अरूणिमा सिंह
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हमारी रोटी तक पहुंचने के लिए दूध को लंबी यात्रा तय करनी पड़ती है!
सबसे पहले तो आप को गाय भैंस पालना पड़ेगा और फिर उसको जो चारा खिलाते हैं वो पौष्टिक होना चाहिए, यदि कुछ समय के लिए उन्हीं खुले मैदान में चरा लिया जाय तो अति उत्तम होता है क्योंकि घर पर बांधकर तो हम एक जैसा ही चारा खिलाते हैं जबकि खाली मैदान में स्वत उगी विविध प्रकार की वनस्पतियां चरने से उनका दूध और अधिक पौष्टिक होता है। वो वनस्पतियां सिर्फ हरी घास नहीं होती हैं बल्कि न जाने कितने औषधीय गुणों से युक्त होती हैं जिन्हे खाने से हमारी गाय भैंस भी स्वस्थ रहती हैं।
दूध को जब मिट्टी के बर्तन में उपले की धीमी आंच में उबाला जाता है। शाम को मिट्टी के ही बर्तन में दूध के उचित तापमान में, उचित मात्रा में दही का जामन डालकर जमाया जाता है।
सुबह मिट्टी के ही बर्तन में साढ़ीदार जमी दही को लकड़ी की खैलर/मथानी से मथकर मख्खन निकाला जाता है।
रात की बची ठंडी रोटी पर ये ताजा बिलोया मस्का यानी मक्खन चुपड़िए ऊपर से तीखा चटपटा नमक छिड़किए और फिर रोल बनाकर काट काट खाइए।
जीभ, पेट, आत्मा सब तृप्त हो जाएगी।
गाय पाल कर सारा दिन कूड़ा कचरा खाने के लिए छोड़ दीजिए और सुबह शाम उसका दूध निकालिए तो क्या लगता है कि वो दूध पौष्टिक होगा?
खैर
तस्वीर शहर के प्रतिदिन के दूध की इकठ्ठा की गई मलाई से निकाला गया मक्खन है इसलिए तस्वीर देखकर नहीं बल्कि वर्णन से वो दौर वो स्वाद महसूस कीजिएगा।
अरूणिमा सिंह