साहित्य

हर शाख़ पे उल्लू बैठा है…..By – डॉ अंजना गर्ग

हर शाख पे उल्लू बैठा है…..डॉ अंजना गर्ग

=========
समय का दान

“मीना इतवार को तो तेरी छुट्टी होती है फिर कहां से आ रही है। पिछले रविवार भी मैंने देखा था सुबह सुबह भाग रही थी ।”सरोज ने अपनी पड़ोसन मीना से पूछा ।
“बस कुछ खास नहीं । मैं हर इतवार को महिला वृद्धाश्रम जाती हूं ।”मीना ने कहा ।
“क्या तेरा कोई रिश्तेदार है वहां?” सरोज ने जिज्ञासा से पूछा।
“भगवान न करें कोई रिश्तेदार वहां जाए।” मीना ने आसमान की तरफ हाथ जोड़ते हुए ठंडी सी आवाज में कहा।
“फिर रिश्तेदार नहीं तो रोज-रोज क्यों जाती है?” सरोज ने फिर प्रश्न दागा।
” अब तो समझो रिश्तेदार ही है।” “क्या मतलब?” सरोज ने माथे पर बल से डालते हुए पूछा।
“मेरी मैडम अक्सर महिला वृद्धाश्रम जाती है। उन महिलाओं को कुछ खाने का या पहनने ओढ़ने का सामान देकर आती है। इसी साल जनवरी में हम, मुझे वह हमेशा अपने साथ लेकर जाती है जब वृद्धाश्रम उन महिलाओं को गरम शॉल बांटने गए। तो सभी महिलाओं ने ले ली। परंतु एक संभ्रांत सी वृद्ध महिला ने शाल लेने से इनकार किया और मुदिता मैडम की बाह पकड़ कर कमरे की तरफ ले जाते हुए कहने लगी ।आप प्लीज मेरे साथ आए एक बार , सिर्फ 5 मिनट के लिए। एक अजीब सी कशिश थी उसके कहने और ले जाने में। हम दोनों ही उसके साथ चल दी। कमरे में जाकर उसने अपने बेड के नीचे से एक बड़ा सा ट्रक निकालकर खोला तो हमने देखा उसमें ढेरों गरम बहुत सुंदर नई शॉल रखी थी। उसका नाम गायत्री है। वह कहने लगी, मेरे पास कपड़ों की कोई कमी नहीं । अगर बेटा दे सकती है तो कभी-कभी थोड़ा समय मुझे दे दिया कर। मुदिता मैडम एकदम बोली , “क्या मतलब समय से? गायत्री ने कहा,” मेरे से कभी कभी बात कर लिया कर। आ सको तो, तुम्हारा बहुत एहसान बेटा, नहीं तो फोन पर ही बात कर लिया कर । मुझे भी लगे मेरा कोई है। मुझसे मिलने आने वाला, बात करने वाला।” वो कहकर चुप हो गई और एक आस के साथ मैडम को देखने लगी। मैं अपने आंसुओं को बड़ी मुश्किल से रोक पाई। मैं जो हमेशा यह सोच सोच कर दुखी होती थी कि भगवान ने मेरे को तो इतना पैसा नहीं दिया कि कुछ दान कर सकूं। गायत्री देवी की इस बात ने एक पल में मुझे राहत दे दी।” मीना जो लगातार सरोज को बता रही थी उसे सरोज ने बीच में ही टोका ,” वह कैसे”? अब मैं हर इतवार सुबह 9:30 से 12:30 बजे तक अपना समय महिला वृद्ध आश्रम में बिताती हूं । उन महिलाओं के साथ , खासकर गायत्री देवी के साथ ।”मीणा की आवाज में एक अजीब सी खुशी और सुकून था।
डॉ अंजना गर्ग