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#हाल_ए_दिल….”पिता के दिये सौ रुपये”

कृपा शंकर मिश्र ‘खलनायक’
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#हाल_ए_दिल
चैत का महीना खत्म होने को है, गांव-जवार से लेकर खेत-खलिहानों तक आग बरस रही है! ऐसी ही एक दुपहरी कस्बे के छोटे से बाजार में अपने पिता की अंगुली पकड़े 11-12 साल का एक लड़का कोल्डड्रिंक की दुकान के सामने रुकता है…
“पापा, वो हरे रंग वाली बोतल! पिला दो ना, प्यास लगी है!”
“एकदम आशिक है कोल्डड्रिंक का तू! बहुत पसंद है ना तुझे?”–पिता ने बेटे को छेड़ा!
“बहुत पापा! पर क्या करुं, तुम घर नहीं होते तो माँ इसे नहीं खरीदती!”
“ओह! कल तो मैं कलकत्ते चला जाऊंगा, फिर कौन पिलायेगा तुझे!”–पिता की आँखें गीली हुई!
“तब मैं मन को मना लूंगा ना!”–बेटे का भोला स्वर!
फिर बाप-बेटे ने एक एक बोतल स्प्राइट पी!
“ये सौ रुपये रख ले, माँ को मत बताना! जब मन करे, गाँव के बाजार में जाकर पी लेना!

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आषाढ़ का महीना!
पिता कलकत्ते आकर फैक्ट्री के काम में मशगूल हो चुका है!
शाम के समय काम से छुट्टी भी मिली और महीने की पगार भी! अपने मजदूर साथियों के संग वो डेरे पर जाने को निकला!
“ओफ्फ! बड़ी उमस है आज तो, चल ना, ठंडा पीते हैं!”–एक साथी ने प्रस्ताव रखा! बाकियों ने समर्थन किया!
पिता ने दृढ़ता से इंकार में सर हिलाया–“ना ना, मैं नहीं पीता, गला बैठ जाता है मेरा!”
बाकियों ने चुहल की–“पैसा सर पर लाद कर उपर नहीं ले जायेगा यार! हम ये हाड़तोड़ मेहनत इसीलिए करते हैं ताकि कभी-कभार ही सही, जीवन का आनंद ले सकें!”
पर पिता को इन बातों से फर्क ना पड़ा! वो जल्दी से हाथ छुड़ाकर अपने डेरे पर पहुंचा और बेटे को फोन मिलाया–
“और सुनाओ बेटे, जो पैसा दिया है तुमको, उसका कोल्डड्रिंक पी रहे हो कि नहीं!”
“बस सौ रुपये ही तो हैं पापा, ऐसे पीऊंगा तो कितने दिन चलेंगे…!”
पिता ने फोन काट दिया–“ना ना, वहाँ मेरा बेटा नहीं पी रहा तो फिर मैं बड़ा होकर यहाँ कैसे पी सकता हूँ! पिछली बार उसी के साथ पी थी, अबकी दशहरे में घर जाऊंगा तो बड़ी बोतल ले चलूंगा, फिर बाप-बेटे दोनों एक साथ…!”

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क्वार का महीना!
इधर कस्बे के टेसन पर उतरकर उत्साह से भरे पिता ने स्प्राइट की बड़ी बोतल ली और उधर बेटा स्कूल से छूटते ही भागकर गाँव के बाजार में गंगा साह की दुकान पर पहुंचा! पिता के दिये सौ रुपये, जिसे उसने महीनों से जतन से संभाल रखा था, आज उसे खर्चने का टाइम आ गया था!

शाम के समय दोनों ने अपने अपने पास से बोतल निकालते हुए एक-दूसरे को सरप्राइज दिया!

“क्यों रे! इतनी बड़ी बोतल के लिए पैसे कहाँ से आये तुम्हारे पास! माँ ने पैसे दिये थे!”–बाप की आँखों में हैरत थी।

“शशश धीरे बोलो पापा, वो सुन लेगी! आपने पिछली बार जाते समय जो सौ का नोट दिया था, उसी से लिया है!”–बेटे ने सरगोशी की।
“पागल, वो पैसे तुम्हें ठंडा पीने को दिये थे ना, अब तक क्यों बचाकर रखा?”
“अकेले कैसे पीता पापा!”

“क्यों, वो तो तुम्हें बहुत पसंद है!”

“पर आपसे ज्यादा थोड़े पापा! आप तो आठ आठ-नौ नौ महीनों के लिए कलकत्ते चले जाते हैं, ऐसे में आपका दिया पैसा ही तो निशानी होती है आपकी! जब जब आपकी याद आती है, उसे चुपके से एक नजर देख लेता हूँ! ऐसे कैसे खर्च देता उसे! “–बेटे की आँखें भी पनीली हो गयीं!

“बहुत सयाना हो गया है रे तू! कहाँ से सीखा है ये सब?”
“आप पिता हैं ना! अगर मेरी जगह आप होते, तब समझते ये बात! वैसे आप तो कलकत्ते में खूब पीते होंगे ये?”
बाप चुप!

“बोलिये ना पापा!”
“क्या बोलूं, तू बेटा है ना, इसलिए नहीं समझेगा! अगर मेरी जगह तू होता, तब समझता कि मेरे दिल पर क्या गुजरती है वहाँ!”
फिर दोनों मौन हो गये!

हाल-ए-दिल…
जो ना किसी से कहते बनता है और ना ही छुपाते, पर जीना पड़ता है खुद की ही सुनते, खुद को ही सुनाते! जिंदगी की कुछ विचित्रतायें और कुछ भावनायें कभी शब्दों की आँच पर नहीं सींझती, अधपकी रहना उनकी नियति होती है!*

*आदरणीय Ashutosh Rana भैया❤️❤️जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई और मंगलकामना❤️❤️देवाधिदेव महादेव की कृपा आप पर सपरिवार बनी रहे🙏🙏

सस्पेंस/हॉरर से हटकर ये रचना😊😊 आपके लिए हमारी तरफ से भेंट है जन्मदिन का💐💐

आपकी रचनात्मक, जीवंत अभिनय और आपके उत्कृष्ट मानवीय गुणों से सीखने और उन्हें जीवन में उतारने का प्रयत्न रहता है। आपका स्नेहाशीष सदैव बना रहे🙏🙏]]]