साहित्य

हम सत्य हैं, हम नित्य हैं और आनंद स्बरूप हैं इस बात का बोध होना ही ‘ध्यान’ है : लक्ष्मी सिन्हा का लेख पढ़िये

Laxmi Sinha
==============
हम सत्य हैं, हम नित्य हैं और आनंद स्बरूप हैं इस
बात का बोध होना ही ‘ध्यान’ है
______________________
जब चेतना का प्रकाश किसी भी परिस्थिति से प्रभावित
नहीं होता तथा चेतना सदा आनंद में रहने लगती है,तब
मनुष्य उस द्वार में प्रवेश कर जाता है,जहां ‘मैं’से परिचय
होती है, यही ‘ध्यान’ की प्रथम कड़ी है, जब वह जान
जाता है ‘स्वयं’ की, अपनी बिखरी हुई ऊर्जा को भीतर
की ओर मोड़ना शुरू कर देती है, तब समझ आता है
आप कौन हैं?स्वयं से पहचान होती है यही ध्यान है,
ध्यान सिर्फ एकाग्रता नहीं है, एकाग्रता ध्यान का एक
कदम मात्र है एकाग्रता से अपने परमेश्वर की अनुभूति
करते रहें और अपने केंद्र से जुड़े रहे, तभी बात बनेगी,
हम सत्य हैं और आनंद स्वरूप हैं, इस बात का बोध
होना ही ‘ध्यान’ है जब यह बोध होता है तब आत्मा फुल
की तरह खिल जाती है, पूरे व्यक्तित्व में परिवर्तन होने
लगता है, जब हम ध्यान में बैठते हैं, सब ईश्वर की ओर
जाने लगते हैं, जब ध्यान दें प्रवाह में बहते चले जाते हैं,


तब परमात्मा में डूब जाते हैं, दुख, चिंता, परेशानियों,
नकारात्मक विचारों को मनसे निकाल कर, शांत रहना
सीखें, लंबी गहरी सांस भरते और छोड़ते हुए शांत
कीजिए अपने मन को, जब हर परिस्थिति में अपने को
शांत रखने की आदत बना लेंगे, तब प्रज्ञा शक्ति शक्ति
विकसित होने लगती है, निर्णय लेने की शक्ति बढ़ने
लगती है एवं बुद्धि की शक्ति भी बढ़ती है, हर क्रिया हर
प्रक्रिया सोच-विचार कर होने लगेगी,जो व्यक्ति जितना
शांत रहता है, उतना ही सफल हो जाता है, ‘ध्यान का
पहला चरण है मन को शांत करना, हर समय शांत
रहना होगा, जैसे शांत झील में चंद्रमा का प्रतिबिंब
दिखाई देती है, वैसे ही शांत मन में परमात्मा का चित्र
दिखाई देने लगता है, इस स्थिति में पहुंचने के लिए मन
में आने वाले विचारों को अपने से अलग करना शुरू
करना होगा, विचार और अपने बीच फासला बनाना
आवश्यक है, जिससे विचारों को शक्ति न मिले और
वे मन में उठते ही गायब हो जाए, विचारों को अपने से
अलग करना ही ध्यान का दूसरा चरण है, इस प्रकार
भक्ति मन के पार जाना शुरु कर देती है और मन दर्पण
की भांति साफ हो जाता है।

#Laxmi_sinha
प्रदेश संगठन सचिव महिला प्रकोष्ठ
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी(बिहार)