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हम नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चिंतित हैं, हम इस पर क़रीबी नज़र बनाए हुए हैं और ये देखेंगे कि इस कानून को कैसे लागू किया जाएगा – अमेरिका

अमेरिका ने गुरुवार को कहा था कि वो नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को लेकर चिंतित है. अब इस पर भारत का भी जवाब आया है.

विदेश मंत्रालय ने साप्ताहिक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, “ये देश का आंतरिक मामला है और ये भारत की समावेशी संस्कृति और मानवाधिकार के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के तहत है.”

भारत ने ये भी कहा है कि जो लोग भारत की बहुलतावाद की संस्कृति को नहीं समझते हैं, उन्हें इस बारे में लेक्चर देने की ज़रूरत नहीं है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “ये कानून 31 दिसंबर, 2014 या उससे पहले भारत आने वाले अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के प्रताड़ित लोगों को सुरक्षा प्रदान करता है. सीएए नागरिकता देने के बारे में है न कि नागरिकता लेने के बारे में. इसे ज़रूर रेखांकित कर लेना चाहिए. ये कानून मानवीय सम्मान और मानवाधिकार के लिए है.”

उन्होंने कहा, “वैसे लोग जो भारत की बहुलता और आज़ादी के बाद के भारत के इतिहास के बारे में जिनकी समझ नहीं है, अच्छा है कि वो इन सब के बारे में बयान न दें. भारत ने जिस इरादे से इस कदम को उठाया है, उसके लिए भारत के सहयोगियों और शुभचिंतकों को इस देश का स्वागत करना चाहिए.”

उन्होंने अमेरिका के बयान को गैर-ज़रूरी और गलत बताया है.

अमेरिका ने क्या कहा था?

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने दैनिक संवाददाता सम्मेलन के दौरान ये बात कही. उनसे एक रिपोर्टर ने भारत के इस कानून पर सवाल किया था.

इस पर उन्होंने कहा, ” हम नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को लेकर चिंतित हैं. हम इस पर क़रीबी नज़र बनाए हुए हैं और ये देखेंगे कि इस कानून को कैसे लागू किया जाएगा. धार्मिक स्वतंत्रता के प्रति सम्मान और सभी समुदायों के लिए बराबरी लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों में शामिल है.”

केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून के लिए 11 मार्च को अधिसूचना जारी की थी. इस क़ानून के तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी.

संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद 12 दिसंबर 2019 को ही नागरिकता संशोधन विधेयक पर राष्ट्रपति की मुहर लग गई थी और यह क़ानून बन गया था. लेकिन उसके बाद भी यह क़ानून लागू नहीं किया गया था, क्योंकि इसके लागू करने के लिए नियमों को अधिसूचित करना बाक़ी था.