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हठी ”हमीर देव चौहान”’ ने रणथंभोर पर 1282 से 1301 तक राज किया था!

B B Singh
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हठी हम्मीर देव चौहान
“सिंह गमन संत्पुरूष वचन, कदली फले इक बार। त्रिया तेल हम्मीर हठ, चढ़े न दूजी बार”
इस भारत भूमि पर कई वीर योद्धाओ ने जन्म लिया है। जिन्होंने अपने धर्म संस्कृति और वतन पर खुद को न्यौछावर कर दिया। सत् सत् नमन है इन वीर योद्धाओं को हठी हम्मीर देव चौहान ने रणथंभोर पर 1282 से 1301 तक राज किया था.
वे रणथम्भौर के सबसे महान शासकों में से एक माने जाते हैं. हम्मीर देव के पिता का नाम जैत्रसिंह चौहान एवं माता का नाम हीरा देवी था. वे इतिहास में ‘‘हठी हम्मीर” के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं
. हम्मीर देव 1282 में रणथम्भौर के शासक बने. हम्मीर देव रणथम्भौर के चौहान वंश के सर्वाधिक प्रतापी, शक्तिशाली एवं महत्वपूर्ण शासक थे.
उन्होंने अपने बाहुबल से विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया था. हम्मीर रासौ के अनुसार रणथम्भौर साम्राज्य उज्जैन से लेकर मथुरा तक एवं मालवा (गुजरात) से लेकर अर्बुदाचल तक हो गया था. हम्मीर देव के वारे में कहा जाता है कि- वो अगर कोई हठ (अर्थात – निश्चय) कर ले वो उसको पूरा किये बिना पीछे नहीं हटते थे.
उनके हठ (अर्थात – दृढ निश्चय) को लेकर अनेको महाकाव्य लिखे गए जिनमे जोधराज शारंगधर द्वारा रचित “हम्मीर रासो” और न्यायचन्द्र सूरी द्वारा रचित “हम्मीर महाकाव्य” अत्यंत प्रसिद्ध हैं. उनके हठ को लेकर “हम्मीर महाकाव्य” में लिखा है – “सिंह गमन तत्पुरूष वचन, कदली फले इक बार। त्रिया तेल हम्मीर हठ, चढ़े न दूजी बार”॥
दिल्ली के सुलतान गुलाम बंश के अंतिम शासक “कय्यूम” की हत्या कर “जलालुद्दीन खिलजी” दिल्ली का सुलतान बन गया था. उसने सुलतान बनते ही 1291 में रणथम्भौर पर आक्रमण किया. हम्मीर देव ने उसे बहुत आसानी से हराकर खदेड़ दिया. जलालुद्दीन ने 1292 में दो बार फिर हमले किये लेकिन हम्मीर देव ने उसे दोनों बार मार भगाया.
उसके बाद जलालुद्दीन खिलजी की दोबारा कभी हिम्मत नहीं हुई रणथम्भौर पर हमला करने की. 1296 में जलालुद्दीन के भतीजे और दामाद “अलाउद्दीन खिलजी” ने, जलालुद्दीन की हत्या कर दी और खुद सुलतान बन गया.सुल्तान बनने के बाद उसने 1298 में गुजरात पर हमला किया, सोमनाथ को लूटा\


वापसी में उसने अपने सेना नायक उल्गू खान को रणथम्भौर पर हमला करने का आदेश दिया. इस लड़ाई में भी हम्मीर देव ने खिलजी की सेना को मार भगाया और गुजरात की लूट का माल और हथियार भी छीन लिए. उस धन से हम्मीर देव ने गुजरात सोमनाथ मंदिर, उजजैन के महाकालेश्वर मंदिर और पुष्कर के ब्रह्मा मंदिर का पुनरुद्धार कराया.
इस घटना के बाद अलाउद्दीन खिलजी को रणथम्भौर और भी खटकने लगा. इसी बीच मंगोल से नवी मुसलमान बने, खिलजी के एक मंगोल रिश्तेदार “मुहम्मद शाह” के अवैद्ध सम्बन्ध खिलजी की एक रानी “चिमना” से हो गए थे. मालिक काफूर को इसका पता चल गया और उसने खिलजी को इसकी खबर करदी, इसपर खिलजी आग बबूला हो गया.
खिलजी के भय मुहम्मद शाह अपने साथियों के साथ हम्मीर देव के पास पहुँच गया और चालाकी से उनसे अपनी प्राणरक्षा का बचन ले लिया.
अलाउद्दीन खिलजी ने विशाल सेना लेकर रणथम्भौर पर घेरा डाल दिया, लेकिन 9 महीने के घेरे के बाद भी वह हम्मीर देव को झुका नहीं पाया. इसी बीच हम्मीर देव के दो सेना नायक खिलजी से मिल गए.
रणमल और रतिपाल को खिलजी ने रणथम्भौर का राजा बनाने का बचन देकर अपने साथ मिला लिया था. रणमल और रतिपाल ने किले के कमजोर हिस्सों को बारूद से उडा दिया. तब हम्मीर देव ने “शाका” करने का निर्णय लिया. राजपूत केसरिया बाना पहन कर अंतिम युद्ध के लिए तैयार हो गए महिलाओं ने जौहर की तैयारी कर ली
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11जुलाई 1301 को किले के फाटक खोलकर खिलजी की सेना पर टूट पड़े. रणथम्भौर की सेना संख्या में कम थी लेकिन उनके हौसले बुलंद थे. उन्होंने खिलजी की सेना को गाजर मूली की तरह काटना शुरू कर दिया और देखते ही देखते खिलजी की सेना अपने हथियार, तम्बू, झंडे, आदि अपना सब सामान छोड़कर भाग खड़ी हुई.
हम्मीर देव के सैनिको ने वो सारा सामान उठा लिया और किले की तरफ वापस चल पड़े. उन्होंने खिलजी की सेना के झंडे भी उठा लिए थे. बस यहीं उनसे गलती हो गई. खिलजी के झंडों को देखकर किले की महिलाओं को लगा कि- उनके लोग मारे गए हैं और खिलजी की सेना किले पर कब्ज़ा करने आ रही है और वे जौहर की अग्नि में कूद गईं.
जब हम्मीर देव किले में पहुंचे तो महिलाओं को जौहर की अग्नि में जलता देखकर उनको बहुत दुःख हुआ. मन की शांति के लिए शिव मंदिर में गए और प्राश्चित स्वरूप अपना सर काटकर भगवान् शिव के चरणों में चढ़ा दिया. अलाउद्दीन को जब इस घटना का पता चला तो वह वापस लौट आया और उसने दुर्ग पर कब्जा कर लिया.
रणमल और रतिपाल ने रणथम्भौर का राजा बनाने को कहा तो खिलजी ने दोनों का सर कलम करने का आदेश देते हुए कहा कि – जो अपनों का नहीं हुआ वो हमारा क्या होगा.