विशेष

”हम दोनो एक दूसरे से मिलन करने के लिए तैयार थे”

पुरुषो को हक़ औरतो को गाली क्यों

अंजली कश्यप
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सुहागरात पर सहवास करना हर स्त्री के लिए सबसे खूबसूरत पलों में से एक होता है, वह अपने आप को उस आदमी को सौंपना चाहती है, जो आजीवन उसकी रक्षा करेगा उसके इज्जत मान सम्मान की रक्षा करेगा, उसे संतान सुख देगा
चाहे स्त्री हो या पुरुष पहला समागम उसके लिए हमेशा खास होता है
जब मैं 28 की हुई तो घर में शादी की बात चलने लगी थी, पापा हर अलग अलग जगह जाते और लड़के देखते
बात आगे बढ़ती, लेकिन कोई बोलता लड़की मोटी है, कोई बोलता आपके पास पर्याप्त दहेज देने को नहीं है इस लिए बात आगे नहीं बढ़ेगी
इसी तरह करते करते उम्र 32 साल हो चुकी थी, शरीर में हार्मोनल बदलाव भी होना शुरू हो गए थे

डॉक्टर ने बोला कि अब इस उम्र में फर्टिलिटी की समस्या का सामना करना पड़ेगा, इस लिए यदि संतान सुख चाहती हो तो जल्दी शादी करो
कुछ समय बात विशाल का रिश्ता आया है, पर अंदर से टूटे होने के बाद मैं जानती थी कि हर बार की तरह मामला रिजेक्ट होगा
पर विशाल का जवाब था कि मुझे अकेले में मिलना है
घर वाले जो उम्मीद छोड़ चुके थे वो अब इस बात पे हामी भर दिए थे कि तुम मिल लो
विशाल से मिलने के बाद मैने पूछा आप को कुछ पूछना है, विशाल ने बोला हां पूछना है
अपने पति से आप की क्या उम्मीदें हैं –
मैने बोला कोई उम्मीद नहीं बस इंसान अच्छा हो

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विशाल ने बोला तो देख लिया बताइए मैं कैसा इंसान हूं
मैने तुरंत बोला’ आप तो अच्छे हैं लेकिन आप का अच्छा होना काफी नहीं है मै आप को पसंद आई हूं या नहीं ये ज्यादा इंपॉर्टेंट हैं
इसपर उन्होंने कहा – हां आप तो पसंद है, पर मुझे आपके घर नहीं आना है आपने मेरे साथ चलना है, इस लिए आप का मुझे पसंद करना ज्यादा जरूरी है
इसके बाद हमारी बात नहीं हुए और हम दोनो बाहर चले आए, तभी पापा और मम्मी ने पूछा तो हम दोनो ने। बोल दिया हां पसंद है
लेकिन समय के साथ मुझे अन्दर से ऐसा लगता था कि, जैसे मेरी मजबूरी है वैसे ही इनकी भी कोई मजबूरी हैं जो इन्होंने मुझे पसंद किया
लेकिन शादी के लिए मिले समय के दौरान, हम दिनों एक दूसरे से बात करते करते एक दूसरे के करीब आए
उम्र के इस पड़ाव पर हम दोनो को एहसास होने लगा था कि अब हमें अपने शारीरिक जरूरत पूरी करने की थी

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हम दोनो एक दूसरे से मिलन करने के लिए तैयार थे
कुछ समय बाद हमारी शादी हुई , और समय आया जब हम दोनो एक होने वाले थे
मैं कमरे में साझ धज के अपने प्यार का इंतजार कर रही थी, वो कमरे में आते हैं
हम थोड़ी बात करते हैं, बात करते करते हम एक दूसरे के करीब आते हैं
लेकिन शायद थके होने की वजह से मैं नीचे लेट गई
इसके बाद मुझे कुछ याद नहीं
अगली सुबह जब मैं उठी तो सिर में भारीपन महसूस किया, मुझे लगा थकावट की वजह से मैं सो गई थी
पर मैने देखा मेरे पास मेरे पति बैठे थे,
मैं झटके से उठी और बोली क्या हुआ उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया
फिर बोला अब कैसा लग रहा मैने बोला क्यों क्या हुआ ?
उन्होंने जवाब दिया कि रात में तुम्हे मिर्गी का दौरा पड़ा था उसके बाद से तुम बेहोश थी

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मुझे बहुत आत्म ग्लानि हुई कि एक लड़की जो और एक लड़के के लिए उसकी सुहागरात बहुत जरूरी है
और मेरी वजह से वो खराब हो गई थी
मैने अपने पति से माफी मांगी और बोल की मुझे नहीं पता ऐसे कैसे हो गया ये पहली बार हुआ है
उसके बाद घर वाले तरह तरह की बात बनाएं पर मेरे पति ने बोला कि डॉक्टर से बात हुई है उन्होंने बोला अत्यधिक काम की वजह से blood pressure बहुत ज्यादा हो गया था,
फिर मैने उनसे माफी मांगी इसपर उन्होंने कहा
आज जो ये तुम्हारे साथ हुआ है क्या मेरे साथ होता तो मुझे तुमसे माफी मांगने की जरूरत होती ??.
मैने बोला नहीं कैसी बात कर रहे हैं ?।
तो फिर तुम कोई माफी मांग के मुझे शर्मिंदा कर रही हो
उस दिन मुझे एहसाह हुआ प्यार क्या होता है, एक पति की वहफदारी क्या होती है,
जो सिर्फ आप से संभोग बनाने के बारे में ना सोचे बल्कि आप के लिए और आप के सम्मान के लिए सदैव खड़ा रहे
यदि आपके साथ ऐसा होता तो आप क्या करते ??

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अंजली कश्यप
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पुरुषो को हक औरतो को गाली क्यों,
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लड़कियों को फ्री सेक्स की गाली क्यों दी जाती है, पुरुषों को क्यों नहीं?
क्योंकि माना जाता है कि पुरुषों को फ्री सेक्स का हक है।’ पुरुषों के लिए फ्री सेक्स कॉम्लीमेंट जैसा है। सही मायने में राजनीतिक तौर पर बेबाक महिलाओं को शर्मिंदा करने के लिए उन्हें रं…या फ्री सेक्स करने वाली कहा जाता है।
महिलाओं खुद अपने पति परमेश्वर के द्वारा रेप की जाती हैं, वहां फ्री सेक्स के सारे साइट्स सिर्फ एक पुरुष के हो सकते हैं, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
और खास तौर से उसे देश में, जहां सदियों से स्त्रीजाति के संदर्भ में शर्म, लिहाज, गरिमा, सम्मान, मर्यादा और न जाने कितने ही भारी भरकम शब्दों को न केवल कागजों पर उकेरा गया है बल्कि स्त्री की देह में अंदर तक उतार दिया गया है…वहां उसी स्त्री के प्रति दी जाने वाली फ्री सेक्स संबंधित गालियां भी उतनी ही पुरानी है। इन दोनों ही बातों में बड़ा विरोधाभास साफ नजर आता है। इन दोनों बातों के एक पक्ष को ही सही मान लिया जाए, तो दूसरा वहीं निराधार साबित हो जाएगा।

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इस विषय पर बात करने से पहले पहली बात तो मैं यह बता दूं कि इस विषय पर मेरी प्रतिक्रिया या विचार न तो किसी के पक्ष-विपक्ष में है और ना ही धर्म के खिलाफ है । फिर भी मैं यह कहना चाहूंता हूँ कि विवादास्पद होने के बावजूद अगर सेक्स एक सामान्य बात हो सकती है तो फ्री सेक्स क्यों नहीं। दूसरी बात, फ्री सेक्स का सीधा सा मतलब सहमति से सेक्स करना है, तो यह कहा जा सकता है कि, ज्यादातर पति-पत्नियों के बीच सेक्स नहीं फ्री सेक्स ही होता होगा।

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लोग अपने घर की महिलाओं चाहे वह मां हो, बहन, बेटी या पत्नी… बेबाकी से फ्री सेक्स की गाली देते हैं, जबकि वे जानते हैं कि उनके घर की वे महिलाएं ऐसा नहीं करती या करती हैं। पौरुषता, पितृसत्तात्मकता को स्थापित करने की बौखलाहट उनकी इन गालियों में साफ झलकती है। वे जानते हैं कि सम्मान और चरित्र महिलाओं का अमूल्य धन है और उन्हें दबाने कब्जे में करने के लिए इसी पर चोट करना सही होगा…जो दरअसल गलत है। इस बौखलाहट में वे यह भी नहीं समझ पाते कि इन खोखली बातों से स्त्री का सम्मान तो वहीं का वहीं होगा लेकिन पुरुष का स्तर और सम्मान जरूर कम होगा।

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अब बात करें फ्री सेक्स के उस मुद्दे की, जिसकी गर्माहट अपने चरम पर है, तो यदि मनुष्य की बनाई सभी मान्यताओं, नैतिकता के पैमानों और तमाम धर्म, संप्रदाय और ब्ला-ब्ला जैसी चीजों को दरकिनार करके देखें तो हम पाएंगे कि संसार के समस्त जीव-जंतु और पशु-पक्षी फ्री सेक्स का ही समर्थन करते हैं। निर्लिप्त भाव से सोचा जाए, तो सेक्स सिर्फ एक शब्द है, क्रिया है या फिर शारीरिक अथवा आत्मिक प्रेम जताने का तरीका। प्रकृति यह नहीं जानती कि आप यह क्रिया जिसके भी साथ कर रहे हैं, वह कौन है… आपका पति, प्रेमी या कोई और। यह धारणाएं और पैमाने तो इंसान ने ही बनाए हैं, कि पति के साथ सेक्स नैतिक है और फ्री सेक्स अनैतिक।

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यहां सवाल यह भी उठता है कि क्या पति के साथ फ्री सेक्स संभव ही नहीं ?…
विचार मंथन की असली बात यह है कि स्त्री के लिए बनाई गई नैतिक धारणाएं और पैमाने, पुरुषों के संदर्भ में भी उतनी ही पुख्ता और जोर देकर नहीं समझाए जाते जितना महिलाओं के लिए। यदि ऐसा होता तो शायद फ्री सेक्स को लेकर कोई गाली पुरुषों के लिए भी बनी होती।

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जहां तक औरतो की बात का सवाल है, तो यही सवाल दुनिया भर की करोड़ों औरतों के मन का भी है और जीवन भर रहेगा कि आखिर फ्री सेक्स की गालियां महिलाओं के लिए ही क्यों, जबकि फ्री सेक्स करने के सारे वैध और अवैध अधिकार एक पुरुष अपने पास रखता आया है। दूसरी बात यह, कि अगर फ्री सेक्स पुरुषों के लिए गाली नहीं बल्कि उनकी पौरुषता और शान का प्रतीक है, तो महिलाओं के लिए स्वच्छंदता का प्रतीक क्यों नहीं।

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भारत जैसे देश में, जहां 21वीं सदी में भी महिलाओं खुद अपने पति परमेश्वर के द्वारा रेप की जाती हैं, वहां फ्री सेक्स के सारे साइट्स सिर्फ एक पुरुष के हो सकते हैं, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

और खास तौर से उसे देश में, जहां सदियों से स्त्रीजाति के संदर्भ में शर्म, लिहाज, गरिमा, सम्मान, मर्यादा और न जाने कितने ही भारी भरकम शब्दों को न केवल कागजों पर उकेरा गया है बल्कि स्त्री की देह में अंदर तक उतार दिया गया है…वहां उसी स्त्री के प्रति दी जाने वाली फ्री सेक्स संबंधित गालियां भी उतनी ही पुरानी है। इन दोनों ही बातों में बड़ा विरोधाभास साफ नजर आता है। इन दोनों बातों के एक पक्ष को ही सही मान लिया जाए, तो दूसरा वहीं निराधार साबित हो जाएगा।
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