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#हिंद_केसरी व ‘रूस्तम-ए-हिंद’ मंगला राय पहलवान

Sardar Ajit Singh
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#हिंद_केसरी व ‘रूस्तम -ए – हिंद’ मंगला राय (शाकाहारी वीर )

#गाजीपुर जिले के जोगा मुसाहिब गांव में 1916 के अगस्त महीने में पैदा हुए मंगला राय को पहलवानी विरासत में मिली थी। उनके पिता रामचंद्र राय और चाचा राधा राय अपने समय के नामी पहलवान थे।

बताया जाता है कि मंगला राय के शुरूआती दिन अभावों में बीते। पिता और चाचा रोजी-रोटी की जुगाड़ में बर्मा चले गए। दोनों भाई वहां भी कुश्ती का रियाज किया करते थे। मंगला राय के चाचा राधा राय काफी बेहतर पहलवान थे। उन्होंने ही मंगला को अखाड़े में दांव-पेंच सिखाना शुरू किया था.

मंगला राय बहुत ही मजबूत कद-काठी के थे। उनका वजन 131 किलो था, जबकि लंबाई 6 फीट 3 इंच। वे रोज चार हजार बैठकें और ढाई हजार दंड लगाते थे। इसके बाद प्रतिदिन अखाड़े में 25 धुरंधर पहलवानों से तीन बार कुश्ती लड़ा करते थे। वे शुद्ध शाकाहारी और सात्विक व्यक्ति थे। उनके खाने में आधा किलो शुद्ध देसी घी, आठ से दस लीटर दूध और एक किलो बादाम शामिल होता था। कहा जाता है कि उनका जन्म मंगलवार को हुआ था, सो मां-बाप ने उनका नाम मंगला राय रख दिया।

एक रोज हो गई मंगला की बर्मा के नामी पहलवान ईशा नट से भिड़ंत और देखते ही देखते भोजपुरिया माटी से रचे-बने मंगला राय ने उसे चारों खाने चित्त कर दिया। इसके बाद उन्हें ‘शेर-ए-बर्मा’ की उपाधि मिली। कुछ समय बाद वे पिता और चाचा के साथ अपने गांव लौट आए। यहां आते ही उन्होंने 1933 में उत्तर भारत के मशहूर पहलवान मुस्तफा के साथ कुश्ती लड़ी। इलाहाबाद में हुई यह कुश्ती मंगला राय के जीवन का टर्निंग प्वांइट साबित हुई। ढेर सारे पहलवानों को अखाड़े में धूल चटा चुके मुस्तफा ने कम उम्र मंगला को हल्के में लिया और यही बात भारी पड़ गई। मंगला राय ने अखाड़े में मुस्तफा के खिलाफ अपने सबसे प्रिय दांव ‘टांग’ और ‘बहराली’ का इस्तेमाल किया। मंगला के जोर के आगे मुस्तफा की एक न चली और वह चित्त हो गया। कुश्ती देख रहे लोगों को काठ मार गया। किसी को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था कि एक नौजवान ने मुस्तफा जैसे नामी पहलवान को अखाड़े की धूल चटा दी। इसके बाद तो मंगला राय के नाम का पूरे देश में डंका बज गया। उनकी कुश्ती देखने के लिये लोग दूर-दूर से आया करते थे।

आलम ऐसा हुआ कि महज एक साल के भीतर 32 साल के मंगला राय को सौ से ज्यादा कुश्तियां लड़नी पड़ी। उन्होंने अकरम लाहौरी, खड्ग सिंह, केसर सिंह, गोरा सिंह, निजामुद्दीन, गुलाम गौस, टाइगर योगेंद्र सिंह सहित कई मशहूर पहलवानों को हराया। चालीस-पचास के दशक में भारत का शायद ही कोई पहलवान रहा होगा, जिसे मंगला राय ने अखाड़े में शिकस्त न दी हो। 1952 में उन्हें ‘रूस्तम- ए-हिंद’ की उपाधि मिली। वहीं 1954 में ‘हिंद केसरी’ के खिताब से नवाजा गया। उन्होंने रोमानिया के पहलवान जार्ज कंटेस्टाइन को भी हराया था, जिसे ‘टाइगर आॅफ यूरोप’ का खिताब मिल चुका था। यह कुश्ती पश्चिम बंगाल के हावड़ा में 1957 में हुई थी। तब मंगला राय की उम्र 41 साल हो चुकी थी और जार्ज यूरोप और एशिया के पहलवानों को धूल चटाता हुआ भारत पहुंच चुका था। जार्ज के खिलाफ उतरने के लिए भारत का कोई पहलवान तैयार नहीं हुआ। तब यह बात मंगला राय को अखरी कि यह तो देश की इज्जत का सवाल है। उन्होंने तपाक से जार्ज की चुनौती स्वीकार की और अखाड़े में उतर गए। महज बीस मिनट चली थी यह कुश्ती, और मंगला राय ने जार्ज को उसकी औकात बता दी। आखिरी बार वे 1963 में अखाड़े में उतरे। इस कुश्ती की कहानी भी काफी दिलचस्प है। कहते हैं कि मंगला राय तब अपने गांव जोगा मुसाहिब में ही रहा करते थे।

गाजीपुर में एक बार कुश्ती हुई, तो वे भी वहां पहुंचे। उस वक्त एक कलक्टर था, जिसने अखाड़े में खड़े पहलवान मेहरूद्दीन के खिलाफ मंगला राय को ललकार दिया। लेकिन, उन्होंने ढलती उम्र का हवाला देते हुए लड़ने से इनकार कर दिया। कलक्टर ने उनकी दुखती रग पर हाथ रखते हुए कुछ ऐसी बात कह दी, जो वहां खड़े गाजीपुर के लोगों को लग गई। सबों ने मंगला राय से एक स्वर में कहा, ‘बाबा लड़ जाईं ना त गाजीपुर के इज्जत ना रही।’ इतनी बात सुनते ही बूढ़ी हो चली हड्डियों में जुंबिश हुई और दुनिया के नामी-गिरामी पहलवानों को धूल चटा चुके मंगला राय लंगोट पर हो गए। अखाड़े में दांव-पेंच शुरू हुए। एक तरफ शबाब लिए मेहरूद्दीन की जवानी और दूसरी तरफ मंगला की बूढ़ी हो चली काया। बावजूद मंगला राय ने गाजीपुर वालों को निराश नहीं किया। अपनी माटी की लाज रख ली। यह कुश्ती टाई हो गई। हालांकि उम्र के इस पड़ाव पर यही बहुत बड़ी बात थी कि मेहरूद्दीन उन्हें शिकस्त नहीं दे सका। गांव लौटने के बाद भी वे स्थिर नहीं रहे। उन्होंने गांव के विकास के लिए कई तरह के प्रयास किए।


खुद शिक्षा से वंचित रह गए मंगला राय देश-दुनिया घूमने के बाद शिक्षा का महत्व बखूबी समझ चुके थे। तभी तो उन्होंने गांव के लोगों को एकमत करके इंटरमीडिएट स्कूल खोलवाया। आसपास के युवकों को कुश्ती की कला सिखाई। उनके कई शिष्य भी नामी पहलवान हुए। इनमें सत्यनारायण राय, रामगोविंद राय, सुखदेव यादव, भोला यादव, राजाराम यादव, दुखहरण झा, नत्था गुंगई, रामविलास राय, मथुरा राय वगैरह के नाम शामिल हैं। देश और देश की मिट्टी से बेपनाह मोहब्बत करने वाले इस पहलवान ने 26 जून 1976 को अंतिम सांस ली।

हर साल मंगला राय की जयंती और पुण्य तिथि पर उनके गांव में कुश्ती सहित अन्य समारोहों का आयोजन किया जाता है.

 

ये हैं पूर्वांचल के मशहूर पहलवानमंगला राय(वास्तविक तस्वीर)

बाभन
@BabhanPolitics
भारत के प्रख्यात पहलवान -5
मंगला राय भारत के एक प्रसिद्ध पहलवान थे। मंगला राय का जन्म 24 जून 1916 में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद के जोगा मुसाहिब गांव में क्वार महीने में हुआ था। उनके पिता का नाम रामचंद्र राय था। रामचंद्र राय और उनके छोटे भाई राधा राय अपने जमाने के मशहूर पहलवान थे। उन्ही की तरह मंगला राय और उनके छोटे भाई कमला राय ने भी कुश्ती में काफी नाम और यश प्राप्त किया। रामचंद्र राय और राधा राय दोनों अपने जवानी के दिनों में जीविकोपार्जन के चलते म्यांमार (बर्मा) के रंगून में रहते थे जहाँ दोनों एक अखाड़े में रोजाना अभ्यास और कसरत करते थे। दोनो भाइयों में राधा राय ज्यादा कुशल पहलवान थे और उन्होंने ही अपने दोनों भतीजों को कुश्ती की पहली तालीम दी और दाव-पेंच के गुर सिखाए।

महान पहलवान रुस्तम-ए-हिंद मंगला राय का जन्म अक्टूबर, 1916 में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के जोगा मुसाहिब गांव के एक भूमिहार ब्राह्मण किसान परिवार में हुआ था।. उनके पिता रामचंद्र राय और उनके चाचा राधा राय भी प्रसिद्ध पहलवान थे। 16 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद वे सिपाही के रूप में पुलिस सेवाओं में शामिल हुए लेकिन उनकी नियति कुछ अलग और महत्वपूर्ण की प्रतीक्षा कर रही थी। उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और बर्मा (म्यांमार) चले गए जहां उनके पिता और चाचा रह रहे थे और अपने पेशेवर करियर का पीछा कर रहे थे। रंगून में मंगला ने कुश्ती सीखना शुरू किया। उन दिनों बनारस के महान पहलवान शिव मूरत तिवारी भी रंगून के एक अखाड़े में अभ्यास कर रहे थे। उन्होंने इस युवा आकांक्षी की काया को देखा और उसे प्रशिक्षित करना शुरू किया। शिव मूरत तिवारी ने मंगला को कुश्ती की दक्षिण-पूर्व एशियाई चालों का मास्टर बना दिया। कुछ वर्षों के बाद मंगला राय अपनी मातृभूमि वापस आ गए लेकिन वे अपने पहले गुरु को कभी नहीं भूले। उन्होंने अपने गुरु के प्रति आभार प्रकट करते हुए अपनी बड़ी पुत्री का नाम ‘शिव मूरत’ रखा।

मंगला राय ने व्यायाम के कठिन नियम का पालन किया। 9 किलोमीटर पैदल चलने के बाद वे चार हजार स्क्वैट्स और दो हजार पांच सौ पुशअप्स करते थे। कभी-कभी वे रोप ट्रेनिंग भी किया करते थे। मंगला राय की लंबाई 6 फीट 3 इंच और वजन 160 किलोग्राम था।

रंगून में फत्ते सिंह और ईशा नट के साथ अपनी पहली बाउट के ठीक बाद मंगला राय लोगों के ध्यान में आए। उन्होंने अपने मशहूर मूव ‘गदाहलेट’ से दोनों चैंपियंस को रिंग में धूल चटाई। 1933 में वे भारत वापस आए और इलाहाबाद के मुस्तफा पहलवान को चुनौती दी। मुस्तफा ने उन्हें नौसिखिए के तौर पर लिया लेकिन 5 मिनट में ही फिदा हो गए जब मंगला राय ने पूरी ताकत से बाहराली का इस्तेमाल किया। इस प्रसिद्ध मुकाबले के बाद भारत में कुश्ती के एक सितारे का जन्म हुआ।

फख्र-ए-हिंद और रुस्तम-ए-पाकिस्तान गुलाम ग़ौस को हराने के बाद उन्होंने रुस्तम-ए-हिंद की उपाधि अर्जित की। अपने कैरियर के तीन दशकों में उन्होंने पचानवे प्रतिशत मुकाबलों में जीत हासिल की, जो लगभग एक जीवित मिथक बन गया। कुश्ती का यह दिग्गज इतना करिश्माई खिलाड़ी था कि वह पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहा। दुख हरण झा कुश्ती में परास्त होने के बाद इनके अनन्य भक्त हो गए ।
बनारस में गुलाम गौस को हराने के बाद भारत नरकेसरी मंगला राय ने जार्ज कांस्टेनटाइन की चुनौती स्वीकार की। रोमानियाई पहलवान जॉर्ज को ‘यूरोप का टाइगर’ कहा जाता था। यूरोप में अपने सभी प्रतिद्वंद्वियों को हराने के बाद उन्होंने कलकत्ता ( कोलकाता ) में डेरा डाला कि कोई भी उन्हें रिंग में चुनौती दे सकता है। उनकी चुनौती को स्वीकार करने के लिए प्रसिद्ध पूरन सिंह और केसर सिंह आगे आए। लेकिन महामल्ल मंगला राय ने न केवल उनका सामना किया बल्कि उन्हें धूल चटाई।

1963 के वर्ष में मंगला राय ने प्रसिद्ध पहलवान मेहरदीन के साथ कुश्ती के अपने अंतिम मुकाबले का सामना किया। मंगला राय 47 साल के थे जबकि मेहरदीन केवल 27 साल के थे, हालांकि मंगला राय ने अपने प्रसिद्ध बहारल्ली दाव का इस्तेमाल किया और मेहरद्दीन को रिंग से बाहर कर दिया गया। लेकिन बुढ़ाते रुस्तम-ए-हिंद की सहनशक्ति कम होने के कारण लड़ाई ड्रा घोषित कर दी गई। इस लड़ाई के बाद मंगला राय ने कुश्ती के कैरियर से संन्यास की घोषणा कर दी। उन्होंने अपने पैतृक गाँव में एक शांतिपूर्ण किसान का जीवन व्यतीत करना शुरू कर दिया। उन्होंने व्यायाम के कठिन आहार को बंद कर दिया और दुर्भाग्य से उन्हें मधुमेह हो गया। उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। मल्टी ऑर्गन फेलियर के कारण उन्होंने 24 जून 1976 को वाराणसी शहर में अंतिम सांस ली । मंगला राय का शरीर कितना बलिष्ट था उतना उनका शरीर सौष्टौ अद्भुत था । वे आपवादिक तौर पर खूबसूरत थे । लंबाई और गठा कसरती देह के कारण कही भी अलग से पहचाने जाते थे।