साहित्य

हम उसको बेवकूफ़ बनाकर सारे काम भी करवा लेते हैं….

उर्वशी अपनी ससुराल में तीन देवरानी जेठानियों में सबसे छोटी थी।
सारा दिन भाग-भाग कर वह काम में लगी रहती। हर कोई उसे आवाज लगाकर कहता उर्वशी ये काम कर दो, उर्वशी वो काम कर दो। वह भी बिना थके, बिना शिकवा-शिकायत के दिन-रात सबकी सेवा में जुटी रहती थी।
उसकी सास प्रमिला जी कई बार समझाती भी थीं कि उर्वशी तुम भी थोड़ा आराम कर लिया करो। चकरघिन्नी की तरह दिन रात फिरती रहती हो।
उर्वशी कहती कि माँ रात में कहाँ घूमती हूँ, आराम ही तो करती हूँ।
प्रमिला जी भी उर्वशी के जबाव से चुप रह जातीं थी।
असल में उनसे नहीं देखा जा रहा था कि उनकी एक बहू दो चालाक बहुओं का शिकार हो!
किंतु अपने ही घर में अपने हाथों से आग नहीं लगाना चाह रहीं थी, इसलिए खुलकर भी कुछ नहीं कह पातीं थी।
दरअसल उर्वशी की दोनों जेठानियाँ रीमा और कामिनी उर्वशी के सीधेपन का फायदा उठा रहीं थी।
उर्वशी का पति पराग भी उर्वशी को दिन भर दौड़ते रहने से मना करता था,,, “उर्वशी तुम ये कोल्हू के बैल की भांति दिनभर मत भागती रहो। रीमा भाभी और कामिनी भाभी को उनके काम खुद से करने दिया करो। वो तुमको मूर्ख बनाकर काम में उलझा देती हैं और खुद आराम करती हैं।”
तब उर्वशी कहती,,, “अरे नहीं पराग ऐसा नहीं है! भाभियाँ इतनी भी बुरी नहीं हैं। क्या हुआ यदि मैने उनकी थोड़ी सी मदद कर दी तो!”
एक रोज उर्वशी, रीमा और कामिनी को चाय लेकर गई पहले रीमा के कमरे में गई देखा तो रीमा कमरे में नहीं थी। तब वह कामिनी के कमरे की तरफ बढ़ गई।
दरवाजे पर पहुँचकर उसने अपना नाम सुना तो वहीं पर ठिठक गई और उनकी बातें सुनने लगी। रीमा और कामिनी दोनों ठहाके लगाते हुए आपस में बातें कर रहीं थी कि अच्छा है जब से उर्वशी आई है तब से हमारे मजे हैं।
हम उसको बेवकूफ बनाकर सारे काम भी करवा लेते हैं। उसे कोई शक भी नहीं हो रहा।
उर्वशी ने जब यह सुना तो उसे अपनी सास प्रमिला जी और अपने पति पराग की बातों का स्मरण हो आया तब वह उल्टे पांव लौटकर आई और एक चाय प्रमिला जी को दे दी एक कप स्वयं पी लिया।
फिर अपने कमरे में जाकर वह भी आराम करने लगी।
कुछ ही देर में कामिनी और रीमा ने आकर पूछा,,, “आज चाय नहीं बनी क्या? उर्वशी कहाँ है?” उर्वशी को ढूंढते हुए दोनों उर्वशी के कमरे में पहुँच गईं जहाँ वह टीवी देखते हुए आराम कर रही थी।
रीमा ने कहा,,, “उर्वशी तुम्हारी तबियत तो ठीक है ना? तुम अभी आराम कर रही हो?”
तब उर्वशी ने जबाव दिया,,, “हाँ दीदी, मैं बिल्कुल ठीक हूँ, ज्यादा सीधे रहने से कुत्ता भी मुँह चाटता है बस इसीलिए अपने आप में थोड़ा सा बदलाव किया है।
दूर खड़े खड़े पराग और प्रमिला जी मुस्कुरा रहे थे।
स्वरचित
©अनिला द्विवेदी तिवारी
जबलपुर मध्यप्रदेश