साहित्य

हे बापू ! इहाँ समाजबाद हिन्द स्वराज कहलायेगा और वह किसानों के ग्राम स्वराज और पंचायती राज के रस्ते आगे बढ़ेगा!

Kavita Krishnapallavi
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एक बार फिर दे रही हूँ! अनुरोध है, पढ़िएगा ज़रूर! पहले पढ़ा हो, तो भी!

देवतुल्य रास्ट्रपिता गान्ही बाबा को हम भारतीय कमनिस्टों का सादर परनाम
और लाले लाले लाल सलाम !!

हे बापू ! हमने ‘रघुपति राघव राजाराम’ और ‘बैस्नव जन तो तेने कहिए’ याद कर लिया है और चरखा कातना भी सीख लिया है ।

हम भी अब अपने को सनातनी हिन्दू मानते हैं लेकिन ‘सरब धरम सदभाव’ में भरोसा करते हैं और सभी दलितों को हरि का जन मानने लगे हैं । हम भी अब औरतों को सीता और साबितरी के रास्ते पर चलने के लिए कहने लगे हैं और गीता ख़ुद पढ़ने के साथ उनको भी पढ़वाने लगे हैं ।

हे बापू ! अब हम नास्तिकता की कुमति छोड़ चुके हैं । साकाहारी भी हो गये हैं और प्राकृतिक चिकित्सा और ब्रह्मचर्ज के पर्योग भी करने लगे हैं ।

हे बापू ! हमें अपनी सारी गलतियाँ समझ आ गयी हैं । जो नहीं आईं हैं, उनके लिए भी हम आपके चरणों में लोट कर छिमा माँगते हैं ।

हे बापू ! अपने पापों के लिए अब हम हर दो अकतूबर और तीस जनौरी को राजघाट पर जाकर चरखा कातेंगे और उपवास रखेंगे ।

हे बापू ! हम मानने लगे हैं कि भारत में लेलिन नहीं आप चलेंगे, स्वदेसी का मंतर चलेगा । इहाँ समाजबाद हिन्द स्वराज कहलायेगा और वह किसानों के ग्राम स्वराज और पंचायती राज के रस्ते आगे बढ़ेगा । बापू, अब हम एकदम स्वदेसी हो गये हैं, इसलिए जन्ता के हिरदे में भित्तर तक घुस जायेंगे । देखो, हम अपनी बोली-भाखा भी बदल लियेन हैं ।

हे बापू ! ऊ सब गोडसे का औलाद भी तुमरी नाम लेने लगा है । ई अनरथ हम नहीं होने देंगे । पुरनका गाँधीबादी अब रहा नहीं अउर नया वाला सब फरजी है । इसलिए हमने आपका झंडा उठा लिया है । वइसे भी ललका झंडा पुराना हो रहा था, कुछ बदलाव मंगता था ।

हे बापू ! कस्सम से ! अबकी एकदम्म सच्ची कह रहे हैं ! हमने हिंसा से एकदम कान पकड़कर तोबा कर लिया है । फ़ासिस्टों से भी अब हम सत्य-अहिंसा-अनसन के रस्ते लड़ेंगे, उनका हिरदे-परिबरतन करेंगे । सहर अउर गाँव के मजूरों को हमने समझा दिया है कि कारखाना मालिक को और भूस्वामी लोग को अपना गार्जियन समझो, ऊ सब रास्ट्रीय संपत्ती का ट्रस्टी है । कवनो सिकायत हो तो प्रार्थना करो, हिरदे बदलो, कवनो झगड़ा-टंटा नाहीं, हिंसा एकदम्मे नाहीं । देस खातिर अउर अपने अन्नदाता खातिर आखिर गरीब-गुरबा-मजूरा नाहीं बर्दास्त करेगा तो कउन करेगा ?

हे बापू ! कुछ पुरनका काट के हठधरमी कमनिस्ट अबहिंयो बदलने को तैयार नहीं । ऊ सब हमलोग को ‘लिब्बू’ अउर ‘चोचल ढेलोक्रेट’ बोलता है । पर हम सरमाते नहीं बापू ! जब आप सरन में ले लिए तो जनता के दिल में तो घुसिए जायेंगे ! तब बच्चू लोगों को पता चलेगा ।
चलो, सब गाओ रे,”रघुपति राघव राजा राम… …”

डिस्क्लेमर : लेखका के निजी विचार हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है