दुनिया

हमलावरों ने 25 क़ब्रों को तोड़ दिया, जर्मनी में बेलगाम होता इस्लामोफ़ोबिया : रिपोर्ट

जब 22 नवंबर को हनोवर में अज्ञात हमलावरों ने 25 मुस्लिम बच्चों की क़ब्रों को तोड़ दिया, तो मुसलमानों का यह डर पुख़्ता होने लगा कि जर्मनी में इस तरह के हमलों पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

मुस्लिम संगठन लोअर सेक्सॉनी शूरा के अध्यक्ष रेसेप बिलजेन ने स्टॉकेन शहर के क़ब्रिस्तान में हुए हमले की निंदा की और पुलिस से हमलावरों की पहचान करके उन्हें क़ानून के कटघरे में खड़ा करने की मांग की।

उसके बाद, हनोवर पुलिस ने कहा कि वह इस घटना की जांच करेगी, लेकिन इस घटना के पीछे पशु या प्राकृतिक कारणों के साथ व्यक्तिगत ग़लती की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

इसी तरह पुलिस ने दावा किया कि संदिग्धों को सूचीबद्ध नहीं किया गया है। इसके अलावा इस्लामोफ़ोबिक कनेक्शन का भी कोई ठोस सबूत नहीं है।

लेकिन जर्मन मुस्लिम संगठन डॉयचे मुस्लिमिस्के जेमिनशाफ्ट के प्रमुख ख़ल्लाद स्वैद ने कहा कि यह हमला, मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत का एक और रूप है।

स्वैद का कहना था कि पीड़ितों के परिवारों से हमें गहरी हमदर्दी है। क़ब्रों को तोड़ना, चाहे वह बच्चों की हो या वयस्कों की, हमारे देश में इस्लाम और मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत के कई घृणित रूपों में से एक है।

उनका मानना है कि मुसलमानों के ख़िलाफ़ इतनी नफ़रत कि बच्चों की क़ब्रों को भी तोड़ दिया जाए, देश में दक्षिणपंथी राजनेताओं की बयानबाज़ी का परिणाम है।

यह पहली बार नहीं कि जर्मनी में मुसलमानों की क़ब्रों को निशाना बनाया गया है। इस साल की शुरूआत में भी आइसरलोन शहर में अज्ञात लोगों ने 30 क़ब्रों को तोड़ दिया था।

यूरोप में मुस्लिम विरोधी नस्लवाद पर शोध करने वाले अन्ना एस्थर-यूनेस के अनुसार, जर्मनी में इस तरह की बर्बरता की जड़ें बहुत गहरी हैं।

उन्होंने कहा कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद, कोई ऐसा दौर नहीं गुज़रा है कि जब यहां मुसलमानों, यहूदियों या सिंटी और रोमा के क़ब्रिस्तानों में तोड़फोड़ नहीं की गई हो