अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने जिन चीजों को बनाया है उनमें किसी एक को उनका सरदार भी बनाया है जैसे पूरी कायनात में सरदार इंसान को बनाया है और पेड़ पौदे पहाड़ हर एक चीज़ इंसान के फायदे और भलाई के लिये बनाई गई है।
ऐसे ही दिनों में भी एक दिन अल्लाह ने ऐसा बनाया है जो दिनों सरदार है और उसको अल्लाह ने ख़ास फ़ज़ीलत ओ बरकत वाला बनाया है,जिस दिन इंसानों पर अल्लाह की तरफ से क़ुदरती तौर पर असर महसूस होता है।
इस दिन की फ़ज़ीलत हज़रत अबू हुरैरा की इस हदीस से समझी जासकती है कि इस मुबारक दिन में एक घड़ी ऐसी भी जिस में जो दुआ माँगी जाये वो क़ुबूल होती है”हज़रत अबू हुरैरा रज़ि फरमाते हैं कि रसूल्ल्लाह सलल्लाहु अलैही व्सल्लम ने फरमाया कि जुमें के दिन एक घड़ी ऐसी भी आती है कि कोई मुसलमान बन्दा उस वक़्त इबादत में मसरूफ हो और अल्लाह से किसी चीज़ का तलबगार हो तो अल्लाह उसकी दुआ ज़रूर क़ुबूल करता है। सहीह बुख़ारी 1/128
उलेमा के उस दुआ के कुबूलियत वाले वक्त के बारे में इख़्तेलाफ़ है लेकिन अधिकतर बुजुर्गों ने और मुहद्दिसीन ने असर की नमाज़ से लेकर सूरज डूबने तक का समय दुआ के क़ुबूल होने का समय माना जाता है जिसके बारे में हज़रत जाबिर रज़ि,हज़रत अबू हुरैरा रज़ि,हज़रत अबू सईद रज़ि, की अहादीस मौजूद हैं तथा इमाम अबू हनीफा और इमाम अहमद की भी ये ही राय है।
एक दूसरी राय ये है कि इमाम के मिम्बर पर बैठने से लेकर नमाज़ के पूरा होने तक का समय दुआ की कुबूलियत का समय है इस रिवायत की ताईद इमाम मुस्लिम की हदीस से होती है।