَاةٍ فِى ذُلّ»

3. इमाम महदी  का आगमन

«لَوْلَمْ يَبْقَ مِنَ الدُّنْيا إلاّيَوْمٌ واحِدٌ لَطَوَّلَ اللّه عَزَّوَجَلَّ ذلِكَ الْيَوْمَ حَتّى يَخْرُجَ رَجُلٌ مِنْ وُلْدى، فَيَمْلاَءُها عَدْلاً وَقِسْطاً كَما مُلِئَتْ جَوْراً وَظُلْماً»

यदि दुनिया का केवल एक दिन ही शेष रह जाए, तो अल्लाह उस दिन को इतना लंबा कर देगा कि मेरे वंश से एक व्यक्ति (इमाम महदी) प्रकट होगा और पूरी धरती को न्याय एवं निष्पक्षता से भर देगा, जिस तरह वह अत्याचार और अन्याय से भरी हुई थी।”

इमाम हुसैन के अमर वचन

4. स्वतंत्र रहो!

«اِنْ لَمْ يَكُنْ لَكُمْ دِيْنٌ وَكُنْتُمْ لاتَخافُونَ الْمَعادَ فَكُونُوا اَحْـراراً فِى دُنْيـاكُمْ»

यदि तुम्हारा कोई धर्म नहीं है और तुम प्रलय व क़यामत से नहीं डरते, तो कम से कम इस दुनिया में तो स्वतंत्र रहो!

5. मेरे विद्रोह का उद्देश्य

«… إِنّی لَمْ أَخرُجْ أَشِراً و لا بَطِراً و لا مُفْسِداً و لا ظالِماً، إِنَّما خَرجْتُ لِطَلَبِ إلاصلاحِ فی أُمَّه جَدّی، أُریدُ أنْ آَمُرَ بالمَعروفِ و أنهی عَنِ المنکَر…»

“… मैंने न तो अहंकारवश, न विलासिता के लिए, न अशांति फैलाने के लिए और न ही अत्याचार करने के लिए आंदोलन किया है। मैंने केवल अपने नाना की उम्मत के सुधार के लिए यह कदम उठाया है… मैं अच्छाई का आदेश देना और बुराई से रोकना चाहता हूँ।

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