देश

हाराजा अजमीढ़ जी के जन्मोदिवस पर ख़ास – कौन थे महाराजा अजमीढ़, जानिये : तीसरी जंग की और से अजीमढ जैन्ती पर सोनी समाज को शुभकामनाएं!

मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज श्री महाराजा अजमीढ़जी को अपना पितृ-पुरुष (आदि पुरुष) मानती है। ऐतिहासिक जानकारी के आधार पर मैढ़ क्षत्रिय अपनी वंशबेल को भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ पाते हैं।
कहा गया है कि भगवान विष्णु के नाभि-कमल से ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी से अत्री और अत्रीजी की शुभ दृष्टि से चंद्र-सोम हुए। चंद्रवंश की 28वीं पीढ़ी में अजमीढ़जी पैदा हुए। महाराजा अजमीढ़जी का जन्म त्रेतायुग के अन्त में हुआ था। मर्यादा पुरुषोत्तम के समकालीन ही नहीं अपितु उनके परम मित्र भी थे। उनके दादा महाराजा श्रीहस्ति थे। जिन्होंने प्रसिद्ध हस्तिनापुर बसाया था। महाराजा हस्ति के पुत्र विकुंठन एवं दशाह राजकुमारी महारानी सुदेवा के गर्भ से महाराजा अजमीढ़जी का जन्म हुआ। इनके अनेक भाईयों में से पुरुमीढ़ और द्विमीढ़ विशेष प्रसिद्ध हुए और दोनों पराक्रमी राजा थे। द्विमीढ़जी के वंश में मर्णान, कृतिमान, सत्य और धृति आदि प्रसिद्ध राजा हुए। पुरुमीढ़जी के कोई संतान नहीं हुई।

राजा हस्ती के येष्ठ पुत्र अजमीढ़ महान चक्रवर्ती राजा चन्द्रवंशी थे। महाराजा अजमीढ़ के दो रानियां सुयति व नलिनी थी। इनके गर्भ में बुध्ददिषु, ऋव, प्रियमेध व नील नामक पुत्र हुए। उनसे मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज का वंश आगे चला। अजमीढ़ ने अजमेर नगर बसाकर मेवाड़ की नींव डाली। महान क्षत्रिय राजा होने के कारण अजमीढ़ धर्म-कर्म में विश्वास रखते थे। वे सोने-चांदी के आभूषण, खिलौने व बर्तनों का निर्माण कर दान व उपहार स्वरुप सुपुत्रों को भेंट किया करते थे। वे उच्च कोटि के कलाकार थे। आभूषण बनाना उनका शौक था और यही शौक उनके बाद पीढ़ियों तक व्यवसाय के रुप में चलता आ रहा है।
समाज के सभी व्यक्ति इनको आदि पुरुष मानकर अश्विनी शुक्ल पूर्णिमा को अजमीढ़जी जयंती मनाते हैं।
जय अजमीढ़ जी महाराज

!!श्री अजमीढ़ जी महाराज की आरती!!

ॐ जय अजमीढ़ हरे, स्वामी जय अजमीढ़ हरे।
भक्ति भाव संग पितृ पुरुष का, पूजन आज करें॥ ॐ जय….
आश्विन शरद पूर्णमासी को, जन्मोत्सव मनता-2,
मेढ़ और मेवाड़ा कुल, मिल यशोगान करता॥ॐ जय….
आदि पुरुष कुल श्रेष्ठ, शिरोमणि, हस्तिनापुर जन्मे-2,
महाराजा हस्तोजी के तुम, येष्ठ पुत्र बने॥ॐ जय….
सौम्य, सरल, सुन्दर, स्वरुप लख, मन घट नेह भरे-2,
चंद्रवंश के कुल दीपकजी, मन आलोक करें॥ॐ जय….
पुरुमीढ़, द्विमीढ़ आपके, अनुज बन्धु कहलाये-2,
सुयति और नलिनी रानी के, हम अंशज बन आये॥ ॐ जय….
शासक होकर स्वर्णकला का, तुमने मान किया-2,
स्वर्णकला में दक्ष, कला को, नव-नवरुप दिया॥ ॐ जय….
करे आरती नित्य ही डावर जो मन ध्यान धरे-2,
पितृ पुरुष अजमीढ़ हमारे, दु:ख दारिद्र हरे॥ॐ जय….
!!श्री अजमीढ़ जी महाराज की जय!!