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हद से ज़्यादा शोहरत का नुक़सान : इमरान ख़ान के क़रीबी पाकिस्तानी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल सेवानिवृत्त फैज़ हमीद का कोर्ट मार्शल!!रिपोर्ट!!

पाकिस्तानी सेना ने घोषणा की है कि देश की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) फैज़ हमीद को टॉप सिटी मामले में फ़ील्ड जनरल कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया शुरू करते समय हिरासत में ले लिया गया है.

सेना के जनसंपर्क विभाग, आईएसपीआर ने सोमवार को एक बयान जारी किया है जिसमें कहा गया है कि टॉप सिटी मामले में दायर शिकायतों की जांच पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद की गई थी.

बयान में कहा गया है कि टॉप सिटी मामले की जांच के बाद, “परिणामस्वरूप, लेफ्टिनेंट जनरल सेवानिवृत्त फैज़ हमीद के ख़िलाफ़ पाकिस्तान सेना अधिनियम के प्रावधानों के तहत सख़्त अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई है.”

फ़ैज़ हमीद को लेकर पाकिस्तानी सेना का ये भी कहना है कि उनकी ओर से ”रिटायरमेंट के बाद पाकिस्तान आर्मी एक्ट के उल्लंघन की कई घटनाएं भी सामने आई हैं.”

कौन हैं फ़ैज़ हमीद
पाकिस्तानी सेना के इतिहास में उन अफ़सरों को उंगलियों पर गिना जा सकता है जो दो अलग-अलग कोर के कमांडर थे. पिछले 75 वर्षों में, केवल 11 लेफ्टिनेंट जनरलों ने एक से अधिक कोर की कमान संभाली है और बलूच रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट जनरल फैज़ हमीद उनमें से एक हैं.

मुस्लिम लीग-एन के पूर्व सीनेटर और सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल अब्दुल क़य्यूम के मुताबिक़, फैज़ हमीद में वे सभी गुण थे जिनके कारण वो लेफ्टिनेंट जनरल के पद तक पहुंचे.

पाकिस्तान में पंजाब के चकवाल के रहने वाले फ़ैज़ हमीद ने ब्रिगेडियर के रूप में अपने करियर में रावलपिंडी में 10 कोर के चीफ़ ऑफ स्टाफ़ के रूप में कार्य किया है.

एक मेजर जनरल के रूप में, उन्होंने पनो आक़िल डिवीजन के जनरल कमांडिंग ऑफिसर के रूप में कार्य किया और लगभग ढाई साल तक उन्होंने आईएसआई के काउंटर इंटेलिजेंस विंग का नेतृत्व किया, जिसे डीजीसी के नाम से जाना जाता है.

लेफ्टिनेंट जनरल बनने के बाद, उन्होंने दो महीने तक एडजुटेंट जनरल के रूप में कार्य किया और 2019 में, उन्हें आईएसआई प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया और दो साल से अधिक समय तक वो इस पद पर रहे.

2021 में उन्होंने आठ महीने तक पेशावर के कोर कमांडर के रूप में कार्य किया और बाद में कुछ हफ्तों के लिए बहावलपुर के कोर कमांडर बने.

नवंबर 2022 में वर्तमान सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के पदभार संभालने के अगले दिन उन्होंने सेना से इस्तीफ़ा दे दिया था.

राजनीति में दख़ल देने के आरोप

आज की विपक्षी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ़ और उसके संस्थापक इमरान ख़ान पूर्व आईएसआई डीजी मेजर जनरल फ़ैसल नसीर पर तहरीक-ए-इंसाफ़ के ख़िलाफ़ राजनीतिक हस्तक्षेप और कार्रवाई और हिंसा का आरोप लगाते रहे हैं.

इसी तरह, मुस्लिम लीग-एन को 2017 से 2019 तक आईएसआई के डीजी रहे मेजर जनरल फैज़ हमीद से भी लगभग ऐसी ही शिकायतें थीं. इस दौरान उन पर राजनीतिक प्रतिशोध, गिरफ़्तारियों के आरोप लगे.

इमरान ख़ान के शासनकाल के दौरान पीएमएल-क्यू के चौधरी परवेज़ इलाही ने एक साक्षात्कार में कहा कि जनरल अशफ़ाक़ परवेज़ कयानी के कार्यकाल के दौरान, डीजी आईएसआई लेफ्टिनेंट जनरल शुजा पाशा हमारी पार्टी के नेताओं को तहरीक-ए-इंसाफ़ में शामिल करने की कोशिश कर रहे थे और हमने इसका ज़िक्र तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल कयानी से किया.

पूर्व गवर्नर और मुस्लिम लीग-एन के नेता मुहम्मद ज़ुबैर इस बात का समर्थन करते हुए कहते हैं कि “जनरल पाशा और फिर जनरल ज़हीर उल इस्लाम ने तहरीक-ए-इंसाफ़ के पक्ष में काम किया और आख़िरकार मेजर जनरल फ़ैज़ हमीद के दौर में इमरान ख़ान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाया गया.”

तहरीक-ए-इंसाफ़ की केंद्रीय समिति के सदस्य, पूर्व रक्षा सचिव लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) नईम ख़ालिद लोधी का मानना है कि, ”अतीत में सेना का हस्तक्षेप किसी न किसी तरह से होता रहा है. इस बार मामला थोड़ा अलग था. जनरल फ़ैज़ हमीद के शासनकाल के दौरान, राजनीतिक हस्तक्षेप बहुत सार्वजनिक और कुछ हद तक निर्लज्ज होने लगा. सड़कों और सार्वजनिक हलकों में आईएसआई की भूमिका पर चर्चा होने लगी. पहले ये सब छिपे तौर पर होता था, लेकिन अब सब कुछ खुलेआम हो रहा था.”

अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया

डीजी आईएसआई के रूप में, जनरल फ़ैज़ हमीद ने अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी और अफ़ग़ान तालिबान के साथ बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद जनरल फ़ैज़ हमीद को काबुल के एक होटल की लॉबी में देखा गया और उन्होंने विदेशी पत्रकारों से संक्षिप्त बातचीत की.

उनकी एक तस्वीर भी सामने आई जिसमें जनरल फ़ैज़ हमीद के पीछे आईएसआई का एक मेजर जनरल भी मौजूद था, लेकिन उन्होंने मास्क रखा था.

मीडिया में इस तस्वीर के जारी होने के बाद देश में इस बात को लेकर आलोचना भी हुई कि क्या ख़ुफ़िया एजेंसी के प्रमुख को इस तरह सार्वजनिक तौर पर सामने आना चाहिए या नहीं.

वहीं, जब नए आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति का मुद्दा आया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान चाहते थे कि जनरल फ़ैज़ हमीद कुछ और समय के लिए इस पद पर काम करें.

इस बात को ख़ुद इमरान खान ने कहा था.

हालाँकि, लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम को नए आईएसआई प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था, लेकिन प्रधानमंत्री आवास से नियुक्ति को मंज़ूरी देने में देरी की गई, जिसे सेना और तहरीक-ए-इंसाफ़ के बीच एक तनाव के तौर पर भी देखा गया था.

हद से ज़्यादा शोहरत का नुक़सान?

कई हलकों में लेफ्टिनेंट जनरल फ़ैज़ हमीद के करियर से जुड़े विवादों के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और उनकी पार्टी को भी दोषी ठहराया जाता है.

कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक़, प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और तहरीक-ए-इंसाफ़ कार्यकर्ताओं ने जनरल फ़ैज़ हमीद के चरित्र को असाधारण हद तक प्रचारित किया, जिसके कारण उनका नाम एक पार्टी के साथ जुड़ा रह गया.

जनरल हमीद गुल की तरह जनरल फ़ैज़ हमीद को भी हद से ज़्यादा शोहरत का नुक़सान हुआ.

दिमाग़ या दिल: एक अधिकारी को क्या प्राथमिकता देनी चाहिए?

सैन्य परंपराओं में एक अलिखित परंपरा यह भी है कि अगर किसी अधिकारी को कोई लक्ष्य या कार्यभार दिया जाता है, तो उससे अपेक्षा की जाती है कि वह केवल पेशेवर तरीके से अपनी ज़िम्मेदारी निभाए.

अगर पाकिस्तान के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं और अतीत के उदाहरणों को सामने रखें, तो ऐसा एक से अधिक बार हुआ है जब सैन्य अधिकारी अपने पेशेवर कर्तव्यों का पालन करते समय बुनियादी नियमों से परे चले गए.

रूस के ख़िलाफ़ अफ़ग़ान युद्ध के दौरान और उसके बाद, कई अधिकारी चरमपंथियों के बीच लोकप्रिय हो गए. पूर्व डीजी आईएसआई जनरल हमीद गुल अपने कार्यकाल के दौरान और उसके बाद एक अलग व्यक्ति के रूप में उभरे, उन्हें भी जल्दी सेना छोड़नी पड़ी.

पूर्व डीजी आईएसआई जनरल जावेद नासिर को भी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा और वह भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.

9/11 के बाद जनरल मुशर्रफ की टीम के प्रमुख सदस्य और तत्कालीन डीजी आईएसआई जनरल महमूद अहमद भी अपनी पेशेवर ज़िम्मेदारियों और अपने विचारों के बीच संतुलन नहीं बना सके और उन्हें सेना छोड़नी पड़ी.

और अब इस सिलसिले में जनरल फ़ैज़ हमीद का नाम भी लिया जा रहा है.

पूर्व गवर्नर मुहम्मद ज़ुबैर के मुताबिक़, ”अस्सी के दशक में अफ़ग़ान युद्ध और 9/11 के बाद भी पाकिस्तानी सेना के कई अधिकारी इसे इस्लाम की लड़ाई मानकर बहुत आगे बढ़ गए थे. इसी तरह प्रोजेक्ट इमरान में भी कुछ अधिकारी संगठन से आगे बढ़कर उसका हिस्सा बन गए.”

रक्षा सचिव रहने वाले पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल नईम खालिद लोधी की भी कमोबेश यही राय है.

उनके मुताबिक़ डीजी आईएसआई का पद सबसे ताक़तवर पदों में से एक है. अधिकार, शक्ति, महत्व, संसाधन सभी इस नियुक्ति के बुनियादी और अभिन्न अंग हैं. इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि डीजी की अपनी सोच और संगठन का विज़न आपस में मेल नहीं खाता. ख़ास अधिकार होने की वजह से अधिकारी संगठन से सहमति बनाए बिना भी अपनी मनमानी करते हैं.

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माजिद निज़ामी
पदनाम,पत्रकार, बीबीसी उर्दू के लिए