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हिज़्बुल्लाह ने अपने चार ड्रोन विमानों से अमरीका और इस्राईल दोनों को झुकाया, दुश्मन केवल ताक़त की ज़बान समझता है : रिपोर्ट

लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह का कहना है कि इस्राईल की धमकियां बेकार है और दुश्मन केवल ताक़त की ज़बान ही समझता है।

हिज़्बुल्लाह के एक्ज़िक्टिव काउंसिल से उपप्रमुख ने इस बात पर बल दिया है कि सैयद हसन नसरुल्लाह के कथनानुसार लेबनान के विरुद्ध ज़ायोनी शासन की धमकियां बेकार हैं।

फ़ार्स न्यूज़ एजेन्सी के अनुसार हिज़्बुल्लाह के एक्ज़िक्टिव काउंसिल से उपप्रमुख शैख़ अली दामूश ने कहा कि लेबनान के विरुद्ध इस्राईल की धमकियां बेकार हैं और जैसा कि सैयद हसन नसरुल्लाह ने भी कुछ समय पहले कहा था, हमारा नज़रिया भी स्पष्ट है।

उन्होंने कहा कि हमारे साहसी लोग सबसे अहम चीज़ हैं जिन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पंथि से पाठ सीखा है और पिछले काल में इस्राईल के सारे युद्धों और अतिक्रमणों का धैर्य, संयम और डटकर मुक़ाबला किया।

उनका कहना था कि हमारी जनता को दुश्मन की धमकियों और मनोवैज्ञानिक युद्ध से कोई भय नहीं है।

शैख़ दामूश ने बल दिया कि दुश्मन कूटनीति की भाषा नहीं समझता और जो लोग यह समझते हैं कि दुश्मन लेबनान के अधिकारों को केवल वार्ता के तर्क पर स्वीकार करता है, वह ग़लत हैं, दुश्मन केवल शक्ति की भाषा समझता है और अतीत के अनुभवों ने यह सिद्ध कर दिया है।

उन्होंने प्रतिरोध की सैन्य शक्तियों और जनता के समर्थन की ओर इशारा करते हुए कहा कि इन्हीं सब चीज़ों की वजह से बड़ी सफलताएं हासिल हुई हैं।

हिज़्बुल्लाह अपने चार ड्रोन विमानों से अमरीका और इस्राईल दोनों को झुकाया, वर्तमान शांति तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी है?

इस्राईल के प्रधानमंत्री याईर लपीद ने समुद्री सीमा निर्धारित किए जाने के मुद्दे पर लेबनान की ओर से चिन्हिंत किए गए मुद्दों को ख़ारिज कर दिया। इस ख़ाका अमरीकी दूत आमूस हाग्शटायन ने तैयार किया था। यानी उन्होंने समझौता करने से इंकार किया है और इस तरह अधिक समय हासिल करने की चाल चली है ताकि इस बीच लेबनान को इस्राईल की मांगों के सामने किसी तरह किसी हद तक झुकने पर तैयार किया जा सके।

इस्राईल की सुरक्षा व राजनैतिक कैबिनेट ने कल अपात बैठक की मगर बैठक के बाद कोई बयान जारी नहीं किया गया। इस्राईली युद्ध मंत्री बेनी गांट्स ने एक ड्रामा करते हुए कहा कि इस्राईली सेना हर तरह की स्थिति के लिए तैयार रहे।

हम यह बताना चाहते हैं कि लेबनान ने जिन मुद्दों को चिंहित किया है वह हिज़्बुल्लाह की तरफ़ से निर्धारित किए गए हैं जबकि लेबनानी सरकार ने इन बिंदुओं के बारे में अमरीकी दूत को सूचित किया है। क्योंकि जब तक हिज़्बुल्लाह मसौदे से सहमत न हो जाए किसी भी मसौदे को लेबनानी सरकार स्वीकार नहीं कर सकती।

इस्राईली प्रधानमंत्री लापीद इस मसले को इस्राईल में होने वाले आम चुनावों के बाद तक टालना चाहते हैं। इसका मतलब है कि वो को महीनों बल्कि कई साल तक इसे हल न करने के बारे में सोच रहे हैं। क्योंकि सर्वे रिपोर्टों से पता चलता है कि आने वाले चुनाव के नतीजे में भी इस्राईल में कोई सरकार नहीं बन सकेगी बल्कि वही सब कुछ होने वाला है जो पिछले चुनावों के बाद हुआ था। नेतनयाहू बड़ी मेहनत से लगे हैं कि उन्हें सत्ता मिल जाए और उनका कहना है कि अगर उन्हें सत्ता मिली तो लेबनान के साथ होने वाले समझौते को निरस्त कर देंगे।

हमें यहां याद कर लेना चाहिए कि इस्राईल की इसहाक़ राबिन सरकार ने ओस्लो समझौता किया मगर उसके बाद अब तीस साल हो चुके हैं और उसने इस समझौते के किसी भी भाग पर अमल नहीं किया है। क्या फ़िलिस्तीनी प्रशासन जिसने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे अब साफ़ कर रहा है कि इस्राईल ने धोखा दिया।

लेबनान जिस तरह के हालात से गुज़र रहा है उसमें उसके लिए यह उचित नहीं है कि यह समझौता टले। अमरीका और इस्राईल दोनों की तमन्ना है कि किसी तरह लेबनान में गृह युद्ध छिड़ जाए ताकि इस तरह के हालात में लेबनान को इस्राईल की मर्ज़ी के समझौते पर मजबूर किया जा सके।

इस्राईल की लापीद सरकार बहुत कमज़ोर स्थिति में है उसे समझौते के लिए विपक्ष का सपोर्ट नहीं मिल रहा है और न ही इस्राईल की न्यायपालिका इस मामले में उसका साथ दे रही है। दूसरी ओर इस्राईल इस हालत में नहीं है कि लेबनान से कोई जंग छेड़ दे क्योंकि जंग हुई तो इस्राईल के पतन की प्रक्रिया तेज़ हो जाएगी।

इस्राईल का मामला जब होता है तो न अमरीका की दी हुई गैरेंटी पर भरोसा किया जा सकता है और न संयुक्त राष्ट्र का आश्वासन भरोसे लायक़ होता है। अमरीका ने ईरान से भी तो परमाणु समझौता किया था मगर इस्राईल को ख़ुश करने के लिए वह समझौते से निकल गया। लापीद ने कहा था कि वह यूक्रेन की जंग में अमरीका का साथ देगा मगर उसकी भागीदारी बहुत सीमित रही कि कहीं रूस नाराज़ न हो जाए। कहने का मतलब यह है कि इस्राईल की कोई भी बात और वादा भरोसे लायक़ नहीं है।

जहां तक समुद्री सीमा तय करने का मामला है तो यह ताक़त के ज़रिए ही हो सकता है। अब देखना यह है कि हिज़्बुल्लाह और उसके प्रमुख सैयद हसन नसरुल्लाह क्या इस्राईल को यह मौक़ा देते हैं कि वह इस मुद्दे को टाले और अगर देते हैं तो कब तक?

यह तो सच्चाई है कि इस पूरे प्रकरण में सैयद हसन नसरुल्लाह और हिज़्बुल्लाह ने साबित कर दिया है कि वो बड़ी मज़बूत स्थिति में हैं और अमरीका और इस्राईल को उनके सामने झुकना पड़ा है।

हमें पूरा यक़ीन है कि हिज़्बुल्लाह जो भी फ़ैसला करेगा बहुत सोच समझ कर करेगा चाहे ख़ामोश रहने का फ़ैसला हो या अपनी ताक़त दिखाने का फ़ैसला हो। साबित हो चुका है कि हिज़्बुल्लाह को किसी जंग से डर नहीं लगता।

अब्दुल बारी अतवान

अरब जगत के जाने माने टीकाकार और लेखक