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हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में राजनीति ”पेंशन” के मुद्दे के इर्द-गिर्द घूम रही है : कांग्रेस ने सत्ता में आते ही सबसे पहले ओपीएस लागू करने की घोषणा की है : रिपोर्ट

“मुझे सिर्फ़ 1301 रुपए प्रति महीना पेंशन मिलती है. यदि एक गैस सिलैंडर भी ले लिया तो पैसे ख़त्म हो जाते हैं. इसलिए सड़क के किनारे चाय बेच कर लोगों के जूठे बर्तन मांज कर गुज़ारा करना पड़ रहा है.”

62 वर्षीय हरी दास ठाकुर जब नम आँखों से अपनी हालत बयां करते हैं तो पास खड़े लोग भी अपने आँसू रोक नहीं पाते. पिछले साल हिमाचल शिक्षा विभाग से क्या रिटायर हुए हरी दास ठाकुर की ज़िंदगी मुश्किल हो गई.

शिमला से लगभग एक घंटे की दूरी पर कुफ़री के पास वे एक चाय की छोटी-सी दुकान चलाते हैं. साथ में मैगी के कुछ पैकेट, दो तीन दर्जन अंडे और कुछ चिप्स के पैकेट भी उनकी दुकान पर पड़े हैं.

कुफ़री की बर्फ़ीली हवा में इनको इंतज़ार रहता है कि कुछ मुसाफ़िर यहाँ रुक कर गर्म चाय के साथ ऑमलेट या मैगी खा लें और वे कुछ पैसे कमा पाएँ.

“बड़ी मुश्किल से नौकरी लगी थी. सरकार ने यह भी घोषणा की थी कि 60 साल से ऊपर के बज़ुर्गों को 2000 रुपए पेंशन देगी. वह भी हमें नहीं मिलती क्योंकि हम एनपीएस (नेशनल पेंशन सिस्टम) में आते हैं. तो फिर ऐसे में हम कहां जाएं. हमें तो सड़क पर ला दिया है.”

“मैंने कभी ऐसी सरकार नहीं देखी. हम अपने परिवार को कैसे पालें? कैसे गुज़ारा करें? हमने दो-ढाई महीने अनशन भी किया. हमें कोई नहीं पूछता.”

फिर चुनावों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि अब हमारी बारी है. “सबकी बारी आती है. हम भी कुछ करेंगे.”

चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा

हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में राजनीति पेंशन के मुद्दे के इर्द-गिर्द घूम रही है.

नई पेंशन स्कीम (यानी एनपीएस) में आने वाले सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना (यानी ओपीएस) की बहाली की माँग कर रहे हैं और यह चुनाव में बड़ा मुद्दा बना हुआ है.

सुबह और शाम की शिमला की ठिठुरने वाली ठंड के बीच दिन की धूप में मॉल रोड पर तो अक्सर लोग इस पर चर्चा करते मिल जाते हैं.

राज्य में फ़िलहाल भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ने सत्ता में आते ही सबसे पहले ओपीएस लागू करने की घोषणा की है.

कांग्रेस के नेता यह दावा कर रहे हैं कि जैसे राजस्थान व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने ओपीएस लागू कर दी, ऐसे ही यहाँ भी कर दी जाएगी. जबकि आम आदमी पार्टी दावा कर रही है कि उसकी सरकार ने पंजाब में इसे हाल ही में सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है.

हिमाचल प्रदेश में एनपीएस से रिटायर हो चुके कर्मचारी तो दुखी हैं ही नौजवान कर्मचारी भी अपने भविष्य के लिए चिंतित हैं.

राज्य के बिजली विभाग में कार्यरत 29 साल के जय किशन कहते हैं कि जब रिटायर हो रहे लोगों की ओर देखते हैं तो घबरा जाते हैं क्योंकि जिस तरीक़े की उनको एनपीएस के तहत पेंशन मिल रही है वह बहुत ही कम है.

वो कहते हैं, “प्रतिकूल परिस्थितियां हर इंसान के लिए बहुत गंभीर होती हैं. जैसे-जैसे महंगाई की दर बढ़ती जा रही है, उसमें हमें जो पेंशन मिलेगी उससे हमारा घर तो बिल्कुल नहीं चल पाएगा.”

कब और क्यों बदली पेंशन योजना?

तत्कालीन एनडीए सरकार ने वर्ष 2003 में पुरानी पेंशन की जगह एनपीएस लागू की थी. उसके बाद कई राज्यों की तरह हिमाचल प्रदेश में भी इसे लागू किया गया.

एनडीए सरकार ने 1 जनवरी 2004 को या उसके बाद सेवा में शामिल होने वाले सभी कर्मचारियों के लिए नई पेंशन प्रणाली शुरू की थी.

उस समय यह भी दलील दी गई थी कि बहुत बड़ी रकम पेंशन पर ख़र्च होती है. नई पेंशन स्कीम के तहत आने वाले कर्मचारियों ने एक यूनियन भी बना रखी है और चुनाव के नज़दीक इन्होंने अपना आंदोलन भी तेज़ कर दिया है.

न्यू पेंशन स्कीम एंप्लाइज़ एसोसिएशन (एनपीएसईए-एचपी) के महासचिव भरत शर्मा बताते हैं कि ”हमें संघर्ष करते हुए तीन साल हो चुके हैं और आज यह मुद्दा हिमाचल में नंबर एक पर बना हुआ है.”

उनका कहना है कि न्यू पेंशन स्कीम में बहुत सारी कमियां हैं. वो कहते हैं, “पुरानी स्कीम के तहत आपके आख़िरी वेतन के लगभग आधी पेंशन मिलती थी जिससे आपके घर का अच्छा गुजारा हो जाता था.

लेकिन जब इस न्यू पेंशन स्कीम को लागू किया गया तो उसमें पहले तो यह कहा गया कि मल्टीनेशनल कंपनी की तरह आपको बहुत लाभ मिलेगा. लेकिन असली स्थिति जब सामने आई तब किसी को 800 रुपये तो किसी को 1500 रुपये की पेंशन मिलने लगी.”

उन्होंने यह भी बताया, “हमने लोगों को इकट्ठा किया, रैलियाँ और अनशन किए. आज लगभग लगभग डेढ़ लाख कर्मचारी हमारे साथ जुड़ चुके हैं.”

हिमाचल में नई पेंशन स्कीम का विरोध करने वालों में वे भी हैं जिन्हें पुरानी पेंशन के तहत अच्छी-ख़ासी रक़म मिलती है. जैसे हरियाणा बिजली बोर्ड से वरिष्ठ अधिकारी के पद से रिटायर हुए हेत राम पाल जिन्हें लगभग 50,000 रुपए पेंशन मिलती है.

वो कहते हैं, “हमें जो पेंशन मिलती है उससे हमारा अच्छा गुज़ारा तो होता ही है, हम खुल कर ख़र्च भी कर सकते हैं. अपने बच्चों और पोतों पर भी ख़र्च करते हैं. अच्छी बात यह है कि हमारी पेंशन महँगाई भत्ता मिलने पर लगातार बढ़ती रहती है.”

नई पेंशन वाले लोगों के आंदोलन का साथ देने की वजह बताते हुए वे बताते हैं, “हम एनपीएस वाले लोगों के साथ इसलिए हैं क्योंकि एक तो उनके साथ अन्याय हो रहा है और दूसरे कल हमारे बच्चे और उनके बच्चे भी इससे प्रभावित हो सकते हैं.”

क्या पुरानी पेंशन स्कीम को फिर से बहाल किया जा सकता है?
हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी के इंटर डिसिप्लीनरी स्टडीज़ विभाग के प्रोफ़ेसर बलदेव नेगी कहते हैं कि अगर नीयत हो तो इसे बिल्कुल लागू किया जा सकता है.

“सरकार के ही वित्त विभाग ने यह आकलन किया है कि एक बार में लगभग 2000 करोड़ रुपए का ख़र्च होगा और बाद में हर साल 500 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. अगर आप देखें कि नई स्कीम के तहत सरकार एनएसडीएल को पहले ही 1100 करोड़ के क़रीब देती है जो बचाई जा सकती है.”

पर कुछ विश्लेषकों का मानना हैं कि पुरानी स्कीम लागू करने का मतलब है भारी वित्तीय बोझ.

हिमाचल युनिवर्सिटी के ही राजनीतिक विज्ञान विभाग के प्रोफ़ेसर हरीश ठाकुर कहते हैं कि स्कीम बदलना बहुत बड़ी चुनौती है.

“हिमाचल की अगर हम बात करें तो इस समय पेंशन पर लगभग 7500 करोड़ रुपए ख़र्च हो रहे हैं. अगर हम ओपीएस में दोबारा लौटते हैं तो 2030 तक यह बोझ चार गुना बढ़ जाएगा. यह बहुत बड़ी चुनौती है और इसीलिए मौजूदा सरकार चाहते हुए भी इसे पूरा नहीं कर पाई.”

उधर वित्तीय संकट की दलील पर हरी दास ठाकुर गुस्से में कहते हैं, “सरकार यह कहती है कि वित्तीय स्थिति ख़राब है. तो फिर आप सबके लिए पेंशन बंद करें. सिर्फ़ 2004 के बाद वालों की ही पेंशन क्यों बंद हो? और अगर वित्तीय स्थिति ख़राब है तो उसको सुधारें और हमारे साथ इंसाफ़ करें.”

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अरविंद छाबड़ा
बीबीसी संवाददाता