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हिमाचल प्रदेश : मस्जिदों के पास हनुमान चालीसा का पाठ, हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ता माहौल बिगाड़ने में लगे हैं : रिपोर्ट

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में उपजा मस्जिद विवाद भले ही थम गया हो लेकिन इस घटना से जो चिंगारी उठी है वो प्रदेश के दूसरे कई इलाक़ों में फैल रही है. कई और जगहों पर भी लोग प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं.

शुक्रवार को जिस समय राज्य के सभी राजनीतिक दल शिमला में शान्ति की अपील कर रहे थे, ठीक उसी समय प्रदेश के मंडी ज़िले में दशकों पुरानी एक मस्जिद के पास हिन्दू संगठन के कार्यकर्ता और स्थानीय लोग हनुमान चालीसा का पाठकर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे.

हालांकि मंडी के ज़िलाधिकारी अपूर्व देवगन ने बताया है कि “ज़िले में कहीं तनाव नहीं है और हालात सामान्य हैं.”

कमोबश यही हालात शनिवार को शिमला ज़िले के रामपुर, सुन्नी और कुल्लू ज़िला मुख्यालय में भी देखे गए, जहां मस्जिदों के पास हनुमान चालीसा का पाठ कर प्रदर्शन किया गया.

इन जगहों पर जमा हुए प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि इन स्थानों पर अवैध रूप से मस्जिदें बनाई गई हैं.

सबसे पहले बात मंडी की मस्जिद की. शुक्रवार को मस्जिद के नज़दीक स्थानीय लोगों के साथ हिन्दू संगठनों के कुछ कार्यकर्ता भी जमा हुए.

स्थिति को देखते हुए स्थानीय प्रशासन ने क्षेत्र में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 163 लगाई और प्रदर्शनकारियों को मस्जिद से कुछ दूर ही रोक लिया. उसके बाद प्रदर्शनकारी वहीं बैठकर हनुमान चालीसा पाठ कर अपना विरोध जताने लगे.

जिस दिन यह सब हो रहा था, उसी दिन मंडी नगर निगम आयुक्त ने अपनी सुनवाई में एक महीने के भीतर अवैध निर्माण को तोड़ने के आदेश भी दिए थे. प्रशासन के अनुसार मस्जिद की दो मंज़िलें अवैध पाई गई थीं.

प्रशासन के अनुसार इसके अलावा मस्जिद की बाहरी दीवार लोक निर्माण विभाग की ज़मीन पर बनी पाई गई थी, जिसे मुस्लिम समुदाय के लोगों ने निशानदेही के बाद ख़ुद ही तोड़ दिया था.

मंडी नगर निगम के एक अधिकारी ने बताया कि अवैध निर्माण की शिकायत अक्तूबर 2023 में आई थी जिस पर नियमानुसार कार्रवाई की गई है. लेकिन शिमला मस्जिद विवाद के बाद से यहां भी अचानक प्रदर्शन होने लगे.

विश्व हिन्दू परिषद के प्रदेश महामंत्री तुषार डोगरा ने कहा, “प्रदेश भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. इसका कारण सरकार का ढुलमुल रवैया है. जब जनता सड़कों पर आई, सरकार तुरंत फ़ैसले सुनाने लगी. मंडी में शहर के बीचों-बीच मस्जिद बन गई, संजौली में भी ऐसा हुआ. इसके लिए दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए.”

मंडी में क्यों भड़का विवाद?

शिमला की संजौली की मस्जिद के बाहर प्रदर्शन की शुरुआत दो सितम्बर के दिन हनुमान चालीसा के पाठ से शुरू हुई थी.

इस मस्जिद से जुड़े विवाद की आंच आख़िर मंडी तक कैसे पहुंची? इस बारे में मंडी में प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे गोपाल कपूर कहते हैं, “इस मस्जिद को लेकर स्थानीय लोग पहले से ही मुखर थे. शिमला में जो कुछ भी हुआ उससे मंडी में स्थानीय लोगों का आक्रोश बढ़ गया.”

कपूर ने दावा करते हैं, “विवाद अभी भी ख़त्म नहीं हुआ है. हमारी मांग है कि मस्जिद के बाहर और नीचे पुरातत्व विभाग से खुदाई करवाई जाए, इसके नीचे मंदिर के अवशेष मिलेंगे.”

मस्जिद की जगह के बारे में उन्होंने कहा कि यहां के राजा ने एक मुसलमान बुनकर को नमाज़ अता करने के लिए यह जगह दी थी. कपूर का दावा है कि बाद में राजस्व रिकार्ड्स से छेड़छाड़ कर ये ज़मीन मस्जिद के नाम कर दी गई.

राजस्व विभाग के एक अधिकारी ने पहचान ज़ाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया, “साल1970 के बंदोबस्त रिकॉर्ड में यह भूमि मस्जिद है. लेकिन यहां पर दो मंज़िलों का एक भवन बना है जिसका नक्शा प्रशासन की ओर पास नहीं है. यहां 45 वर्ग मीटर पर मस्जिद बनाने की अनुमति थी जबकि निर्माण 232 वर्ग मीटर पर हुआ है.”

जबकि, मस्जिद के इमाम इक़बाल अली ने बताया, “हमें अवैध निर्माण का नोटिस मिला था जिसके बाद लोकनिर्माण विभाग की ज़मीन पर बनी दीवार तोड़ दी है.”

वहीं मंडी के ज़िलाधिकारी अपूर्व देवगन के मुताबिक़, “मस्जिद विवाद अब पूरी तरह शांत हो चुका है. नगर निगम आयुक्त की कोर्ट में मामला लंबित था और अब फै़सला भी आ चुका है. उस फै़सले का पालन किया जाए, यह ज़िम्मा निगम का है. शुक्रवार को यहां एक प्रदर्शन भी हुआ था और क़ानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए सभी ज़रूरी इंतज़ाम किए गए थे.”

शिमला विवाद की चिंगारी कहां तक शांत
शिमला के संजौली में मस्जिद विवाद दो गुटों में झगड़े से शुरू हुआ था. इसके बाद 14 साल से चल रहे अवैध निर्माण के मामले को लेकर मस्जिद के ख़िलाफ़ काफ़ी विरोध प्रदर्शन हुए.

उसके बाद मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ‘अवैध’ हिस्से को सील करने और गिराने की अनुमति मांगी. सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर इस मामले को ठंडा करने की कोशिश की तो लगा कि ये मामला अब शांत हो रहा है.

इसमें शिमला ज़िला के रामपुर, सुन्नी और कुल्लू के ज़िला मुख्यालय पर स्थानीय मस्जिदों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए. साथ ही शिमला में हुए प्रदर्शन के दौरान बल प्रयोग करने के ख़िलाफ़ भी विरोध जताया गया.

इन सब जगहों पर विरोध प्रदर्शन का तरीक़ा एक जैसा था, लोगों ने मस्जिदों के बाहर या नज़दीक पहुँचकर हनुमान चालीसा का पाठ किया.

हिमाचल प्रदेश हिन्दू जागरण मंच के प्रदेश अध्यक्ष कमल गौतम ने दावा किया है, “पिछले 10 सालों के अंदर सुन्नी में (जगह का नाम, समुदाय का नहीं) मस्जिद बनकर तैयार हो गई, लेकिन किसकी ज़मीन पर बनी है, इस बारे में कोई ख़ास जानकारी नहीं है.”

उनके मुताबिक़ स्थानीय लोगों को इस बारे में ठोस जानकारी नहीं है इसलिए प्रदेश सरकार को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए. वो दावा करते हैं, “ऐसा ही कुल्लू में देखने को मिला है जहां पांच मंजिला मस्जिद बहुत कम समय में बनकर तैयार हो गई.”

स्थानीय लोगों का दावा है कि ये मस्जिद सरकारी ज़मीन पर अवैध तरीक़े से बनाई गई है.

अन्य जगहों पर भी भड़का विवाद
बीते दिनों कुल्लू में लगभग 50 साल पुरानी जामा मस्जिद के ख़िलाफ़ वहां के स्थानीय लोग लामबंद हो गए.

कुल्लू में प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले क्षितिज सूद ने दावा किया है, “यह मस्जिद पुरानी ज़रूर है लेकिन इस ज़मीन का असली मालिक प्रदेश का खादी बोर्ड है.”

वहीं मस्जिद के इमाम नवाब हाश्मी का दावा है, “ज़मीन साल 1999 में मस्जिद के नाम हो चुकी है.”

सुन्नी में सक्रिय अल्पसंख्यक कल्याण समिति के अध्यक्ष मुश्ताक़ कु़रैशी ने कहा, “यह मस्जिद निजी ज़मीन पर बनी हुई है और सभी क़ानूनी औपचारिकताओं के तहत बनी है. किसी का पूरे समुदाय पर बिना वजह उंगली उठाना सही नहीं है.”

हालांकि कुल्लू नगर परिषद के अधिकारी के अनुसार, “साल 2000 में दो साल के भीतर दो मंजिल की मस्जिद बनाने कि अनुमति मिली थी, लेकिन यहां निर्माण कार्य 2017 तक पूरा हो पाया.”

यहां पास ही में दुकान चलाने वाले संजीव शर्मा बताते हैं, “यह मस्जिद आज़ादी से पहले की है. पहले यहां स्लेट छत वाली एक मंज़िल की मस्जिद होती थी, जिसे बाद में तोड़कर मस्जिद का नया भवन बनाया गया. पिछले पांच साल में यहां पांच मंजिलें बन गईं और नमाज़ियों की संख्या भी अचानक से बढ़ गई.”

प्रशासन का कहना है कि साल 2017 में अवैध निर्माण की शिकायत आने के बाद यहां कोर्ट ने निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है.

शिमला की एक और मस्जिद भी बीते दिनों इसी तरह के एक विवाद में फंस गई है.

स्थानीय लोग शिमला ज़िला के रामपुर मस्जिद को लेकर भी हनुमान घाट जाने वाली सालों पुरानी सड़क पर कब्ज़ा करने का आरोप लगा रहे हैं.

स्थानीय निवासी तन्मय शर्मा के मुताबिक़, “इस बारे में लगभग दो साल पहले प्रशासन को सूचित किया था, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.”

वहीं रामपुर में कौमी एकता मंच के संयोजक मोहम्मद ज़ीशान ने कहा, “हम लोग भी चाहते हैं कि क़ानून अपना काम करे. लेकिन मस्जिद की ओर से किसी कब्ज़े को लेकर यहां पहली बार कोई शिकायत हुई है.”

वैसे इस मामले में प्रदर्शनकारियों ने कार्रवाई करने के लिए प्रशासन को पंद्रह दिनों का समय दिया है.

हिन्दू संगठन से जुड़े कुछ लोगों का दावा है कि प्रदेश भर में इस प्रकार से विवादस्पद मस्जिदों का एक डाटाबेस तैयार किया गया है.

संगठन से जुड़े एक पदाधिकारी का दावा है, “अब जब मुहिम शुरू हो ही चुकी है तो रुकने का सवाल ही नहीं है. इसके लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन किए जा रहे हैं और स्थानीय लोग ही प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं.”

उनका आरोप है, “यह किसी धर्म के ख़िलाफ़ नहीं है. शिमला के अंदर ही कई जगहें हैं जहां पिछले 15 सालों में जनसांख्यिकी बदलाव दिख रहा है. हमारा लक्ष्य इन सब बातों को उजागर करना है.”

जनसांख्यिकी में बदलाव को लेकर न तो शिमला में और न ही राज्य सरकार के स्तर पर किसी तरह का आंकड़ा मौजूद है, इसलिए इस मामले की पुष्टि नहीं की जा सकती.

तनाव के पीछे क्या है वजह?
सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक एमपीएस राणा के मुताबिक़, ”साल 2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल में मुस्लिम आबादी तीन प्रतिशत से भी कम है.”

“पिछले एक दशक के अंदर दूसरे प्रदेशों ख़ासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश से प्रवासी मुस्लिम यहां आए हैं, जिनमें से अधिकतर फल और कपड़ा व्यापारी या फिर दर्ज़ी और नाई का काम करते हैं. बीते सालों में यहां व्यापार में उनका बढ़ता प्रभाव, इस तनाव का एक कारण है.”

वहीं शिमला के एक राजनीतिक विश्लेषक डाक्टर रमेश कुमार बताते हैं, “हिमाचल में पहले कभी इस तरह से हिन्दू-मुस्लिम समुदाय के बीच में तनाव नहीं देखा गया. जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई तब भी हिमाचल में कोई अप्रिय घटना नहीं हुई. अब यहां बात सिर्फ़ मस्जिद निर्माण या अवैध निर्माण की नहीं है, दूसरे प्रदेशों से आए मुसलमानों की संख्या में बढ़ोत्तरी तनाव का एक बड़ा कारण है.”

हालांकि हाल के सालों में बाहर से आए मुसलमानों की संख्या कितनी बढ़ी है, इसको लेकर भी कोई विश्वसनीय तथ्य उपलब्ध नहीं है.

अल्पसंख्यक कल्याण समिति के अध्यक्ष मुश्ताक़ कु़रैशी कहते हैं, “हर किसी पर आरोप लगाने से बेहतर होगा कि आने वाले सभी प्रवासियों की जांच हो.”

ताज़ा घटनाक्रम के बीच मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने आम लोगों से शान्ति की अपील की है. मुख्यमंत्री का कहना है, “इन सब मामलों का हल क़ानून के रास्ते निकलेगा. उग्र प्रदर्शन करने से प्रदेश का नाम ख़राब होगा, इससे पर्यटन को नुक़सान होगा.”

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सौरभ चौहान
पदनाम,मंडी से बीबीसी हिंदी के लिए