साहित्य

⚘रावण ज़ोरों का ठहाका लगाया, फिर अचानक शान्त हो कुछ सोचा और मुस्कुराया : रूबी सत्येन्द्र कुमार की कविता

रूबी सत्येन्द्र कुमार की कविता मंजरी
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छन्दमुक्त कविता
लंकापति
⚘अबकी दशहरे पर हमने फिर इक रावण बनाया।
⚘बिल्कुल रावण के जैसे भीमकाय शरीर पर बीस भुजाओं व दस सिरों को सजाया।
⚘रेशमी चमकदार वस्त्रों व आभूषणों को भी पहनाया।
⚘अब रावण ठहरे लंकापति यही सोचकर थोडा भव्य जलवा भी बनाया।
⚘जब रावण तैयार हो गये हैं दहन के लिए ,
यह सोचकर हमने भी ज्यों ही सुकून पाया।
⚘रावण जोरों का ठहाका लगाया।
फिर अचानक शान्त हो कुछ सोचा और मुस्कुराया ,
⚘सच में तुमने आज लंकापति रावण को फिर से हराया।
⚘इतनी महँगाई में भी तुमने जी खोल कर स्वांग रचाया ।
⚘ये वाक़या मुझे बहुत मनभाया।
लेकिन सोचता हूँ यदि आज मै जीवित होता।
⚘मै कैसे अपने परिवार व लंका को ढोता?
⚘प्रजा के लिए सोने के महल के जगह
शायद झोपड़ पट्टी देखकर मै ही रोता।
⚘आज लंका के हर घर में भूखे नंगे बच्चे
हाय बिन जलायें मै शर्म से जल जाता।
⚘आज के लंका में मै राजा होकर भी खुद को रंक पाता।
⚘शायद सीता माता को देखकर खुद ही घबराता।
⚘अब ऐसे हालात में
मै क्या हरण करता?
और श्री राम से युद्ध करता?
⚘मै तो इस मँहगाई के दौर मे इसी के हाथो मारा जाता।
रूबी गुप्ता दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश भारत। ।